#NewsBytesExplainer: भाजपा कैसे सम्राट चौधरी को नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर तैयार कर रही?
बिहार में नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़कर नई सरकार बना ली है। इस सरकार में भाजपा ने सम्राट चौधरी और विजय सिंहा को उपमुख्यमंत्री बनाया है। चौधरी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से आते हैं और नीतीश भी इसी वर्ग से हैं। हालांकि, नीतीश के विपरीत चौधरी एक युवा नेता हैं और ये भाजपा के लिए फायदेमंद है। आइए जानते हैं कि कैसे भाजपा 55 वर्षीय सम्राट चौधरी के जरिए 2025 के बिहार चुनावों की तैयारी कर रही है।
कौन हैं सम्राट चौधरी?
16 नवंबर, 1968 को जन्मे चौधरी अभी बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं। चौधरी कुशवाहा समाज के बड़े नेताओं में शामिल शकुनी चौधरी के बेटे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी और 1999 में वह राबड़ी सरकार में कृषि मंत्री थे। वह 2000 और 2010 में परबत्ता सीट से विधायक चुने गए। 2014 में वह जीतनराम मांझी की सरकार और 2020 में नीतीश सरकार में भी मंत्री रहे।
भाजपा में तेजी से बढ़ा चौधरी का कद
चौधरी साल 2017 में RJD छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। उन्हें 2018 में भाजपा ने बिहार का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया और अब वह राज्य में उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। उनके उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से 2 बातें स्पष्ट हैं। पहली, चौधरी बिहार में भाजपा के निर्विवाद नेता हैं। दूसरी सुशील मोदी का युग समाप्त हो गया है, जिन्होंने पूरे सद्भाव के साथ नीतीश के साथ शासन किया और अब भाजपा नीतीश के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं रखना चाहती।
चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाने के पीछे क्या हैं सियासी मायने?
भाजपा की नजर 2025 के विधानसभा चुनावों पर है और इन चुनावों में चौधरी नीतीश के खिलाफ भाजपा का जवाब हो सकते हैं क्योंकि दोनों ही OBC से आते हैं। आक्रामक युवा नेता चौधरी OBC का बड़ा चेहरा हैं और वह कुशवाहा जाति से आते हैं। उन्हें तवज्जो देकर भाजपा ने राज्य में लव (कुर्मी) और कुश (कुशवाहा) वोटबैंक को साधने का प्रयास किया है। राज्य में कुशवाहा 4.27 प्रतिशत और कुर्मी 2.87 प्रतिशत हैं। नीतीश कुर्मी जाति के हैं।
बिहार में लगातार मजबूत हो रही है भाजपा
बिहार में नीतीश की जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भाजपा का साथ काफी पुराना है। JDU हमेशा 'बड़े भाई' की भूमिका में रही और अधिक सीटों पर लड़ी। हालांकि, 2013 के बाद से चीजें बदलनी लगीं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने अपने नए अवतार में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 31 पर कब्जा कर लिया। इसके बाद से भाजपा बिहार में अपनी स्थिति को मजबूत कर रही है।
भाजपा अब 'बड़े भाई' की भूमिका में
राजनीतिक विवशताओं के कारण नीतीश ने कई बार भाजपा के साथ गठबंधन किया। हालांकि, वह भी इस तथ्य को जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में उनका वोटबैंक कमजोर हुआ है और अब भाजपा बड़े भाई की भूमिका में है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-JDU ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा अधिक सीटों पर जीती। 2020 के विधानसभा चुनाव में JDU महज 43 सीटें जीती, जबकि भाजपा ने 78 सीटें जीतीं।
भाजपा कैसे चौधरी के जरिए साधेगी जातिगत समीकरण?
नीतीश अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), OBC और महादलित वोटबैंक के जरिए ही अब तक सत्ता में बने रहे हैं। OBC को अतिरिक्त आरक्षण देने का फैसला लेकर उन्होंने बड़ा दांव चला। अब चौधरी की पदोन्नति को नीतीश की जातिगत राजनीति की काट के रूप में देखा जा रहा है। बिहार के जातिगत सर्वे के अनुसार, राज्य में 63 प्रतिशत OBC ( 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग+ 36 प्रतिशत अत्यंत पिछड़ा वर्ग) हैं। चौधरी के जरिए भाजपा की नजर इन्हीं पर है।
क्या लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश को हटाएगी भाजपा?
अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा प्रभावी है और नीतीश 'बैकसीट' पर हैं। न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, गठबंधन से पहले भाजपा चाहती है कि चुनावों के बाद नीतीश मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए राजी हो जाएं। हालांकि, सहमति को लेकर स्पष्टता अब भी नहीं है। यदि नीतीश सच में मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं तो भाजपा चौधरी को पहले ही मुख्यमंत्री बनाकर 2025 के चुनावों के लिए मैदान तैयार कर सकती है।
बिहार में 3 पिछड़ी जातियों के बीच मुकाबला?
2025 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का OBC बनाम अन्य का OBC देखने को मिल सकता है। ऐतिहासिक रूप से 3 जातियों ने बिहार में उच्च जाति विरोधी आंदोलनों का नेतृत्व किया है- कुशवाहा, कुर्मी और यादव। कुशवाहा से चौधरी, कुर्मी से नीतीश और यादव समुदाय से लालू प्रसाद यादव आते हैं। यादवों और कुर्मियों ने सत्ता का स्वाद चखा है, जबकि कुशवाह हमेशा इससे दूर रहे। भाजपा चौधरी के जरिए इस सूखे को खत्म करने की फिराक में है।