विदेश मंत्री बोले- UN में सबकुछ ठीक नहीं, संगठन के फैसले अब प्राथमिकताओं को नहीं दर्शाते
क्या है खबर?
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र (UN) में सब कुछ ठीक नहीं है और संगठन के फैसले अब दुनिया की प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। ये बातें उन्होंने UN की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक डाक टिकट जारी करने के दौरान कही। जयशंकर ने कहा, "संघर्ष के दौर में शांति की जरूरत है और डाक टिकट इसी का प्रतीक है। दुनिया मुश्किल दौर से गुजर रही है। UN में सब कुछ ठीक नहीं है।"
टिप्पणी
जयशंकर ने कहा- UN में बहसें ध्रुवीकृत हो गई
जयशंकर ने कहा, "इस वैश्विक संस्था के भीतर बहसें तेजी से ध्रुवीकृत हो गई हैं और जमीनी हकीकत से कट गई हैं। कई बड़े निर्णय दुनिया की वास्तविक जरूरतों और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते। UN को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए गंभीर सुधारों की जरूरत है। भारत हमेशा से UN का दृढ़ समर्थक रहा है और आगे भी रहेगा, लेकिन वैश्विक दक्षिण की आवाज और वास्तविक शक्ति-संतुलन को शामिल किए बिना संगठन एकतरफा और अप्रभावी बना रहेगा।"
चीन
जयशंकर ने चीन को भी घेरा
जयशंकर ने कहा कि वैश्विक रणनीति के नाम पर आतंकवाद के पीड़ितों और अपराधियों को समान दर्जा दिया जा रहा है, जो निंदनीय है। उन्होंने कहा, "जब आत्म-घोषित आतंकवादियों को प्रतिबंधित करने से बचाया जाता है, तो यह उन लोगों की ईमानदारी पर सवाल है जो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की बात करते हैं।" उनकी ये टिप्पणी चीन को लेकर है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में आतंकवादियों पर प्रतिबंध के प्रस्तावों को कई बार रोक चुका है।
भारत
जयशंकर ने UN को समावेशी बनाने पर दिया जोर
जयशंकर ने कहा, "वैश्विक चुनौतियां तभी हल होंगी, जब UN न्यायपूर्ण और समावेशी बनेगा। भारत एक जिम्मेदार और भरोसेमंद साझेदार के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहेगा और संगठन को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए सुधारों की मांग जारी रखेगा। 80 साल बाद यह स्पष्ट है कि UN अपनी मूल भावना तक पहुंचने में पीछे रह गया है। अब बदलाव का वक्त है वरना इतिहास इस संस्था को अप्रासंगिक ठहराने में देर नहीं करेगा।"
आतंकवाद
जयशंकर ने आतंकवाद पर दोहरे रवैये की भी आलोचना की
जयशंकर ने पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुरक्षा परिषद के कुछ स्थायी सदस्य खुले तौर पर ऐसे संगठनों का बचाव करते हैं जो इन हमलों की जिम्मेदारी लेते हैं। उन्होंने कहा, "अगर विश्व शांति के मंच पर बैठे देश ही आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपनाएंगे, तो वैश्विक सुरक्षा का पूरा ढांचा कमजोर पड़ जाएगा। कई बार वैश्विक निर्णय वास्तविक आवश्यकताओं के बजाय राजनीतिक हितों पर आधारित होते हैं।"