भारत और चीन का कैलाश मानसरोवर यात्रा को दोबारा शुरू करना क्यों महत्वपूर्ण है?
क्या है खबर?
भारत और चीन ने आने वाली गर्मियों में प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा को दोबारा से शुरू करने का निर्णय लिया है।
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की चीन की यात्रा के दौरान इस पर सहमति बनी है।
बड़ी बात यह है कि यह निर्णय दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध समाप्त करने की दिशा में बातचीत के करीब 3 महीने बाद हुआ है।
ऐसे में आइए जानते हैं यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
कोरोना महामारी के बाद से बंद है यात्रा
कोरोना महामारी के बाद से कैलाश मानसरोवर बंद है। इस यात्रा में तिब्बत में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन शामिल हैं।
महामारी के बाद दोनों देशों के बीच उपजे तनाव के चलते चीन ने किसी भी समझौते को नवीनीकृत नहीं किया। उसके बाद गलवान घाटी में हुई हिंसा ने स्थिति को और खराब कर दिया।
अब इसका दोबारा से शुरू किया जाना दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की दिशा में काफी अहम माना जा रहा है।
महत्व
क्या है कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्व?
कैलाश मानसरोवर को विश्व के सबसे पवित्र पर्वतों में से एक माना जाता है। यह पवित्र पर्वत शक्तिशाली हिमालय के केन्द्र में स्थित है और सदियों से अस्तित्व में है।
यह पवित्र शिखर तिब्बतियों, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए आध्यात्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है।
तिब्बती मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत (मेरु पर्वत) ब्रह्मांडीय धुरी है, जो स्वर्ग और पृथ्वी को जोड़ती है। मान्यताओं के अनुसार, यह पर्वत रहस्यमय संत डेमचॉक का भी घर माना जाता है।
मान्यता
जैन धर्म में क्या है मान्यता?
जैन धर्म में मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर (जैन धर्म के आध्यात्मिक उपदेशक) ऋषभनाथ को कैलाश पर्वत पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
जैन साहित्य में कैलाश पर्वत को अष्टपद या आठ सीढ़ियां भी कहा गया है, जो ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।
इसी तरह हिंदु धर्म के लोग 21,778 फीट की ऊंचाई पर स्थित कैलाश पर्वत को देवी पार्वती और भगवान शिव का दिव्य निवास मानते हैं, जो त्रिमूर्ति परंपरा में संहारक हैं।
आध्यात्म
क्या है कैलाश पर्वत का आध्यात्मिक महत्व?
अपने विशाल आकार के अलावा, कैलाश पर्वत को पृथ्वी का आध्यात्मिक केंद्र भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत की चोटी पर ध्यान करते हैं।
हिंदू ग्रंथों के अनुसार, कैलाश पर्वत के दक्षिणी में स्थित मानसरोवर झील की कल्पना सबसे पहले भगवान ब्रह्मा ने अपने मन में की थी, जिसके बाद यह पृथ्वी पर अवतरित हुई। इस झील को देवी सती की 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
यात्रा
क्यों की जाती है कैलाश मानसरोवर की यात्रा?
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की यात्रा को भगवान शिव की कृपा पाने के साथ मोक्ष या मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है।
मानसरोवर झील पर तीर्थयात्री अक्सर 'कैलाश कोरा' या 'कैलाश परिक्रमा' करते हैं। इसे पूरा करने में ढाई से तीन दिन का समय लगाता है।
मान्यता है कि यात्रा से धन, नवीनीकरण और सौभाग्य का अनुभव होता है। हालांकि, विभिन्न धर्मों की धार्मिक प्रतिबद्धताओं के चलते कैलाश पर्वत पर चढ़ना आधिकारिक तौर पर वर्जित है।
रहस्य
कई रहस्यों का घर है कैलाश मानसरोवर
कैलाश पवित्र पर्वत अनेक अज्ञात सत्यों और रहस्यों का घर भी माना जाता है। वर्षों से कैलाश पर्वत का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक इसके रहस्यों से रोमांचित हैं।
नासा ने उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों में पर्वत पर भगवान शिव की मुस्कुराती हुई आकृति को दर्शाया है।
कई लोगों ने बताया है कि कैलाश पर्वत पर पहुंचने के 12 घंटों के भीतर उनके बालों और नाखूनों में असामान्य वृद्धि हुई। इसका निर्दोष पिरामिड आकार प्राचीन सभ्यताओं से इसका संबंध बताता है।
जानकारी
गर्मियों में बर्फ पिघलने पर निकलती है डमरू की घ्वनि
कैलाश पर्वत की अछूत स्थिति पूरी तरह से अस्पष्ट है। गर्मियों में जब बर्फ पिघलती है तो वहां एक अनोखी ध्वनि का संचार होता है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव के डमरू की ध्वनि है। इसे सुनकर लोग रोमांचित हो उठते हैं।
संबंध
भारत-चीन संबंधों को सुधारने में सहयोगी
कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू होना भारत और चीन के संबंधों को सुधारने की दिशा में बड़ा कदम है।
अक्टूबर में कजान में हुई बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति पर चर्चा की और संबंधों को मजबूत करने के लिए कुछ जन-केंद्रित उपाय अपनाने का निर्णय लिया था।
अब दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें और वीजा जारी करने की प्रक्रिया दोबारा शुरू करने पर भी सैद्धांतिक सहमति बन गई है।