
सोनिया गांधी का निकोबार परियोजना को लेकर सरकार पर हमला, बताया आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन
क्या है खबर?
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार पर 'ग्रेट निकोबार मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना' को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इस परियोजना को द्वीप के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के अस्तित्व का खतरा बताते हुए सुनियोजित दुस्साहस करार दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह परियोजना आदिवासी समुदायों के अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन करती है, लेकिन उसके बाद भी इसे असंवेदनशील तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। आइए जानते हैं उन्होंने क्या-कुछ कहा।
हमला
कानूनी प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है परियोजना- सोनिया
सोनिया ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू में 'निकोबार में एक पारिस्थितिक आपदा का निर्माण' शीर्षक से प्रकाशित एक लेख में लिखा, 'यह परियोजना निकोबार द्वीप के आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा है। इसके जरिए कानूनी प्रक्रियाओं और बातचीत की मर्यादाओं का मजाक उड़ाया जा रहा है।' उन्होंने आगे लिखा, 'भविष्य की पीढ़ियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता एक अत्यंत विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र के इतने बड़े पैमाने पर विनाश की अनुमति नहीं दे सकती है।'
खतरा
'परियोजना से वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिकी तंत्र को होगा खतरा'
सोनिया ने लिखा, 'सरकार के योजनाबद्ध कुप्रयासों की कड़ी में 'ग्रेट निकोबार मेगा-इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना' नवीनतम है। 72,000 करोड़ रुपये लागत की यह योजना द्वीप के आदिवासी समुदायों के अस्तित्व और दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक को खतरा पैदा करती है। यह प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी बहुत अधिक संवदेनशील होगी। फिर भी इसे असंवेदनशील तरीके से आगे बढ़ाकर कानूनी प्रक्रियाओं और बातचीत की मर्यादाओं का मजाक उड़ाया जा रहा है।'
परेशानी
निकोबारी और शोम्पेन जनजाति का घर है द्वीप- सोनिया
सोनिया ने लिखा, 'ग्रेट निकोबार द्वीप दो मूल समुदायों निकोबारी और शोम्पेन जनजाति का घर है, जो एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह हैं। निकोबारी आदिवासियों के पैतृक गांव इस परियोजना के प्रस्तावित भू-क्षेत्र में आते हैं।' उन्होंने लिखा, '2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के दौरान निकोबारी लोगों को अपने गांव छोड़ने पड़े थे। यह परियोजना अब इस समुदाय को स्थायी रूप से विस्थापित कर देगी, जिससे उनका अपनी जमीन वापस मिलने का सपना टूट जाएगा।'
आरोप
साेनिया ने लगाया आदिवासी अधिकारों की रक्षा न करने का आरोप
सोनिया ने लिखा, 'इस परियोजना में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद 338-A के तहत सरकार को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से परामर्श करना चाहिए था, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रही।' उन्होंने लिखा, 'सरकार को ग्रेट निकोबार और लिटिल निकोबार द्वीप समूह की जनजातीय परिषद से परामर्श करना चाहिए था। परिषद ने निकोबारी आदिवासियों को उनके पैतृक गांवों में लौटने की अनुमति देने की सिफारिश की है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया है।'
प्रभाव
सोनिया ने परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव पर भी जोर दिया
सोनिया ने लिखा, 'इस परियोजना का पर्यावरणीय प्रभाव भी गंभीर है। इसमें द्वीप के लगभग 15 प्रतिशत जंगल काटे जाएंगे, जिसमें 8.5 लाख से अधिक पेड़ शामिल हैं। सरकार का प्रस्तावित समाधान 'प्रतिपूरक वनरोपण' है, लेकिन यह समाधान उस क्षेत्रीय और जैविक विविधता वाले जंगलों के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।' उन्होंने लिखा, 'परियोजना का बंदरगाह कछुए और प्रवाल भित्तियां के घर तटीय क्षेत्र (CRZ 1A) में बन रहा है। यह क्षेत्र भूकंप और सूनामी के लिए संवेदनशील है।'
परियोजना
'ग्रेट निकोबार मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना' क्या है?
बता दें कि 'ग्रेट निकोबार मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना' में करीब 72,000 करोड़ रुपये की लागत से एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले एक बिजली संयंत्र का निर्माण किया जाएगा। गत दिनों लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम को पत्र लिखकर परियोजना को मंजूरी देने में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कथित उल्लंघन पर चिंता जताई थी।