केरल निकाय चुनाव: UDF की वापसी और तिरुवनंतपुरम में भाजपा की जीत के क्या हैं मायने?
क्या है खबर?
केरल के स्थानीय चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (UDF) ने बड़ी वापसी की है। वहीं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) को बड़ा झटका लगा है। इनकी हार-जीत के अलावा भाजपा को भी कांग्रेस सांसद शशि थरूर के गढ़ तिरुवनंतपुरम से ऐतिहासिक खुशखबरी मिली है। इन चुनावों को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था। आइए परिणामों के मायने समझते हैं।
नतीजे
सबसे पहले नतीजे जानिए
केरल में 941 ग्राम पंचायत, 152 ब्लॉक पंचायत, 14 जिला पंचायत, 87 नगर पालिका और 6 नगर निगम के लिए चुनाव हुए थे। ग्राम पंचायतों में UDF को 505, LDF को 341 और NDA को 26 पर जीत मिली। UDF को 78 और LDF को 64 ब्लॉक पंचायतों में जीत मिली। दोनों के हिस्से में 7-7 जिला पंचायत आई हैं। 54 नगर पालिका LDF और 28 UDF जीती हैं। 4 नगर निगम पर UDF और एक-एक पर NDA-LDF जीती है।
कांग्रेस
कांग्रेस के लिए क्या हैं नतीजों के मायने?
कांग्रेस ने केरल के ग्रामीण निकायों में मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। कांग्रेस ने पंचायत स्तर पर CPI(M) के विशाल कैडर के सामने 505 सीटें जीतकर जमीनी पकड़ के संकेत दिए हैं। पार्टी ने शहरी इलाकों में भी LDF को झटके दिए हैं। UDF ने कोल्लम, त्रिशूर और कोच्चि नगर निगम LDF से छीन लिए हैं। कोल्लम पर 25 और त्रिशूर पर 10 सालों से लेफ्ट का कब्जा था। कोझिकोड में भी मामूली वोटों से UDF को हार मिली।
भाजपा
कैसा रहा भाजपा का प्रदर्शन?
तिरुवनंतपुरम नगर निगम में NDA ने 101 में से 50 वार्डों में जीत हासिल की है। यहां LDF सिर्फ 29 और UDF 19 सीटों पर सिमट गया। इसके अलावा भाजपा ने पलक्कड़ नगरपालिका में भी मजबूत चुनौती पेश की। कोझिकोड में भी भाजपा ने 14 सीटें जीतकर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। कोल्लम जैसे लेफ्ट के गढ़ में भी भाजपा को बढ़त मिली है। त्रिशूर के हिंदू बहुल कन्ननकुलंगरा वार्ड से भाजपा की मुस्लिम प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है।
भाजपा के लिए मायने
भाजपा के लिए सबकुछ ऐतिहासिक
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के शशि थरूर लगातार 4 बार से सांसद हैं। यहां की नगर निगम पर 45 सालों से लेफ्ट का कब्जा था। यही वजह है कि तिरुवनंतपुरम में भाजपा की जीत कई मायनों में ऐतिहासिक और एक नए अध्याय की शुरुआत जैसी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत को केरल की राजनीति में एक ऐतिहासिक पल बताया है। भाजपा के उभार ने संकेत दिता है कि केरल की राजनीति द्विध्रुवीय नहीं रह सकती।
लेफ्ट
लेफ्ट के लिए क्या है सबक?
LDF के लिए सबसे चौंकाने वाली बात शहरी इलाकों में हार रही। चुनाव से पहले LDF ने पेंशन बढ़ाई, आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का ऐलान किया। इसके बावजूद एंटी इंकमबेंसी हावी पड़ी। हालांकि, CPI(M) के राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने इन दावों को खारिज किया। उन्होंने कहा, "14 में से 7 जिला पंचायतों में जीत यह साबित करती है कि पार्टी का जनाधार कायम है।" गोविंदन ने नतीजों को 'अप्रत्याशित झटका' बताया।
विशेषज्ञ
क्या कह रहे हैं जानकार?
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर जे प्रभाष ने BBC से कहा, "यह LDF के लिए साख गिरने वाली बात है। तिरुवनंतपुरम से लेकर कासरगोड तक LDF के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी है। तिरुवनंतपुरम में भी कमजोर कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ा दी है।" वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा, "विधानसभा चुनाव से पहले UDF मजबूत स्थिति में है, बशर्ते वह हरियाणा जैसे खुद से कोई गलती न करे। भाजपा धीरे-धीरे बढ़त बना रही है, जबकि LDF को बड़ा नुकसान हुआ है।"