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    #NewsBytesExplainer: बाबरी मस्जिद के निर्माण से राम मंदिर के निर्माण तक, अयोध्या विवाद की पूरी कहानी
    अयोध्या में सदियों पुराने जमीनी विवाद के बाद राम मंदिर का निर्माण पूरा हुआ है

    #NewsBytesExplainer: बाबरी मस्जिद के निर्माण से राम मंदिर के निर्माण तक, अयोध्या विवाद की पूरी कहानी

    लेखन नवीन
    Jan 16, 2024
    06:23 pm

    क्या है खबर?

    अयोध्या में कुछ दिनों में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होना है। 22 जनवरी को मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम तय है और इसके लिए मंगलवार से अनुष्ठान भी शुरू हो गए हैं।

    अयोध्या विवाद देश के सबसे बड़े पुराने जमीन विवादों में शामिल था। इस लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और 5 अगस्त, 2020 को यहां राम मंदिर की आधारशिला रखी गई थी।

    आइए आपको ये पूरा विवाद एक बार फिर से समझा देते हैं।

    मस्जिद

    16वीं सदी में बाबर के आदेश पर बनाई गई मस्जिद

    सरकारी दस्तावेजों और शिलालेखों के अनुसार, अयोध्या में विवादित स्थल पर 1528 से 1530 के बीच मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाकी ने एक मस्जिद बनवाई थी, जिसे आमतौर पर बाबरी मस्जिद कहते हैं।

    इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।

    हालांकि, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के सर्वे में विवादित जगह पर पहले गैर-इस्लामिक ढांचा होने की बात कही गई थी।

    विवाद

    राम मंदिर नहीं, बल्कि दूसरे मंदिर की वजह से शुरू हुआ विवाद

    दिलचस्प बात ये है कि बाबरी मस्जिद पर झगड़े की शुरुआत राम मंदिर नहीं, बल्कि किसी अन्य मंदिर को लेकर हुई थी।

    दरअसल, 1855 में नवाबी शासन के दौरान कुछ मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद से कुछ 100 मीटर दूर अयोध्या के प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर कब्जे के लिए धावा बोल दिया था।

    हमला करने वाले मुसलमानों का दावा था कि एक मस्जिद तोड़कर ये मंदिर बनाया गया था, यानि ये अयोध्या विवाद के बिल्कुल विपरीत मामला था।

    जानकारी

    हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को खदेड़ा 

    हनुमानगढ़ी मंदिर पर हिंदू वैरागियों और मुस्लिमों के बीच खूनी संघर्ष हुआ और वैरागियों ने हमलवारों को वहां से खदेड़ दिया। अपनी जान बचाने के लिए हमलावर बाबरी मस्जिद में जा छिपे, लेकिन वैरागियों ने मस्जिद में घुसकर उनका कत्ल कर दिया।

    चबूतरा

    1857 के बाद वैरागियों ने बनाया चबूतरा 

    इस बीच 1857 में अवध में नवाब का राज खत्म हो गया और ये सीधे ब्रिटिश प्रशासन के अंतर्गत आ गया।

    माना जाता है कि इसी दौरान वैरागियों ने मस्जिद के बाहरी हिस्से में चबूतरा बना लिया और वहां भगवान राम की पूजा करने लगे।

    प्रशासन से जब इसकी शिकायत की गई तो उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए चबूतरे और बाबरी मस्जिद के बीच एक दीवार बना दी, लेकिन दोनों का मुख्य दरवाजा एक ही रहा।

    मुकदमा

    1885 में दाखिल किया गया पहला केस 

    अयोध्या विवाद में मुकदमेबाजी की शुरुआत 1885 में हुई।

    29 जनवरी, 1885 को निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुबर दास ने सिविल कोर्ट में केस दायर करते हुए 17X21 फुट लम्बे-चौड़े चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान बताया और वहां मंदिर बनाने की अनुमति मांगी।

    उन्होंने खुद को चबूतरे वाली जमीन का मालिक बताया।

    पहले सिविल कोर्ट, फिर जिला कोर्ट और फिर अवध के जुडिशियल कमिश्नर की कोर्ट, तीनों ने वहां मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी।

    दावा

    राम चबूतरे के भगवान राम का जन्मस्थान होने का था दावा 

    तीनों कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान राम चबूतरे को हिंदुओं की आस्था का प्रतीक माना, लेकिन जमीन के मालिकाना हक के सबूत न होने और शांति बनाए रखने के लिए मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी।

    यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि हिंदू राम चबूतरे को भगवान राम का जन्मस्थान बता रहे हैं और वहीं पर मंदिर बनाने की अनुमति मांग रहे हैं। मस्जिद की मुख्य इमारत पर अभी तक कोई दावा नहीं किया गया था।

    जानकारी

    1949 में मस्जिद में बंद हुई नमाज 

    इसके बाद आजादी के समय हिंदू-मुस्लिम तनाव का असर अयोध्या पर भी पड़ा और हिंदू वैरागी यहां नमाज पढ़ने आने वाले मुस्लिमों को परेशान करने लगे। 1949 में यहां केवल शुक्रवार की नमाज हो रही थी और वो भी कुछ समय बाद बंद हो गई।

    मूर्ति

    दिसंबर, 1949 में मुख्य इमारत में रखी गई मूर्तियां 

    बाबरी मस्जिद की मुख्य इमारत पर दावे की कहानी 1949 से शुरू होती है।

    22-23 दिसंबर, 1949 की रात को अभय रामदास और उसके साथियों ने मस्जिद की दीवार कूदकर उसके अंदर भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दीं।

    मूर्ति रखने के बाद ये प्रचार किया गया कि अपने जन्मस्थान पर कब्जा करने के लिए भगवान राम खुद प्रकट हुए हैं। इस योजना को फैजाबाद डिप्टी कमिश्नर केके नायर और अन्य अधिकारियों का सहयोग प्राप्त था।

    स्टे

    कोर्ट ने लगाया स्टे और मस्जिद पर लगा ताला 

    डिप्टी कमिश्नर नायर ने अगली सुबह मस्जिद में हुए अतिक्रमण को हटवाने की कोशिश नहीं की, बल्कि बागी तेवरों में सरकार को लिखा कि अगर मस्जिद से मूर्तियां हटवानी हैं तो उनका तबादला कर दें।

    नायर बाद में जनसंघ की टिकट से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते थे।

    इस बीच मामला फिर से कोर्ट में पहुंच गया और 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज ने विवादित स्थल पर स्टे लगा दिया और मस्जिद के गेट पर ताला लग गया।

    राजनीति

    राजीव गांधी की अनाड़ी राजनीति ने राम मंदिर विवाद को बढ़ाया 

    1980 के दशक में भाजपा और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के राम मंदिर आंदोलन और राजीव गांधी की अनाड़ी राजनीति ने इस विवाद को ऐसा रंग दिया, जिसका असर आज भी दिखता है।

    VHP और भाजपा के दबाव के बीच हिंदुओं को अपनी तरफ करने की चाह में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव ने एक वकील के जरिए फैजाबाद जिला कोर्ट में मंदिर का ताला खुलवाने की अर्जी डलवाई और जिला जज केएम पांडे ने ताला खोलने का आदेश जारी कर दिया।

    ताला

    एक घंटे के अंदर खोल दिया गया ताला 

    फैजाबाद कोर्ट के आदेश के घंटे भर के भीतर मस्जिद के गेट पर लटका ताला खोल दिया गया और दूरदर्शन पर इस समाचार का प्रसारण भी किया गया। इससे ये बात पुख्ता हुई कि ये सब पहले से प्रायोजित था।

    इलाहाबाद कोर्ट

    इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर हुए विवाद से जुड़े सारे केस 

    इस बीच 1950-61 के बीच फैजाबाद कोर्ट में विवाद को लेकर 4 केस दायर किए जा चुके थे, जिन पर सुनवाई चल रही थी।

    10 जुलाई, 1989 को उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये चारों केस अपने पास मंगाने का आदेश जारी किया।

    हाई कोर्ट ने 14 अगस्त को विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश भी दिया, लेकिन इस आदेश की उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह की सरकार ने समय-समय पर धज्जियां उड़ाईं।

    मस्जिद

    6 दिसंबर, 1992 को ढहाई गई बाबरी मस्जिद

    इस दौरान VHP का राम मंदिर आंदोलन चलता रहा और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। इन आंदोलनों के दौरान कारसेवक अयोध्या पहुंचते रहे और 6 दिसंबर, 1992 को उन्होंने बाबरी मस्जिद ढहा दी। इसके बाद देशभर में दंगे हुए थे।

    कोर्ट

    हाई कोर्ट ने विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा 

    विवाद पर 2 दशक से अधिक समय तक सुनवाई करने के बाद 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।

    अपने फैसले में हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश और रामलला विराजमान के बीच 3 बराबर हिस्सों में बांट दिया।

    हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ इन तीनों और अन्य कुछ पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं।

    कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में सुनाया ऐतिहासिक फैसला  

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए भी मामले की समाधान की कोशिश की, लेकिन ये असफल रही।

    इसके बाद 2019 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 सदस्यीय बेंच ने 40 दिन की सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा।

    अंत में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सदियों पुराने इस विवाद का पूरा निपटारा कर दिया।

    कोर्ट ने संपूर्ण विवादित परिसर का हक रामलला को दे दिया।

    निर्माण

    2020 में शुरू हुआ मंदिर का निर्माण

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 2020 में राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। एक रिपोर्ट के अनुसार, 67 एकड़ वाले परिसर में से 2 एकड़ जमीन पर मंदिर बनाया गया है।

    मंदिर बनने की लागत करीब 300-400 करोड़ के करीब होगी, लेकिन पूरे राम मंदिर क्षेत्र का निर्माण होने में 1,100 करोड़ रुपये तक का खर्च आएगा।

    22 जनवरी को होने वाले समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।

    हालांकि, अभी मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हुआ है।

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