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सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी, गुरुद्वारे में नहीं किया था प्रवेश
सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी बरकरार रखी, गुरुद्वारे में नहीं किया था प्रवेश

लेखन गजेंद्र
Nov 25, 2025
01:33 pm

क्या है खबर?

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है। अधिकारी ने अपनी रेजिमेंट के मंदिर और गुरुद्वारे के धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने से इंकार कर दिया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की पीठ ने सैन्य अधिकारी सैमुअल कमलेसन के इस कृत्य पर नाराजगी जताई। पीठ ने पूछा कि क्या इनकार करना उनके अधीनस्थ सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के समान नहीं है?

सुनवाई

कोर्ट ने कहा- सेना के लिए अनुपयुक्त

लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए CJI कांत ने कहा, "यदि एक सेना अधिकारी का यह रवैया है, तो फिर क्या कहा जाए!" उन्होंने उसे सेना के लिए पूरी तरह से अनुपयुक्त बताया। कोर्ट ने कहा, "सेना का दृष्टिकोण पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है। आप कहीं और अच्छा कर सकते हैं...किसी संवैधानिक प्रावधान में कोई अस्पष्टता है, तो हम उस पर गौर करेंगे। आप सैन्य नियम उल्लंघन के दोषी हैं। आपने सैनिकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।"

मामला

क्या है मामला?

वर्ष 2017 में कमीशन प्राप्त, लेफ्टिनेंट कमलेसन को सिख स्क्वाड्रन में नियुक्त किया गया था। उन्होंने अनिवार्य रेजिमेंटल परेड के दौरान धार्मिक स्थलों के आंतरिक गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार करने कर दिया था, जिसके बाद 2021 में अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत बर्खास्त किया गया था। कमलेसन का दावा था कि यह उनके धर्म और उनके सैनिकों की भावनाओं के प्रति सम्मान था ताकि आंतरिक गर्भगृह में अनुष्ठानों में शामिल होने से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे।

चुनौती

सैन्य अधिकारी ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती

कमलेसन मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट गए थे। कोर्ट ने मई में उनकी बर्खास्तगी को यह कहते हुए बरकरार रखा कि अपने सैनिकों के कमांडिंग ऑफिसर के रूप में, उनके पास अतिरिक्त जिम्मेदारियां थीं और इस मामले में प्रश्न धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि वरिष्ठों के वैध आदेश का पालन करने का था। इसके बाद कमलेसन ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सेना के मुताबिक, कमलेसन के इनकार ने एकजुटता और सैनिकों का मनोबल कमजोर किया है।

बयान

सेना ने कहा कि पादरियों ने दी थी इजाजत

सेना की ओर से कोर्ट में बताया गया कि कमलेसन के इनकार के बाद कमांडिंग अधिकारियों ने आश्वासन दिया और ईसाई पादरियों से परामर्श किया था, जिसमें कोई संघर्ष न होने का सुझाव दिया गया था, लेकिन फिर भी कमलेसन ने अपना रुख बदलने से इनकार कर दिया। कमलेसन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा, "जब आपके पास जाति आदि के आधार पर जाट रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट आदि हैं तो धर्मनिरपेक्षता क्या है?" हालांकि, कोर्ट इससे सहमत नहीं था।