
#NewsBytesExplainer: क्या है 3-भाषा नीति और तमिलनाडु इसका विरोध क्यों कर रहा है?
क्या है खबर?
भाषा को लेकर केंद्र सरकार और तमिलनाडु में टकराव बढ़ता जा रहा है। अब तमिलनाडु ने बजट लोगो में रुपये के प्रतीक को तमिल अक्षर 'Ru' से बदल दिया है।
बजट में रुपये के प्रतीक '₹' की जगह 'ரூ' का इस्तेमाल किया गया है, जिसका तमिल में मतलब रु होता है। इससे पहले भी तमिलनाडु केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगा चुका है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर हमलावर रहा है।
आइए पूरा विवाद समझते हैं।
नीति
क्या है 3-भाषा नीति?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में 3-भाषा नीति का प्रावधान किया गया है।
इसके मुताबिक, छात्रों को 3 भाषाएं सीखनी चाहिए। इनमें से कम से कम 2 भाषाएं भारत की मूल हों और तीसरी कोई अंतरराष्ट्रीय भाषा हो सकती है।
पहली भाषा छात्र की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। दूसरी भाषा आमतौर पर हिंदी होगी या राज्य की कोई दूसरी भारतीय भाषा होगी। वहीं, तीसरी भाषा अंग्रेजी या अन्य कोई विदेशी भाषा हो सकती है।
सिद्धांत
कब आया 3-भाषा का सिद्धांत?
3-भाषा सिद्धांत को पहली बार शिक्षा आयोग (1964-66) ने प्रस्तावित किया था। इसे कोठारी आयोग भी कहा जाता है।
इसे आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में अपनाया था। 1992 में नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली सरकार ने इसमें संशोधन किए थे।
इसका उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी की जरूरतों के अनुसार ढालना है, ताकि छात्र आधुनिक समय का व्यावहारिक ज्ञान और कौशल सीख सकें।
NEP 2020
NEP 2020 में 3-भाषा नीति को लेकर क्या कहा गया है?
NEP 2020 में स्कूल स्तर से बहुभाषिकता को बढ़ावा देने के लिए 3-भाषा सूत्र के शीघ्र कार्यान्वयन का आह्वान किया गया है।
इसमें कहा गया है कि बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली 3 भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित रूप से स्वयं छात्रों की पसंद होंगी, बशर्ते कि 3 भाषाओं में से कम से कम 2 भारत की मूल भाषाएं हों।
ध्यान देने वाली बात है कि राज्यों और स्कूलों को तीनों भाषाएं तय करने का अधिकार है।
विरोध
तमिलनाडु क्यों कर रहा है विरोध?
दरअसल, गैर-हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। केंद्र सरकार दूसरी भाषा के लिए हिंदी को प्रोत्साहित करती है, लेकिन राज्य अपने हिसाब से दूसरी भाषा भी चुन सकते हैं। तमिलनाडु का इस बात को लेकर विरोध है।
वहीं, तमिलनाडु में 2-भाषा फॉर्मूला लागू है। इसके तहत मातृभाषा के तौर पर तमिल और दूसरी भाषा में अंग्रेजी पढ़ाई जाती है।
तमिलनाडु का कहना है कि 3-भाषा नीति हिंदी थोपने की कोशिश है।
हिंदी
तमिलनाडु में हिंदी विरोध की ऐतिहासिक जड़ें
तमिलनाडु में हिंदी विरोध की जड़ें दशकों पुरानी है।
1963 में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के प्रस्ताव का भी तमिलनाडु में तीखा विरोध हुआ था। तब करीब 70 लोगों की मौत के बाद सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे।
1937 में ब्रिटिश शासन के दौरान मद्रास (अब तमिलनाडु) में हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने को भी व्यापक विरोध हुआ था।
हिंदी विरोध के पीछे द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (DMK) जैसी पार्टियों की राजनीतिक वजहें भी हैं।
विवाद
भाषा को लेकर तमिलनाडु और सरकार के बीच क्या-क्या हुआ?
तमिलनाडु द्वारा 3-भाषा नीति को लागू करने से इनकार करने के बाद केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत राज्य को मिलने वाले 537 करोड़ रुपये रोक दिए हैं।
इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन को पत्र भी लिखा था।
वहीं, मुख्यमंत्री स्टालिन का कहना है कि केंद्र उनके ऊपर हिंदी न थोपें, अगर जरूरत पड़ी तो तमिलनाडु 'एक और भाषा युद्ध' के लिए तैयार है।