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    कृषि कानूनों की वापसी से किस तरह बदल सकती है पंजाब की राजनीति?
    किसान आंदोलन में जमा किसानों की भीड़।

    कृषि कानूनों की वापसी से किस तरह बदल सकती है पंजाब की राजनीति?

    लेखन भारत शर्मा
    Nov 19, 2021
    01:53 pm

    क्या है खबर?

    पिछले करीब एक साल से तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के लिए शुक्रवार यानी गुरु नानक देव की 552वीं जयंती बड़ी सौगात लेकर आई है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया।

    ऐसे में केंद्र का यह फैसला किसान आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहे पंजाब की राजनीति में बड़े बदलाव ला सकता है।

    यहां जानते हैं कि फैसले से कैसे बदल सकती है पंजाब की राजनीति।

    #1

    फैसले से पंजाब में खुल सकती है भाजपा के विस्तार की राह

    केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से पंजाब में भाजपा के विस्तार की राह खुलने की उम्मीद बढ़ गई है।

    कृषि कानूनों के कारण शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने भाजपा से 24 साल पुराना गठबंधन को तोड़ दिया था, वहीं ग्रामीण पंजाब में भाजपा को सिख किसानों का विरोध झेलना पड़ रहा था।

    अब भाजपा इस फैसले का लाभ उठाने की कोशिश करेगी। गत दिनों केंद्र ने करतारपुर कॉरिडोर को खोलकर अपना उद्देश्य स्पष्ट किया था।

    #2

    श्रेय लेने का प्रयास करेगी कांग्रेस

    केंद्र सरकार के इस फैसले का पंजाब की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी पूरा श्रेय लेने का प्रयास करेगी।

    कांग्रेस शुरू से कृषि कानूनों का विरोध कर रही है और इसके खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। ऐसे में वह आने वाले विधानसभा चुनावों में मोदी सरकार को कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने का दावा करेगी।

    इसी तरह आम आदमी पार्टी (AAP) और SAD भी चुनावी जमीन पर इसका श्रेय लेने का प्रयास करेगी।

    जानकारी

    किसानों के समर्थन में कई घोषणाएं कर चुकी है कांग्रेस सरकार

    बता दें कि पंजाब की कांग्रेस सरकार आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा, एक सदस्य को सरकारी नौकरी और ट्रैक्टर रैली हिंसा में गिरफ्तार किसानों को दो-दो लाख रुपये देने की घोषणा भी कर चुकी है।

    #3

    भाजपा और SAD के फिर से गठबंधन की खुलेगी राह

    कृषि कानूनों की वापसी से भाजपा और SAD के फिर से गठबंधन का रास्ता भी खुलेगा। इससे विधानसभा चुनाव में भाजपा को मजबूती मिल सकती है।

    बता दें कि SAD ने कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से गठबंधन तोड़कर बसपा के साथ गठबंधन कर लिया था।

    हालांकि, इसके बाद भी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के कारण दलितों ने SAD के प्रयास को विफल कर दिया। अब आगामी विधानसभा चुनाव में SAD और भाजपा फिर से एक हो सकते हैं।

    #4

    भाजपा-कैप्टन अमरिंदर सिंह का बन सकता है गठजोड़

    कृषि कानूनों को निरस्त होने से पंजाब के मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी से इस्ताफा देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह और भाजपा के बीच चुनावी गठजोड़ का रास्ता खुल गया है।

    कैप्टन ने पंजाब लोक कांग्रेस नाम से नई पार्टी बनाई है। उन्होंने भाजपा से गठबंधन के संकेत भी दिए हैं।

    हालांकि, कैप्टन की पार्टी ई है, लेकिन ग्रामीण और शहरी इलाकों में उनका अच्छा खासा प्रभाव है। ऐसे में वह असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में कर सकते हैं।

    #5

    राजनीति में कूद सकते हैं किसान संगठनों के नेता

    कृषि कानूनों की वापसी के लिए 32 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने विशेष प्रयास किए हैं।

    इनमें अधिकतर संगठन पंजाब से हैं। ऐसे में कृषि कानूनों की वापसी के बार इन किसान संगठनों के नेता भी राजनीति में उतरकर नया समीकरण बना सकते हैं।

    हालांकि, अभी तक किसान नेताओं ने राजनीति में उतरने से इनकार किया है, लेकिन भारतीय किसान संघ का राजेवाल गुट कांग्रेस और AAP के साथ राजनीति में कदम रख सकता है।

    #6

    असंतुष्ट युवाओं को गुमराह किए जाने की संभावना होगी खत्म

    कृषि कानूनों की वापसी से पंजाब में राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा असंतुष्ट युवाओं को गुमराह किए जाने की संभावना भी खत्म हो जाएगी। इस मामले में कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कई बार उठा चुके हैं।

    उनका कहना है कि राष्ट्रविरोधी ताकतें कृषि कानूनों से असंतुष्ट हुए युवाओं को गुमराह कर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल करने में जुटी है। इससे पंजाब और देश की सुरक्षा को खतरा बढ़ गया है। ऐसे में सरकार यह फैसला कारगर साबित होगा।

    पृष्ठभूमि

    पिछले एक साल से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे किसान

    किसान एक साल से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। इस दौरान उनकी सरकार से 12 बार वार्ताएं भी हुई, लेकिन इसमें कोई समाधान नहीं निकल पाया था।

    इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी कानूनों को लागू करने पर रोक लगा रखी थी। गत दिनों किसान संगठनों ने 29 नवंबर से संसद मार्च का भी ऐलान किया था।

    इसके देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नाम संबोधन करते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी।

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