भीमा कोरेगांव मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू को मिली जमानत
क्या है खबर?
महाराष्ट्र की बॉम्बे हाई कोर्ट ने एल्गर परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति एएस गडकरी और रंजीत सिंह आर भोंसले की खंडपीठ ने बाबू को एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी। वह 5 साल से अधिक समय से हिरासत में हैं। कोर्ट ने कहा कि बिना मुकदमा शुरू किए लंबे समय तक जेल में रखना शीघ्र सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
जमानत
पिछली जमानत याचिका हो चुकी है खारिज
प्रोफेसर बाबू को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 28 जुलाई, 2020 को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्होंने जमानत के कई प्रयास किए। उनकी पिछली जमानत याचिकाएं एक विशेष NIA अदालत और 2022 में हाई कोर्ट द्वारा खारिज की जा चुकी है। मई 2024 में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, जो वापस ले ली। बाद में उन्होंने परिस्थितियों में बदलाव का हवाला देते हुए जमानत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आरोप
प्रोफेसर हनी बाबू पर क्या है आरोप?
प्रोफेसर बाबू को NIA ने माओवादी साजिश से कथित जुड़ाव के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया था। उन पर रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के साथ गहरे जुड़ाव का आरोप लगाया गया है। उन पर वामपंथी किताब 'सीक्रेसी हैंडबुक' का पालन करने का भी आरोप है, जिसमें लिखा है कि "एक कॉमरेड गिरफ्तार होने पर दूसरे कॉमरेडों को कानूनी प्रतिनिधित्व, प्रचार और विरोध-प्रदर्शन से मदद करनी चाहिए।"
जानकारी
लगातार जमानतों से मिली राहत
बाबू को जमानत मिलने का रास्ता तब खुला, जब मामले में 8 लोगों को जमानत मिली। हाई कोर्ट ने रोना विल्सन, कार्यकर्ता सुधीर धावले, सुधा भारद्वाज को जमानत दी, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पी वरवर राव, शोमा सेन, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा जमानत दी।