4 दिन तक चलता है छठ पूजा का त्योहार, जानिए इनका महत्व
छठ पूजा का वार्षिक 4 दिवसीय त्योहार 17 नवंबर से शुरू हो रहा है, जबकि इसका समापन 20 नवंबर को है। यह त्योहार भगवान सूर्य को समर्पित है। इस दौरान महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं और भगवान सूर्य समेत छठी मैया से अपने परिवार और बच्चों की खुशहाली, समृद्धि और प्रगति के लिए प्रार्थना करती हैं। आइए आज हम आपको इस त्योहार के 4 दिनों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
नहाय-खाय से होती है त्योहार की शुरुआत
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होने वाले इस त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा के व्रत को रखने से पहले तन और मन दोनों साफ होने चाहिए। इसलिए पहले दिन व्रती स्नान कर नए कपड़े पहनते हैं और शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन चने की दाल और लौकी की सब्जी खाने का विशेष महत्व होता है।
खरना
त्योहार के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस बार खरना 18 नवंबर को है। इस दिन व्रती दिनभर कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं और शाम में व्रतियों के द्वारा गुड़ वाली खीर विशेष प्रसाद के रुप में बनाई जाती है। पूजा-पाठ करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और प्रसाद ग्रहण करने के बाद घर के सदस्यों को यह प्रसाद बांटते हैं। इसी दिन व्रती अगले दिन की पूजा के लिए भी प्रसाद बनाते हैं।
सूर्यास्त के समय अर्घ्य देना
इस बार सूर्य अर्घ्य 19 नवंबर को दिया जाएगा। जिस प्रकार हिंदू धर्म में उगते हुए सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। ठीक उसी प्रकार छठ पूजा के दौरान डूबते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम में पूजा की तैयारी करते हैं। फिर नदी या तलाब में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रती अगले दिन की पूजा की तैयारी में लग जाते हैं।
पूजा का समापन
छठ पूजा के चौथे दिन त्योहार का समापन हो जाता है। व्रत के समापन के दौरान उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य की उपासना के बाद वहां मौजूद लोगों को प्रसाद दिया जाता है। मान्यता के अनुसार, अगर कोई भी व्यक्ति श्रद्धा भाव से व्रत रखकर सूर्य देव की उपासना करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है।