कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 9 चीतों की मौत के बाद प्रोजेक्ट चीता पर क्यों उठे सवाल?
क्या है खबर?
मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अब तक 9 अफ्रीकी चीतों की मौत हो चुकी है।
इसके अलावा 2 चीते जंगल में छोड़े जाने के लिए फिलहाल योग्य नहीं हैं, जबकि एक चीता लापता है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीते की लगातार मौतें होने के बाद प्रोजेक्ट चीता की सफलता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
आइए समझते हैं कि इसके पीछे क्या कारण सामने आए हैं।
कारण
क्या कहते हैं प्रोजेक्ट चीता के मानक?
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, केंद्र सरकार के चीता एक्शन प्लान 2022 के अनुसार, प्रोजेक्ट चीता की सफलता के लिए पहले वर्ष में कम से कम 50 प्रतिशत चीतों का जीवित रहना जरूरी है।
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए कुल 20 चीतों में से 6 चीतों की मौत हो चुकी है, वहीं एक मादा चीता के 3 नवजात शावकों की भी मौत हो गई है।
इस मानक के अनुसार, प्रोजेक्ट चीता असफल होने की कगार पर पहुंच गया है।
कारण
नामीबिया से लाए गए 2 चीते जंगल में छोड़े जाने के लिए अयोग्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को अपने जन्मदिन के मौके पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों के पहले जत्थे को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा था।
एक साल की अवधि पूरी होने से पहले ही दो चीतों की मौत हो गई है, जबकि अन्य दो चीतों को जंगल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
इसके साथ ही एक मादा शावक के चार शावकों में से केवल एक ही शावक जीवित बचा है।
मामला
दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 4 चीतों की हुई मौत
बता दें कि 12 चीतों का दूसरा जत्था इस साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से भारत आया था। अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए हैं और उनमें से चार चीतों की मौत हो चुकी है, जबकि एक चीता लापता है।
इस लिहाज से कुल 20 व्यस्क चीतों की आबादी 45 प्रतिशत कम होकर 11 हो गई है, जबकि एक साल पूरे में छह महीने अभी भी बाकी हैं।
चुनौती
भारत के वातावरण में ढलना अफ्रीकी चीतों के लिए मुख्य चुनौती
प्रोजेक्ट चीता से जुड़ी चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती अफ्रीकी चीतों को भारत में उनके नए वातावरण के अनुकूल बनाना है। चीतों को उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के खुले घास के मैदानों, घने वनस्पतियों और पहाड़ी इलाकों में रहने के लिए जाना जाता है।
वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि सवाना के घास के मैदानों के गीले और सूखे मौसम और उष्णकटिबंधीय जलवायु के विपरीत भारतीय परिस्थितियों में इन चीतों को ढलने में कई वर्ष लगेंगे।
बयान
अधिकारियों का क्या कहना है?
पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि चीता संरक्षण कोष (CCF) द्वारा कैद में पाले गए तीन चीते भारत लाए गए पहली खेप का हिस्सा थे।
उन्होंने कहा, "हम सभी जानते थे कि वे तीनों जंगल में नहीं रह पाएंगे। एक चीता वैसे भी शुरू से ही बीमार था और किडनी फेल होने से उसकी मृत्यु हो गई। अन्य दो प्रजनन करने वाली मादा चीतों को बाड़े में रखा गया था, जिनमें से एक की मौत हो गई।"
विलुप्त पर्यावरण
भारत में 1952 में विलुप्त घोषित कर दिए गए थे चीते
भारत में साल 1948 में आखिरी बार चीते देखने को मिले थे। इसके बाद चीते नजर नहीं आए और 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया।
चीतों को दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर माना जाता है और ये जंगली बिल्ली की श्रेणी में आते हैं।
1970 के दशक में ऐतिहासिक श्रेणियों में शामिल जानवरों की प्रजातियों को फिर से देश में स्थापित करने की योजना के तहत कई देशों से करार किया गया था।