कजरी तीज: जानिए इस त्योहार का शुभ मुहूर्त, इतिहास और अन्य महत्वपूर्ण बातें
क्या है खबर?
कजरी तीज का त्योहार नजदीक है।
यह त्योहार राजस्थान में लोकप्रिय है और विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो अपने जीवनसाथी की समृद्धि और लंबी उम्र के लिए दिनभर का उपवास रखती हैं।
कजली तीज या बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाने वाला यह त्योहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को आता है।
अगर आप भी यह त्योहार मनाते हैं तो आइए आज हम आपको इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
तिथि और शुभ मुहूर्त
कजरी तीज की तिथि और शुभ मुहूर्त
हर साल कजरी तीज हरियाली तीज के 15 दिन बाद आती है। इस साल कजरी तीज 2 सितंबर (शनिवार) को है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 1 सितंबर को रात 11:50 बजे शुरू होगी और 2 सितंबर को रात 8:49 बजे समाप्त होगी।
कजरी तीज पर पूजा करने का शुभ मुहूर्त 2 सितंबर को होगा। सुबह 7:57 से 9:31 बजे तक। इसके बाद शुभ मुहूर्त रात 9:45 बजे से 11:12 बजे तक रहेगा।
इतिहास
इस त्योहार का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं और उन्होंने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कठोर तपस्या की थी।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन उनकी पूजा करने और व्रत रखने से कोई भी व्यक्ति भगवान शिव और देवी पार्वती से एक सुखी विवाहित जोड़ा बने रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।
यही वजह है कि यह त्योहार सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
जगहें
किन-किन जगहों पर मनाई जाती है कजरी तीज
इस त्योहार को उत्तर भारतीय राज्यों विशेषकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
इस अवसर पर जहां विवाहित महिलाएं अपने पति की सलामती के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती से प्रार्थना करती हैं और निर्जला व्रत (बिना भोजन और पानी के) रखती हैं, वहीं अविवाहित लड़कियां उपयुक्त साथी की कामना के लिए यही अनुष्ठान करती हैं।
तरीके
कैसे मनाया जाता है यह त्योहार?
इस दिन महिलाएं जल्दी उठकर नहाती हैं, फिर नए पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और श्रृंगार करती हैं।
इसके बाद वे लाल कपड़े पर भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की मूर्तियां भी रखती हैं और आरती के लिए अगरबत्ती और दीपक जलाकर उनकी पूजा करती हैं।
मां पार्वती को सुहागिन महिलाएं श्रृंगार की 16 वस्तुएं भी अर्पित करती हैं और भगवान शिव को बेलपत्र, गाय का दूध, गंगाजल और धतूरा चढ़ाकर शिव-गौरी के विवाह की कथा सुनती हैं।