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क्या था POTA अधिनियम, जिसको रद्द किए जाने को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हुए अमित शाह?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने POTA अधिनियम को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला है

क्या था POTA अधिनियम, जिसको रद्द किए जाने को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हुए अमित शाह?

Jul 29, 2025
05:38 pm

क्या है खबर?

संसद के मानसून सत्र में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चल रही बहस में मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश की सुरक्षा में चूक के विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कांग्रेस पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतशील गठबंधन (UPA) सरकार पर अपने वोट बैंक को बचाने के लिए आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) को रद्द करने का आरोप लगाया। आइए जानते हैं यह अधिनियम क्या था और इसे क्यों रद्द किया गया।

हमला

शाह ने कांग्रेस पर कैसे बोला हमला?

सुरक्षा में चूक के सवाल पर शाह ने कहा, "पहलगाम आतंकी हमले की जिम्मेदारी सरकार लेती है, लेकिन कांग्रेस ने अपने शासन में हुए हमलों पर क्या किया। 6 साल में 25 बड़े हमले हुए, जिनमें लगभग 1,000 लोग मारे गए, लेकिन तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कुछ नहीं किया।" उन्होंने कहा, "2002 में NDA सरकार आतंकवाद निरोधक अधिनियम, 2002 (POTA) लेकर आई थी, तब किसने आपत्ती जताई थी? कांग्रेस ने 2004 में उसे क्यों रद्द कर दिया था।"

अधिनयम

क्या था POTA अधिनियम?

साल 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले समेत बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों को देखते हुए POTA अधिनियम लागू किया गया था। उस अधिनियम को आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (TADA) के स्थान पर 28 मार्च, 2002 को अधिसूचित किया गया था। उसका कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों में पुरजोर विराध किया था और सितंबर 2004 कांग्रेस ने सत्ता में आते ही इसे निरस्त कर दिया।

जानकारी

संयुक्त सत्र में पारित हुआ था विधेयक

POTA विधेयक राज्यसभा में 113-98 मतों से विफल हो गया था, लेकिन संयुक्त सत्र में 425-296 के अंतर से पारित हो गया था। यह केवल तीसरी बार था जब भारतीय संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में कोई विधेयक पारित हुआ।

प्रावधान

POTA अधिनियम में क्या किए गए थे प्रावधान?

POTA अधिनियम में किसी संदिग्ध को विशेष अदालत द्वारा 180 दिनों तक हिरासत में रखने, आतंकी संगठनों से संबंध होने के शक में गिरफ्तारी करने, आतंकवाद के लिए पैसा इकट्ठा पर भी अधिनियम के तहत कार्रवाई किए जाने के प्रावधान किए गए थे। इसी तरह इसमें फोन टैपिंग, संपत्ति जब्ती और गवाहों की गोपनीयता जैसे विशेष अधिकार भी दिए गए थे। इस कानून ने आतंकवाद के उद्देश्य से धन जमा करने को आतंकवादी कृत्य बना दिया था।

कार्रवाई

POTA अधिनियम के तहत जमकर हुई कार्रवाई 

POTA अधिनियम के लागू होने के 4 महीने बाद ही कानून प्रवर्तन अधिकारियों ने इस अधिनियम के तहत देश भर में 250 लोगों को गिरफ्तार कर लिया था और यह संख्या लगातार बढ़ रही थी। मात्र आठ महीने बाद, जिन सात राज्यों में पोटा लागू था, वहां 940 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से 560 को जेल भेज दिया गया था। वाइको जैसे कई प्रमुख व्यक्तियों को इस अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।

विरोध

क्यों हुआ था POTA अधिनियम का विरोध?

POTA अधिनियम से जांच एजेंसियों को आतंकी संगठनों पर नकेल कसने और उनके नेटवर्क को तोड़ने में बड़ी मदद मिल रही थी, लेकिन बाद में POTA का दुरुपयोग एक बड़ा मुद्दा बन गया। कई मानवाधिकार संगठनों के साथ कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि इस कानून का इस्तेमाल निर्दोष लोगों पर किया गया है। विवादों के चलते 2004 में UPA सरकार ने सत्ता में आने के बाद इस अधिनियम को रद्द कर दिया।

बदलाव

POTA अधिनियम के कई प्रावधानों को UAPA में किया था शामिल

POTA अधिनियम में आतंकवादी संगठनों से निपटने के लिए एक अलग अध्याय शामिल किया गया। केंद्र सरकार इस अनुसूची में किसी भी संगठन को जोड़ने या हटाने के लिए स्वतंत्र हो गई थी। ऐसे में विपक्ष ने इसे विरोधियों पर सरकार द्वारा कार्रवाई करने की चाबी करार दे दिया था। इसके कई प्रावधानों को 2004 में निरस्त किये जाने के बाद गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के संशोधनों में शामिल किया गया था।