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जल शामक मुद्रा के अभ्यास का तरीका, इसके लाभ और अन्य महत्वपूर्ण बातें
हाथ से बनाई गई जल शामक मुद्रा

जल शामक मुद्रा के अभ्यास का तरीका, इसके लाभ और अन्य महत्वपूर्ण बातें

लेखन अंजली
Jul 22, 2021
06:45 am

क्या है खबर?

जल शामक मुद्रा बिल्कुल वरूण मुद्रा के विपरीत कार्य करती हैं। इससे हमारा मतलब यह है कि जहां वरूण मुद्रा शरीर में मौजूद जल तत्व को बढ़ाने और नियंत्रित करने में सहायक है, वहीं जल शामक मुद्रा जल तत्व को कम करने में मदद करती है। अगर आप रोजाना जल शामक मुद्रा का अभ्यास करते हैं तो इससे आपको ढेरों स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं। आइए आज हम आपको इस मुद्रा से जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं।

अभ्यास

जल शामक मुद्रा के अभ्यास का तरीका

सबसे पहले योगा मैट पर पद्मासन या फिर सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं। इसके बाद आप अपने दोनों हाथों को सीधा करके अपने घुटनों पर रखें। इस दौरान हथेलियां ऊपर की ओर हों। अब अपने दोनों हाथों के अंगूठों को कनिष्ठ (Little Finger) उंगलियों के ऊपर रखें। बाकी सभी उंगलियां सीधी रखें। इसके बाद अपनी दोनों आंखों को बंद करें और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें। 15 से 20 मिनट तक इस मुद्रा में रहें।

सावधानियां

मुद्रा के अभ्यास के दौरान जरूर बरतें ये सावधानियां

इस मुद्रा के अभ्यास का समय गर्मियों में कम रखें और बारिश और सर्दियों में बढ़ा दें क्योंकि यह मुद्रा जल तत्व को कम कर देती है। कम रक्तचाप या अस्थमा से ग्रसित लोगों को जल शामक मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें फायदे की बजाय नुकसान हो सकता है। गर्भवती महिलाएं किसी योग विशेषज्ञ से सलाह लेने के बाद ही इस मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।

फायदे

जल शामक मुद्रा के नियमित अभ्यास से मिलने वाले फायदे

इस मुद्रा का अभ्यास ज्यादा पसीना निकलने, नाक बहने और आंखों से पानी आने जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में कारगर है। यह मुद्रा हथेलियों से पसीना आने की समस्या में राहत देती है। इस मुद्रा का अभ्यास हाइपर एसिडिटी के मरीजों के लिए लाभदायक है। यह मुद्रा ग्रंथियों से हार्मोन के स्राव को कम करती है। इस मुद्रा से पाचन तंत्र की कार्यक्षमता बढ़ाने में मददगार है। यह मुद्रा मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम को ऊर्जान्वित करने में सहायक है।

टिप्स

मुद्रा के अभ्यास से जुड़ी खास टिप्स

तेज धूप और दिन के समय जल शामक मुद्रा का अभ्यास न करें। इस आसन का अभ्यास किसी ठंडी और शांत जगह पर बैठकर करें ताकि आपका ध्यान पूरी तरह से इस मुद्रा पर केंद्रित हो सके। इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान अंगूठों से उंगलियों को अधिक न दबाएं, बल्कि सामान्य रूप से मुद्रा की अवस्था कायम रखें। इस मुद्रा का अभ्यास शांत दिमाग से करें और इस दौरान खाली पेट रहें।