
भारत की प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है भरतनाट्यम, जानिए इससे जुड़ी अहम बातें
क्या है खबर?
'भरतनाट्यम' भारत की प्राचीन नृत्य शैलियों में से एक है, जो तमिलनाडु से शुरू हुई है।
यह नृत्य धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है और इसे भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा माना जाता है।
भरतनाट्यम की खासियत इसकी जटिल मुद्राएं, नृत्य के दौरान उपयोग होने वाले पारंपरिक संगीत का सामान और इसकी गहरी धार्मिक विषयवस्तु हैं।
आइए आज हम आपको इस नृत्य शैली से जुड़ी अहम बातें बताते हैं।
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भरतनाट्यम का इतिहास
भरतनाट्यम लगभग 2,000 साल पुरानी नृत्य शैली है, जिसे सधिर अट्टम नाम से भी जाना जाता है।
यह नृत्य शैली भावम्, रागम् और तालम् इन तीन कलाओ का से मिलकर बना है।
19वीं सदी में मराठा राजा मार्तंड वर्मा ने इस कला को बचाया और इसे नया रूप दिया। उनके योगदान से भरतनाट्यम को नई पहचान मिली और यह आज दुनिया भर में मशहूर हो गई है।
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भरतनाट्यम की खासियतें
भरतनाट्यम की खासियत इसकी जटिल मुद्राएं और नृत्य के दौरान उपयोग होने वाले पारंपरिक संगीत का सामान हैं।
इसमें हाथों की जटिल मुद्राएं, पैर की तेज थाप, चेहरे के भाव और शरीर की गति शामिल होती हैं।
इस नृत्य शैली में 'अलारिप्पु', 'जति श्रृंगारम', 'विलयट्टा कळक्कु', 'नट्टुवनार', 'पल्लवी' जैसी रचनाएं होती हैं। यह नृत्य अपनी सुंदरता और गहराई के लिए जाना जाता है।
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भरतनाट्यम का प्रशिक्षण
भरतनाट्यम सीखने के लिए नियमित अभ्यास बहुत जरूरी होता है।
इसके लिए किसी अच्छे गुरु से प्रशिक्षण लेना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान शारीरिक व्यायाम, सांस लेने की तकनीक और संगीत के ज्ञान पर ध्यान देना चाहिए।
इसके अलावा अलग-अलग मुद्राओं और तालों का अभ्यास करना चाहिए ताकि प्रदर्शन में कोई कमी न आए।
भरतनाट्यम सीखने के लिए धैर्य और समर्पण की जरूरत होती है। नियमित अभ्यास से ही इस नृत्य में महारत हासिल की जा सकती है।
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भरतनाट्यम का महत्व
भरतनाट्यम न केवल एक कला रूप है बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अहम हिस्सा भी है।
यह हमें हमारे पूर्वजों की विरासत से जोड़ती है और हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व महसूस कराती है। इसलिए इसे बचाना और बढ़ावा देना जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अनमोल धरोहर का आनंद ले सकें और इसे समझ सकें।
भरतनाट्यम की गहराई और सुंदरता इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाती है।