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तमिलनाडु की प्राचीन पारंपरिक कला है 'कुरुंबा पेंटिंग', जानिए इसके बारे में सब कुछ

तमिलनाडु की प्राचीन पारंपरिक कला है 'कुरुंबा पेंटिंग', जानिए इसके बारे में सब कुछ

लेखन सयाली
Nov 07, 2025
04:44 pm

क्या है खबर?

कुरुंबा पेंटिंग तमिलनाडु की नीलगिरि पहाड़ियों की एक प्राचीन आदिवासी कला है। यह कला शैली वारली और सौरा पेंटिंग से काफी मिलती-जुलती है। इस पेंटिंग को त्योहारों और शादी जैसे खास मौकों पर घर की दीवारों और फर्श पर बनाया जाता है। इसमें ज्यामितीय आकारों से लोगों के चित्र बनाए जाते हैं, जिनके रंग प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं। आइए इस खास कला के बारे में विस्तार से जानते हैं।

कुरुंबा पेंटिंग

क्या होती है कुरुंबा पेंटिंग?

एलुथु पाराई की 3000 साल पुरानी चट्टानों पर कई खूबसूरत पेंटिंग बनी हुई थीं। कुरुंबा समुदाय का मानना ​​है कि ये कलाकृतियां उनके पूर्वजों ने बनाई थीं। इस पेंटिंग में शहद की खोज, खेती और खाना पकाने के साथ-साथ जानवरों और पौधों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पहले के जमाने में मंदिरों को सजाने के लिए केवल पुरुष पुजारी ही कुरुंबा कला का अभ्यास करते थे। ऐतिहासिक रूप से इन्हें चट्टानों पर बनाया जाता था।

रंग

कुरुंबा पेंटिंग में इस्तेमाल होते हैं 4 मुख्य रंग 

कुरुंबा पेंटिंग में जनजाति के दैनिक जीवन, रीति-रिवाजों और परंपराओं को दर्शाया जाता है। इसमें पारंपरिक रूप से 4 रंगों का उपयोग होता है- लाल, सफेद, पीला और हरा। पीला रंग बनाने के लिए वेंगई वृक्ष के रस का उपयोग होता है। वहीं, कट्टेगडा वृक्ष की पत्तियों को पीसकर हरा रंग बनता है। सफेद रंग के लिए बोधि मान मिट्टी और लाल के लिए सेम्मन का उपयोग किया जाता है।

सामग्री

कुरुंबा पेंटिंग में इस्तेमाल होने वाला सामान

पहले कुरुंबा पेंटिंग में कलाकार बरगद के पेड़ की जड़ों से बने ब्रश का इस्तेमाल करते थे। ये ब्रश दीवारों, मिट्टी के बर्तनों, खिड़कियों आदि पर रंगने के लिए उपयोग किए जाते थे। हालांकि, ये खुरदुरे होने के कारण कागज पर नहीं इस्तेमाल होते थे। इन ब्रश को बनाना भी बहुत मुश्किल होता है, जिस वजह से इनका इस्तेमाल धीरे-धीरे कम होता गया। आज के समय में कुरुंबा पेंटिंग करने के लिए साधारण कागज और ब्रश उपयोग होता है।

तकनीक

कुरुंबा पेंटिंग बनाने की तकनीक

कुरुंबा पेंटिंग बेहद सरल और अनुष्ठानिक होती हैं। इसमें पुरुष और महिला पात्रों को अलग-अलग ढंग से बनाया जाता है। इन चित्रों के माध्यम से भावनाओं, रीति-रिवाजों और लोगों और प्रकृति के बीच के संबंधों को व्यक्त किया जाता है। कलाकार झोपड़ियों, पशुओं के बाड़ों, जंगली जानवरों, अनाज सुखाती महिलाओं और शहद इकट्ठा करने के लिए जंगल में जाते पुरुषों आदि जैसे सीन बनाते हैं। इस शैली की सादगी इसकी खासियत है।