#NewsBytesExplainer: जीतनराम मांझी दोबारा NDA में आए; भाजपा को कितना फायदा और नीतीश को क्या नुकसान?
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने आज अपने बेटे संतोष सुमन के साथ गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की। करीब 45 मिनट तक चली बैठक खत्म होने के बाद मांझी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी दोबारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल हो गई है। HAM ने कुछ दिन पहले ही बिहार की महागठबंधन सरकार से नाता तोड़ लिया था। आइए समझते हैं कि मांझी के इस कदम के क्या मायने हैं।
मांझी ने क्या कहकर तोड़ा नीतीश से नाता था?
13 जून को मांझी के बेटे संतोष ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। वे अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण मंत्री थे। तब मांझी ने आरोप लगाया था कि नीतीश उनकी पार्टी का JDU में विलय करने का दबाव बना रहे थे। इसके बाद नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि मांझी भाजपा से मिले हुए थे और बैठकों की गोपनीय जानकारियां भाजपा तक पहुंचाते थे, इसलिए अच्छा हुआ कि वो खुद चले गए।
मांझी को साथ लाने के पीछे भाजपा की क्या रणनीति?
नीतीश कुमार से अलग होने के बाद से भाजपा बिहार में 2015 की तर्ज पर काम कर रही है। इसके लिए भाजपा स्थानीय पार्टियों को साधने में जुटी है। उस समय भाजपा के साथ रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और मांझी थे। इस वक्त भी पार्टी अब तक चिराग पासवान, पशुपति पारस और कुशवाहा को साधने में कामयाब रही है। अब मांझी के साथ आने से भाजपा के नेतृत्व वाला NDA 2015 जितना ही मजबूत हो गया है।
मांझी से भाजपा को क्या फायदा हो सकता है?
मांझी महादलित समाज से आते हैं, जिनकी बिहार में करीब 10 प्रतिशत आबादी है। वह खुद मुसहर समुदाय से हैं, जिसकी राज्य में करीब 3 प्रतिशत आबादी है। मांझी प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और महादलित वोटों पर उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। इस लिहाज से मांझी दोनों ही गठबंधनों के लिए खास हैं। भाजपा को उम्मीद है कि मांझी महादलित और मुसहर समुदाय के कुछ वोट उसकी तरफ लाने में कामयाब होंगे।
क्या नीतीश को होगा नुकसान?
जातिगत समीकरणों के लिहाज से नीतीश को मांझी के NDA में जाने से नुकसान हो सकता है। नीतीश खुद इस बात से वाकिफ हैं, इसलिए मांझी के बेटे संतोष के कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने मुसहर समुदाय के रत्नेश सदा को मंत्री बनाया है। इसे मुसहर समाज में होने वाले नुकसान को रोकने का प्रयत्न माना जा रहा है। दूसरी तरफ महादलित समुदाय पर नीतीश की खुद अच्छी-खासी पकड़ है।
क्या उल्टा पड़ सकता है मांझी का दांव?
मांझी बीते 8 साल में 7 बार या तो पार्टी बदल चुके हैं या अपने ही फैसले से यू-टर्न ले चुके हैं। इस वजह से मतदाताओं के बीच उनकी छवि दल-बदलू के तौर पर बन गई है, जिससे उन्हें नुकसान हो सकता है। इसी साल 27 फरवरी को मांझी ने कसम खाकर कहा था कि वे नीतीश का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। हालांकि, उन्होंने 107 दिनों के भीतर ही ये कसम तोड़ दी।
चुनावों में कैसा रहा है मांझी की पार्टी का प्रदर्शन?
मांझी ने साल 2015 में HAM पार्टी बनाई थी। इसी साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी NDA में शामिल हुई और उसने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा। पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिली। यहां तक कि मांझी खुद चुनाव हार गए। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 7 में से 4 सीटों पर जीत दर्ज की। 2019 के आम चुनाव में भी HAM ने 3 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन सभी हार गए।