कौन थे छत्रपति शिवाजी महाराज के वीर पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज, जिन्हें कहते हैं 'छावा'
क्या है खबर?
हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के गौरव हैं, जिन्हें लोग आज भी देवता की तरह पूजते हैं।
हालांकि, अधिकांश लोग उनके वीर पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज की गौरवगाथा से अवगत नहीं हैं। लोग शिवाजी महाराज को शेर कहते हैं और उनके पुत्र शंभु राजे को छावा कहकर पुकारा जाता है।
वह 1680 में शिवाजी महाराज के निधन के बाद मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति बने थे। आइए उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्य जानते हैं।
जीवन
मां के निधन के बाद दादी ने किया शंभु राजे का पालन-पोषण
छत्रपति संभाजी महाराज का पूरा नाम संभाजीराजे शिवाजीराजे भोंसले था और उनका जन्म 14 मई, 1657 में हुआ था। वह छत्रपति शिवाजी महाराज के 2 पुत्रों में सबसे बड़े थे।
हालांकि, इस शेर पुत्र को जन्म देने के 2 साल बाद ही उनकी मां सईबाई का निधन हो गया था।
छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्मरक्षा और देशभक्ति का पाठ पढ़ाने के बाद उनकी माता जीजाबाई ने ही शंभु राजे का भी पालन-पोषण किया।
कौशल
युद्धनीति के साथ-साथ लेखन का भी शौक रखते थे छत्रपति संभाजी महाराज
बचपन में छत्रपति संभाजी महाराज ने तलवारबाजी, घुड़सवारी, कुश्ती, युद्ध रणनीति और कूटनीति में अत्यधिक प्रशिक्षित हासिल कर लिया था।
इतना ही नहीं, 13 साल की उम्र तक उन्हें 13 भाषाएं आती थीं, जिनमें हिंदी और अंग्रेजी शामिल थी। वह संस्कृत विद्वान और लेखक भी रहे और अपने जीवन में बुद्धभूषण जैसी किताबें भी लिखीं।
1664 के अंत में शंभु राजे का विवाह येसुबाई से हुआ, जो राव शिर्के की बेटी थीं। उस समय वे महज 9 साल के थे।
युद्ध
127 युद्ध लड़कर सभी में विजयी रहे थे छत्रपति संभाजी महाराज
भारतीय इतिहास में संभाजी महाराज को उनके साहस के लिए जाना जाता है। उन्होंने केवल 16 वर्ष की आयु में रामनगर में अपना पहला युद्ध लड़ा और जीता।
1675-76 के दौरान उन्होंने गोवा और कर्नाटक में सफल अभियानों का नेतृत्व किया। छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद उन्होंने मराठा साम्राज्य की बाग-डोर संभाली और 127 युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे।
23 वर्ष की आयु में उन्होंने बुरहानपुर का युद्ध लड़ा और औरंगजेब को सीधी चुनौती दे डाली।
औरंगजेब
छत्रपति संभाजी महाराज ने औरंगजेब को नाकों चने चबवाए थे
दक्कन पर कब्जा करने की होड़ में मुगल शाशक औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज पर हमला करने का फैसला किया।
इसके लिए वह 8 लाख सैनिकों की सेना लेकर दिल्ली से रवाना हुआ, लेकिन शंभु राजे की बुद्धिमता और युद्धनीति से पार न पा सका।
संभाजी महाराज ने गुरिल्ला युद्ध तकनीक के माध्यम से महज 25,000 सैनिकों के साथ औरंगजेब की आधी सेना को खत्म कर दिया था।
लाख कोशिशों के बावजूद वह शंभु राजे को ढूंढने में असफल रहा।
पकड़ना
शंभु राजे के साले ने किया था उनके साथ विश्वास घात
सालों की मशक्कत के बाद भी जब औरंगजेब संभाजी महाराज को पकड़ने में नाकाम रहा तो उसने दूसरा तरीका खोज निकाला।
छत्रपति शंभाजी महाराज के अपने साले गनोजी शिर्के ने मुगलों से हाथ मिला लिए। उनकी मदद से औरंगजेब शंभु राजे को पकड़ने में कामयाब रहा।
संभाजी महाराज 1689 में एक बैठक के लिए संगमेश्वर गए थे, जिस दौरान मुगलों की सेना ने उन्हें चालाकी से पकड़ लिया था।
इसके बाद उन्हें बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहां औरंगजेब मौजूद था।
यातनाएं
अमानवीय यातनाएं झेलने के बाद भी नहीं झुका शंभु राजे का सर
औरंगजेब ने संभाजी महाराज को इस्लाम अपनाने के लिए कहा। हालांकि, शंभु राजे ने कहा, "शंभु हजार बार जिएगा, हजार बार मरेगा, लेकिन अपना धर्म नहीं छोड़ेगा।"
इसके बाद उन्हें कई यातनाएं दी गईं, जो क्रूरता की हदों को पार करती हैं। औरंगजेब ने उनकी आखें निकाल दी, नाखून नोच दिए, जीभ काट दी, अंग काट दिए, लेकिन उन्होंने उसके आगे घुटने नहीं टेके।
45 दिन अत्याचार करने के बाद 11 मार्च, 1689 को उनका सर कलम कर दिया गया।
जानकारी
औरंगजेब भी था छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता का कायल
हर भारतीय की तरह औरंगजेब भी छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता का कायल था। उसने शंभु राजे से कहा था, "मेरे चार बेटों में से अगर एक भी तुम्हारे जैसा होता तो कब का पूरा हिंदुस्तान मुगल सल्तनत का हिस्सा बन जाता।"