#NewsBytesExplainer: क्या होती है कृत्रिम बारिश और दिल्ली में प्रदूषण कम करने में ये कितनी कारगर?
क्या है खबर?
दिल्ली में दिवाली के बाद वायु प्रदूषण बेहद गंभीर हो गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 को पार कर गया है, जो बेहद गंभीर श्रेणी में आता है। ऐसे में प्रदूषण कम करने के लिए अब दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी हो रही है। इसका परीक्षण भी पूरा हो चुका है। संभावना है कि अगले हफ्ते कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है। आइए जानते हैं कृत्रिम बारिश क्या होती है और कैसे कराई जाती है।
बारिश
क्या होती है कृत्रिम बारिश?
आसान भाषा में समझें तो एक होती है सामान्य बारिश, जो आमतौर पर जून से लेकर सितंबर तक होती है। ये बारिश पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से होती है। इसके उलट जब कृत्रिम परिस्थितियां पैदा कर बारिश करवाई जाती है तो उसे कृत्रिम बारिश कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए अलग-अलग रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है।
तरीका
कैसे करवाई जाती है कृत्रिम बारिश?
इस प्रक्रिया में बादलों के बीच रसायनों का छिड़काव किया जाता है, जो संघनन की प्रक्रिया को तेज करते हैं। आमतौर पर सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड जैसे लवणों का इस्तेमाल किया जाता है। ये रसायन हवा से पानी के कणों को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। इससे बादलों में पानी की बूंदें जम जाती हैं और भारी होने पर ये बारिश के रूप में गिरने लगती हैं।
बारिश
क्या कहीं भी कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है?
ऐसा नहीं है। कहीं भी कृत्रिम बारिश नहीं करवाई जा सकती। इसके लिए नमी वाले बादलों का होना जरूरी है। अगर हवा में नमी नहीं होगी, तो बारिश नहीं करवाई जा सकती है। ये तकनीक सिर्फ बादलों में संघनन की प्रक्रिया बढ़ा सकती है, बादल नहीं बना सकती। इसीलिए ऐसे दिन का चयन किया जाता है, जब बादलों की मौजूदगी हो। इस दौरान हवा के बहाव की दिशा से भी खासा असर होता है।
असर
प्रदूषण रोकने में कितनी कारगर है कृत्रिम बारिश?
कृत्रिम बारिश से वायु प्रदूषण को कितना काबू किया जा सकता है, इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है और इस पर अध्ययन जारी है। हालांकि, ये हवा से प्रदूषक तत्वों और धूल को साफ करने में मदद करती है। लंबे समय तक बारिश होने से सूक्ष्म कण PM 2.5 और PM 10 भी साफ हो जाते हैं, लेकिन ओजोन और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे अन्य प्रदूषकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है।
इतिहास
क्या पहले करवाई गई है कृत्रिम बारिश?
1945 में इस तकनीक को विकसित किया गया था। तब से अब तक करीब कई देश इसका इस्तेमाल कर चुके हैं। भारत में भी कई बार कृत्रिम बारिश कराई गई है। 1951 में टाटा द्वारा पश्चिमी घाटों पर सबसे पहले इस तरह की बारिश करवाई गई थी। इसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सूखे से निपटने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा चुका है। 2008 ओलिंपिक में चीन ने भी कृत्रिम बारिश करवाई थी।
विशेषज्ञ
क्या कहते हैं जानकार?
IIT दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज में पढ़ाने वाले शहजाद गनी और कृष्णा अच्युता राव के मुताबिक, "बादल होने पर भी कृत्रिम वर्षा में विश्वसनीय वृद्धि होने के प्रमाण कमजोर और विवादास्पद बने हुए हैं। जब बारिश होती है और प्रदूषण कम होता है, तो यह राहत अस्थायी होती है। प्रमाण बताते हैं कि प्रदूषण का स्तर 1-2 दिन में फिर से बढ़ जाता है।" दोनों विशेषज्ञों ने इसके पर्यावरण पर होने वाले असर पर भी सवाल उठाए हैं।
दिल्ली
दिल्ली में कब कृत्रिम बारिश करवाने की योजना है?
23 अक्टूबर को IIT कानपुर ने दिल्ली के पर्यावरण विभाग के साथ मिलकर कृत्रिम बारिश का प्रशिक्षण किया था। इस दौरान एक विमान ने IIT कानपुर से मेरठ, खेकड़ा, बुराड़ी, सादकपुर, भोजपुर, अलीगढ़ होते हुए दिल्ली तक एक ट्रायल सीडिंग उड़ान भरी। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "मौसम विभाग के अनुसार 28, 29 और 30 अक्टूबर को बादल छाने की संभावना है। अगर मौसम अनुकूल रहा तो 29 अक्टूबर को दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की संभावना है।"