
अफ्रीका का अनोखा जानवर है ओकापी, जानिए इससे जुड़े 5 रोचक तथ्य
क्या है खबर?
ओकापी को 'जिराफ का भाई' भी कहा जाता है, लेकिन यह जिराफ से बिल्कुल भी मिलता-जुलता नहीं है। यह अपने अनोखे रंग और पैटर्न के कारण मशहूर है। अफ्रीका के जंगलों में पाया जाने वाला यह जानवर अपने खास शारीरिक संरचना और व्यवहार के लिए जाना जाता है। आइए आज हम आपको ओकापी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य बताते हैं, जो आपको हैरान कर देंगे।
#1
अफ्रीका के जंगलों में मिलता है ओकापी
ओकापी मुख्य रूप से कांगो के जंगलों में पाया जाता है। ये जानवर घने पेड़ों में रहते हैं और वहां की हरियाली में छिपे रहना पसंद करते हैं। इनका आधा शरीर काले और सफेद धारियों से ढका होता है, जो इन्हें प्राकृतिक रूप से अपने परिवेश में छिपने में मदद करता है। इसके अलावा ओकापी की लंबी गर्दन और पैरों पर सफेद धारियां होती हैं, जो इन्हें अन्य जानवरों से अलग बनाती हैं।
#2
पौधों का करता है सेवन
ओकापी पूरी तरह से पौधों का सेवन करते हैं, यानी ये केवल पत्तियां, फल, फूल और छाल खाते हैं। इनका खाना मुख्य रूप से पेड़ों की पत्तियों पर निर्भर करता है। ओकापी को अपने खाने के लिए दिनभर पेड़ों पर चढ़कर पत्तियां तोड़नी पड़ती हैं। इनके लंबे जीभ का उपयोग करके ये ऊंचे पेड़ों से भी पत्तियां तोड़ लेते हैं। इसके अलावा ये अपने भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाते हैं।
#3
सुनने की क्षमता होती है तेज
ओकापी की सुनने की क्षमता बहुत तेज होती है। ये जानवर अपने आसपास की हर छोटी-छोटी आवाज सुन सकते हैं, जिससे उन्हें अपने शिकारियों का पता चल जाता है। इनकी सुनने की क्षमता इन्हें खतरे से पहले ही सचेत कर देती है, जिससे वे समय पर सुरक्षित स्थान पर भाग सकते हैं। इसके अलावा इनकी तेज सुनने की क्षमता इन्हें अपने साथी ओकापियों से बातचीत करने में भी मदद करती है।
#4
झुंड में रहते हैं ओकापी
ओकापी सामाजिक जानवर होते हैं, जो झुंड बनाकर रहते हैं। ये झुंड आमतौर पर परिवार के सदस्यों से मिलकर बनते हैं, जिसमें मादा ओकापी और उनके बच्चे शामिल होते हैं। मादा ओकापी अपने बच्चों को सुरक्षित रखने और उन्हें भोजन खोजने में मदद करती हैं। इसके अलावा ये अपने झुंड के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर खतरे से निपटने की योजना बनाते हैं, जिससे उनका जीवन सुरक्षित और सुविधाजनक बना रहता है।
#5
संख्या में हो रही है कमी
ओकापियों की संख्या पिछले कुछ दशकों में काफी घट गई थी, जिससे ये विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे। इसका मुख्य कारण उनके रहने की जगह का नाश और शिकार करना था। हालांकि, संरक्षण प्रयासों जैसे कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभ्यारण्य स्थापित किए गए थे ताकि इनकी संख्या बढ़ सके। अब धीरे-धीरे इनकी संख्या में सुधार हो रहा है, लेकिन इन्हें अभी भी खतरे का सामना करना पड़ रहा है।