अमीरों की तुलना में जल्दी बढ़ती है गरीब बच्चों की उम्र, अध्ययन में हुआ बड़ा खुलासा
क्या है खबर?
हर बच्चा समान परिस्थितियों में नहीं पलता। कुछ बच्चों को सारी सुख-सुविधाएं मिलती हैं तो कुछ को एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं हो पाता।
गरीब बच्चे मुश्किलों में जीवन बिताते हैं और रोजाना नई-नई चुनौतियों का सामना करते हैं।
उनकी कठिन परिस्थितियां उन्हें मजबूत तो बना देती हैं, लेकिन उन्हें जल्दी बड़ा होने पर भी मजबूर कर देती हैं।
एक अध्ययन से सामने आया है कि अमीरों की तुलना में गरीब बच्चों की उम्र तेजी से बढ़ती है।
अध्ययन
लंदन के कॉलेज में किया गया था यह अध्ययन
यह अध्ययन लंदन में स्थित इंपीरियल कॉलेज में किया गया था और इसे लैंचेट नामक पत्रिका में प्रकाशित भी किया गया था।
शोध के जरिए सामने आया कि गरीब परिवारों के बच्चे अमीर बच्चों की तुलना में जल्दी बड़े हो जाते हैं और उनका दिमाग भी जल्दी विकसित हो जाता है।
इस अध्ययन को पूरा करने के लिए यूरोप के अलग-अलग हिस्सों से 6 से 11 साल की आयु के 1,160 बच्चों का डाटा एकत्र किया गया था।
प्रक्रिया
वित्तीय स्थिति के आधार पर किया गया था बच्चों का विभाजन
अध्ययन में शामिल बच्चों को पारिवारिक समृद्धि के अंतरराष्ट्रीय पैमाने के आधार पर अंक दिए गए थे।
यह पैमाना कई कारकों पर आधारित था, जैसे कि बच्चे के पास अपना खुद का कमरा है या नहीं या उसके घर में कितने वाहन हैं आदि।
बच्चों को उनके परिवार की वित्तीय स्थिति के आधार पर उच्च, मध्यम और निम्न समूहों में बांटा गया था।
बच्चों की सफेद रक्त कोशिकाओं में 'टेलोमेर' को मापने के लिए उनका ब्लड टेस्ट किया गया था।
टेलोमेर
टेलोमेर होता है बढ़ती उम्र के लिए जिम्मेदार
टेलोमेर क्रोमोसोम यानि गुणसूत्रों के अंदर पाई जाने वाली संरचनाएं होती हैं, जो उम्र को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं।
जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे टेलोमेर छोटे होते जाते हैं। इस अध्ययन में केवल टेलोमेर को ही नहीं मापा गया था, बल्कि तनाव पर भी ध्यान केंद्रित किया गया था।
बच्चों में तनाव वाले हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर मापने के लिए उनकी मूत्र के नमूने लिए गए थे।
नतीजे
क्या रहे इस अध्ययन के नतीजे?
अध्ययन में पाया गया कि अमीर बच्चों के टेलोमेर गरीब बच्चों की तुलना में 5 प्रतिशत लंबे थे। लड़कियों के टेलोमेर लड़कों की तुलना में 5.6 प्रतिशत लंबे पाए गए।
अधिक बॉडी मास इंडेक्स (BMI) वाले बच्चों के टेलोमेर 0.18 प्रतिशत छोटे थे। मध्यम और उच्च संपन्नता समूह वाले बच्चों में कॉर्टिसोल का स्तर निम्न संपन्नता समूह के बच्चों की तुलना में 15.2 से 22.8 प्रतिशत कम था।
शोधकर्ताओं ने बताया कि अभी इसपर और अध्ययन करने की जरूरत है।
लेखक
अध्ययन के लेखक ने कही यह बड़ी बात
इंपीरियल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डॉ ओलिवर रॉबिन्सन ने इस अध्ययन को लिखा है।
उन्होंने कहा, "कुछ बच्चों के लिए उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि उन्हें उन लोगों की तुलना में जैविक रूप से नुकसानदेह स्थिति में डाल सकती है, जिनकी जिंदगी की शुरुआत बेहतर होती है।"
उन्होंने आगे कहा, "इस समस्या को नजरअंदाज करने से हम गरीब बच्चों को जीवनभर के लिए ऐसी स्थिति में डाल रहे हैं, जहां वे अस्वस्थ रहेंगे और उनका जीवनकाल कम होगा।"