
मृत्युदंड का तरीका बदलने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, कोर्ट ने कहा- सरकार तैयार नहीं
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट में आज मौत की सजा के लिए फांसी के बजाय जहर का इंजेक्शन देने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस तरीके को बदलने के लिए तैयार नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "समस्या यह है कि सरकार ही इसे बदलने को तैयार नहीं है। यह बहुत पुरानी प्रक्रिया है और समय के साथ चीजें बदल गई हैं।"
सुनवाई
सुनवाई के दौरान क्या-क्या हुआ?
जस्टिस मेहता ने केंद्र के वकील को सुझाव दिया कि वह मृत्युदंड दोषियों को विकल्प उपलब्ध कराने के संबंध में याचिकाकर्ता के प्रस्ताव पर सरकार को सलाह दें। इस पर वकील ने कहा, "इस पर ध्यान दिया गया है। विकल्प देना बहुत व्यावहारिक नहीं हो सकता है।" वकील ने सुप्रीम कोर्ट के मई, 2023 के एक आदेश का हवाला दिया। उसमें अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि सरकार इस संबंध में एक समिति के गठन का विचार कर रही है।
याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता ने क्या दलील दी?
यह याचिका वरिष्ठ वकील ऋषि मल्होत्रा ने दायर की है। उन्होंने कहा कि कम से कम दोषी कैदी को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह फांसी के जरिए मृत्युदंड चाहता है या फिर जहरीले इंजेक्शन के जरिए। मल्होत्रा ने कहा, "मैं यह दिखाऊंगा कि सबसे अच्छा तरीका जहरीला इंजेक्शन है। इंजेक्शन देकर फांसी देना त्वरित, मानवीय और सभ्य है, जबकि फांसी देना क्रूर और बर्बर है, क्योंकि इसमें शव लगभग 40 मिनट तक रस्सी पर लटका रहता है।"
मांग
याचिककार्ता ने क्या मांग की है?
याचिकाकर्ता ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 354(5) फांसी देकर मृत्युदंड देने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। याचिका में संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि मृत्युदंड के तरीके को जितना हो सके उतना कम पीड़ा पहुंचाने वाला होना चाहिए।
मामला
मामले को लेकर कब-क्या हुआ?
मल्होत्रा ने 2017 में जनहित याचिका दायर कर मृत्युदंड के लिए फांसी के बजाय जहरीला इंजेक्शन, गोली मारना या बिजली का झटका देना जैसे तरीकों को अपनाने की मांग की थी। 2018 में केंद्र ने कहा था कि इंजेक्शन जैसे फांसी के अन्य तरीके भी कम दर्दनाक नहीं हैं। गृह मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया था, "फांसी से भी मौत जल्दी और आसान होती है और इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जो पीड़ा को अनावश्यक रूप से बढ़ाए।"