सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दृष्टिबाधित व्यक्ति भी बन सकते हैं न्यायाधीश
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मध्य प्रदेश के न्यायिक सेवा नियम को रद्द करते हुए ऐसा फैसला सुनाया, जिसे दृष्टिबाधित व्यक्तियों की बड़ी जीत बताई जा रही है।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी भी व्यक्ति को उसकी शारीरिक अक्षमता के कारण न्यायिक सेवा में भर्ती से वंचित नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्य को दिव्यांगों के प्रति ऐसे भेदभाव को रोककर समावेशी ढांचा सुनिश्चित करने की कार्रवाई करनी चाहिए।
फैसला
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि कटऑफ या अन्य प्रक्रियात्मक बाधाओं जेसै अप्रत्यक्ष भेदभाव, जो दिव्यांग व्यक्तियों को प्रतियोगिता से बाहर करती हैं, उनको समानता सुनिश्चित करने के लिए देखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत पात्रता का आकलन करते समय उन्हें सुविधा प्रदान करने पर जोर दिया और कहा कि किसी भी उम्मीदवार को केवल उनकी दिव्यांगता के कारण विचार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
रद्द
कोर्ट ने मध्य प्रदेश के नियम को रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों में एक नियम को खारिज करते हुए फैसला सुनाया कि दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवार न्यायिक सेवा चयन में भाग लेने के पात्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मध्य प्रदेश सेवा परीक्षा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 के नियम 6A के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले में दिया है।
कोर्ट ने राजस्थान न्यायिक सेवा के लिए दिव्यांग उम्मीदवारों द्वारा दायर याचिकाओं को भी संबोधित किया।
नियम
क्या है मध्य प्रदेश का सेवा नियम, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया?
मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम के मुताबिक, दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवार न्यायिक सेवा के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे।
पीठ ने मध्य प्रदेश सेवा नियमों के नियम 7 को भी खारिज कर दिया, जिसमें 3 साल की अभ्यास अवधि या 70 प्रतिशत कुल अंक की आवश्यकता थी।
कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले में यह नियम अभी भी दिव्यांग उम्मीदवारों पर लागू होगा, लेकिन पहले प्रयास या 3साल के अभ्यास की आवश्यकता के बिना।