
संसद में क्या होता है 'शून्य काल', यह कब और क्यों लागू किया जाता है?
क्या है खबर?
संसद का मानसून सत्र सोमवार से शुरू हो गया है। इसमें सभी को 'शून्य काल' (जीरो ऑवर्स) भी देखने को मिलेगा। यह भारतीय संसद की कार्यवाही का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सांसदों को बिना किसी पूर्व सूचना के अत्यावश्यक मुद्दों को उठाने के लिए एक त्वरित मंच प्रदान करता है। यह अवधि 'प्रश्न काल' के ठीक बाद शुरू होती है। ऐसे में आइए जानते हैं शून्य काल क्या है, यह कैसे कार्य करता है और यह क्यों महत्वपूर्ण है।
सवाल
क्या होता है 'शून्य काल'?
'शून्य काल' भारतीय संसद की एक अनौपचारिक व्यवस्था है। संसद की कार्यविधि नियमों में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन यह सांसदों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। इस दौरान सांसद जनता से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण और तात्कालिक मुद्दों को बिना 10 दिन पहले सूचना दिए उठा सकते हैं। बता दें कि आमतौर पर संसद में कोई भी मुद्दा उठाने के लिए सांसदों को 10 दिन पहले सूचना देनी होती है, लेकिन शून्यकाल में इसकी आवश्यकता नहीं होती है।
नामकरण
इसका नाम 'शून्य काल' क्यों रखा गया?
इसे 'शून्य काल' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दोपहर 12 बजे शुरू होता है, जो प्रश्नकाल के बाद और नियमित कार्यवाही शुरू होने से पहले का समय होता है। हालांकि, साल 2014 के बाद से राज्यसभा में शून्यकाल की व्यवस्था थोड़ी अलग कर दी गई है। अब सुबह 11 बजे जरूरी कागजी कार्रवाई के बाद सबसे पहले शून्यकाल शुरू होता है और इसके बाद दोपहर 12 बजे प्रश्न काल की शुरुआत की जाती है।
समय
कितना होता है 'शून्य काल' का समय?
शब्दकोश में 'शून्य काल' का अर्थ है निर्णय का क्षण या महत्वपूर्ण क्षण होता है। संसदीय भाषा में यही वह समय है जब सांसद जरूरी मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हैं। शून्य काल की अधिकतम अवधि 30 मिनट होती है और प्रत्येक सांसद को अपना मुद्दा उठाने के लिए 2-3 मिनट का समय मिलता है। हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति के विवेक के आधार पर इस समय को आगे भी बढ़ाया भी जा सकता है।
शुरुआत
संसद में कब हुई थी 'शून्य काल' की शुरुआत?
संसद में 'शून्य काल' की शुरुआत 1962 में हुई थी, जब सांसदों को लगा कि राष्ट्रीय या अंतररराष्ट्रीय महत्व के जरूरी मुद्दे संसद में तुरंत उठाए जाने चाहिए। उस समय सांसद प्रश्न काल के बाद कभी अध्यक्ष की अनुमति लेकर तो कभी बिना अनुमति के ऐसे मुद्दे उठाने लग गए। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान शून्य काल की जरूरत और बढ़ गई। ऐसे में तत्कालीन अध्यक्ष रवि राय ने 'शून्य काल' को व्यवस्थित कर इसके लिए नियम बना दिए।
प्रक्रिया
कैसे काम करता है 'शून्य काल'?
सांसदों को 'शून्य काल' में कोई मुद्दा उठाने के लिए उसी दिन सुबह 10 बजे तक लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को लिखित सूचना देनी होती है। इसमें मुद्दे का विषय स्पष्ट करना होता है। इसके बाद अध्यक्ष या सभापति उठाए जाने वाले मुद्दों का चयन करते हैं। लोकसभा में प्रतिदिन प्राथमिकता के आधार पर 20 मुद्दे चयनित होते हैं। प्रत्येक सांसद को 2-3 मिनट का समय मिलता है। जरूरत पड़ने पर संबंधित मंत्री जवाब दे सकते हैं।
महत्व
क्या है 'शून्य काल' का महत्व?
'शून्य काल' सांसदों को ऐसे मुद्दों को उठाने का अवसर देता है जो जनता के लिए तात्कालिक और महत्वपूर्ण हैं। इनमें प्राकृतिक आपदाएं, आतंकवाद या नीतिगत घोषणाएं शामिल हैं। यह सरकार को जनता के मुद्दों पर तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य करता है। हालांकि, मंत्रियों का जवाब देना अनिवार्य नहीं है फिर इससे सरकार पर दबाव पड़ता है। यह सांसदों को जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने का अवसर देता है।
चुनौती
क्या है 'शून्य काल' की चुनौतियां?
कई बार 'शून्य काल' में उठाए गए मुद्दे संसद की कार्यवाही को बाधित करते हैं, क्योंकि सांसद भावनात्मक या विवादास्पद मुद्दे उठाते हैं। 30 मिनट की अवधि में सभी सांसदों को मौका देना कठिन है, हालांकि कभी-कभी इसे बढ़ाया भी जाता है। इसी तरह यह नियम पुस्तिका में शामिल नहीं है, इसलिए इसके दुरुपयोग की भी संभावना है। फिर भी यह जनता की आवाज संसद तक पहुंचाने का अवसर देता है और लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है।