#NewsBytesExplainer: क्या है MUDA घोटाला, जिसमें फंसे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया?
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ गई हैं। मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) मामले में राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है। इस मामले में सिद्धारमैया के साथ उनकी पत्नी और परिवार के सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं। विपक्षी पार्टियां इस मामले पर लंबे समय से कर्नाटक सरकार को घेर रही थी। आइए जानते हैं कि ये कथित घोटाला क्या है।
क्या है MUDA?
MUDA कर्नाटक की राज्य स्तरीय विकास एजेंसी है। इसका काम मैसूर में शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा विकसित करना और किफायती कीमत पर आवास उपलब्ध कराना है। MUDA ने शहरी विकास के दौरान जमीन खोने वालों के लिए 50:50 योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत किसी भूमि पर आवासीय लेआउट विकसित करने के लिए MUDA जमीन अधिग्रहित कर सकेगी, जिसके बदले में मालिक को 50 प्रतिशत जमीन विकसित जगह पर दी जाएगी।
50:50 योजना में घोटाले के क्या आरोप लगे?
आरोप लगे कि MUDA ने कुछ जमीन अवैध रूप से उन लोगों को आवंटित की, जो खुद को भूमिहीन बता रहे थे। इसमें बिचौलियों की भूमिका के अलावा MUDA अधिकारियों की मिलीभगत का भी संदेह है। ये भी आरोप हैं कि जिन लोगों की जमीन अधिग्रहित की गईं, उन्हें मुआवजे के रूप में अधिक मूल्य की जमीन आवंटित की गई। एक आरोप ये भी है कि 2020 में योजना को बंद करने के बाद भी MUDA ने जमीन आवंटित की।
कैसे आया मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का नाम?
दरअसल, सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के पास मैसूर के केसारे गांव में 3 एकड़ और 16 गुंटा जमीन थी, जो उनके भाई मल्लिकार्जुन ने उपहार में दी थी। इस जमीन को MUDA ने विकास के लिए अधिग्रहित किया था, जिसके बदले पार्वती को विजयनगर तीसरे और चौथे चरण के लेआउट में 38,283 वर्ग फीट की जमीन दी गई। आरोप है कि केसारे गांव की तुलना में इस जमीन की कीमत काफी ज्यादा है।
भाजपा के कार्यकाल में ही आवंटित हुई थी जमीन
दिलचस्प बात ये है कि पार्वती को जमीन 2022 में आवंटित हुई थी, तब राज्य में भाजपा की सरकार थी। सिद्धारमैया अपने बचाव में कई बार इस बात को कह चुके हैं। 2013 से 2018 के बीच जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे, तब उनके परिवार की तरफ से जमीन की अर्जी दी गई थी, लेकिन सिद्धारमैया ने फाइल को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि लाभार्थी उनका परिवार था।
मामले पर सिद्धारमैया का क्या कहना है?
सिद्धारमैया ने कहा था, "हमारी जमीन अधिग्रहित कर पार्क बना दिया गया और हमें मुआवजे के तौर पर एक प्लॉट दिया गया। आवंटन 2021 में भाजपा के कार्यकाल के दौरान किया गया था। अगर उन्हें लगता है कि यह कानून के खिलाफ है तो उन्हें बताना चाहिए कि यह कैसे सही है। अगर जमीन की कीमत 62 करोड़ रुपये है तो उन्हें प्लॉट वापस ले लेना चाहिए और हमें उसी के अनुसार मुआवजा देना चाहिए।"
बढ़ी हुई कीमत की जमीन आवंटन पर सिद्धारमैया का क्या रुख है?
सिद्धारमैया के कानूनी सलाहकार एएस पोन्नन्ना ने तर्क दिया कि आवंटित की गई जमीन की कीमत मूल भूमि से बहुत कम है। उन्होंने कहा, "भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार, पार्वती सरकार से 57 करोड़ रुपये अधिक पाने की हकदार हैं। उन्हें मुआवजे के रूप में मिली भूमि का मूल्य 15-16 करोड़ रुपये है, जो कि मूल भूमि से बहुत कम है। आवंटित भूमि (38,284 वर्ग फीट) का आकार मूल भूमि (1,48,104 वर्ग फीट) से बहुत कम है।"
राज्यपाल ने जारी किया था कारण बताओ नोटिस
RTI कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने सिद्धारमैया के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। शिकायत में अब्राहम ने सिद्धारमैया के अलावा उनकी पत्नी, बेटे और MUDA के कमिश्नर के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी मांग की थी। इसके बाद राज्यपाल ने बीते दिनों सिद्धारमैया को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति क्यों ना दी जाएं? सिद्धारमैया ने कहा है कि वे इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देंगे।