केंद्र सरकार ने राज्यों से क्यों की सर्पदंश को अधिसूचित बीमारी घोषित करने की अपील?
क्या है खबर?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों से सर्पदंश (सांप के काटने) को अधिसूचित बीमारी घोषित करने की अपील की है।
इसके बाद सर्पदंश की घटना के संबंध में निजी और सार्वजनिक अस्पतालों को सरकार को सूचित करना कानूनी रूप से आवश्यक हो जाएगा।
दरअसल, देश में सर्पदंश की तेजी से बढ़ती घटनाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बन गई है और सरकार ने अब इस निपटने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है।
पत्र
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने लिखा राज्यों को पत्र
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सालिया ने सभी राज्य स्वास्थ्य सचिवों को भेजे पत्र में लिखा है कि सर्पदंश की निगरानी को मजबूत करने के लिए सभी सांप काटने के मामलों और मौतों की अनिवार्य अधिसूचना की आवश्यकता है।
उन्होंने लिखा इससे हितधारकों को सटीक बोझ, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों, सांप काटने के शिकार लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार कारकों आदि का पता लगाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही ऐसे मामलों में बेहतर नैदानिक प्रबंधन भी किया जा सकेगा।
मौत
भारत में हर साल सर्पदंश से होती है 58,000 मौतें
साल 2020 की इंडियन मिलियन डेथ स्टडी के अनुसार, हर साल सांप के काटने के करीब 30-40 लाख मामले सामने आते हैं और हर साल 58,000 लोग इसके कारण मरते हैं।
सरकार ने इस साल सर्पदंश की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPSE) शुरू की है, जिसका उद्देश्य 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों को आधा करना है।
NAPSE की सिफारिश पर ही सरकार ने राज्यों से सर्पदंश को अधिसूचित बीमारी बनाने की अपील की है।
बीमारी
किस प्रकार की बीमारी को अधिसूचित घोषित किया जाता है?
आमतौर पर ऐसी संक्रामक बीमारी, जिसमें मौत हो सकती है और जिनके लिए उचित सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय करने हेतु शीघ्र जांच की आवश्यकता होती है, उन्हें अधिसूचित रोग घोषित किया जाता है।
हालांकि, अधिसूचना योग्य बीमारियों की सूची हर राज्य के हिसाब से अलग-अलग है क्योंकि अधिसूचना जारी करने का काम राज्य सरकारें करती हैं।
अधिकांश राज्य तपेदिक, HIV, हैजा, मलेरिया, डेंगू और हेपेटाइटिस जैसे संक्रमणों को अधिसूचना योग्य मानते हैं।
घातक
किस तरह के सांपों का काटना हो सकता है घातक?
भारत में सांपों की 310 से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें से 66 जहरीली हैं और 42 हल्की जहरीली हैं। सांपों की 23 प्रजातियां चिकित्सकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं क्योंकि उनका जहर जानलेवा हो सकता है।
हालांकि, देश में लगभग 90 प्रतिशत सर्पदंश के मामले में भारतीय कोबरा, कॉमन क्रेट, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर सांपों के आते हैं।
वर्तमान में उपलब्ध सर्पदंश रोधी दवा (एंटीवेनम) इन चारों प्रजातियों के खिलाफ 80 प्रतिशत कारगर हैं।
जानकारी
इन राज्यों में होती है सर्पदंश की सर्वाधिक घटनाएं
NAPSE के अनुसार, अधिकांश सर्पदंश की घटनाएं बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों के घनी आबादी वाले, कम ऊंचाई वाले और कृषि क्षेत्रों में होती हैं। मौतों की संख्या भी इन्हीं राज्यों में सर्वाधिक हैं।
सूचना
केंद्र सरकार सर्पदंश की सूचना क्यों चाहती है?
सांप के काटने की सूचना देने से उचित निगरानी की उम्मीद है। इससे देश में सर्पदंश के सभी मामलों और मौतों की सटीक संख्या निर्धारित करने में भी मदद मिलेगी।
सरकार तब इस जानकारी का उपयोग सांप के काटने के मामलों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने, रोकने और नियंत्रित करने के लिए कर सकती है।
विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त एंटीवेनम (सर्पदंश से बचाव की दवा) उपलब्ध कराए जा सकते हैं और लोगों को उचित प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
चुनौती
सर्पदंश के उपचार में प्रमुख चुनौतियां क्या हैं?
सर्पदंश की घटना में पहली चुनाैती उपचार की है। सबसे पहले सर्पदंश के शिकार लोग या तो समय पर स्वास्थ्य देखभाल केंद्र तक नहीं पहुंच पाते या वहां जाते ही नहीं है। वह धार्मिक स्थलों पर उपचार कराने को तवज्जो देते हैं।
कई मामलों में स्वास्थ्य केंद्रों के कर्मचारियों को सर्पदंश के उपचार के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है।
इसके अलावा, अस्पतालों में सांप के काटने की पुष्टि के लिए कोई परीक्षण भी उपलब्ध नहीं हैं।
दवा
पर्याप्त मात्रा में एंटीवेनम की कमी भी है चुनौती
देश में एंटीवेनम विकसित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लगभग सारा जहर इरुला जनजाति द्वारा पकड़े गए सांपों से आता है, जो तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में रहते हैं।
यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि एक ही सांप की प्रजाति के जहर के जैव रासायनिक घटक और प्रभाव अलग हो सकते हैं।
ऐसे में इनसे तैयार एंटीवेनम सभी प्रजाति के सांपों के जहर के खिलाफ प्रभावी रूप से काम नहीं करता है। इससे एंटीवेनम की कमी रहती है।
जानकारी
शोधकर्ता उपचार के लिए कर रहे है यह विशेष प्रयास
एंटीवेनम की कमी के कारण शोधकर्ता अब कृत्रिम रूप से उत्पादित एंटीबॉडी विकसित कर रहे हैं जो विभिन्न सांप प्रजातियों के जहर को बेअसर करने में मदद करेगी। वो जहर से लड़ने के लिए कृत्रिम रूप से डिजाइन पेप्टाइड्स पर भी विचार कर रहे हैं।
चुनौती
सांपों का जहर एकत्र करना भी है बड़ी चुनौती
विशेषज्ञों ने देश भर में क्षेत्रीय सांप विष संग्रह बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया है ताकि क्षेत्रीय अंतरों को कवर करने वाले एंटीवेनम विकसित किए जा सकें।
हालांकि, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972, सांपों तक पहुंच को सीमित करता है, जिससे ऐसे बैंक स्थापित करना मुश्किल हो जाता है।
यही कारण है कि देश में विशेषज्ञ चाहकर भी सभी प्रजाति के सांपों के जहर के खिलाफ एंटीवेनम विकसित करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।