क्या है सिंधु जल संधि, जिसे लेकर भारत ने पाकिस्तान को भेजा नोटिस?
क्या है खबर?
भारत और पाकिस्तान एक बार फिर सिंधु जल संधि (IWT) को लेकर आमने-सामने हैं। सिंधु आयोग की वार्षिक बैठकों में पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के बाद भारत ने इस संधि में संशोधन को लेकर उसे नोटिस भेजा है।
पाकिस्तान भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार भारत पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाता आया है, जबकि भारत ने अपना मत हमेशा ही साफ रखा है।
सिंधु जल संधि और इसके लेकर क्या विवाद है, आइए विस्तार से जानते हैं।
संधि
क्या है सिंधु जल संधि?
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच 19 सितंबर, 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि हुई थी।
इसके तहत सिंधु घाटी में बहने वाली तीन पूर्वी नदियों (रवि, सतलज, व्यास) पर भारत का, जबकि तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का अधिकार है।
नदियां भारत से होकर बहती हैं, इसलिए पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल भारत सिंचाई और अन्य सीमित कार्यों के लिए कर सकता है।
विवाद
संधि को लेकर कब और क्यों शुरू हुआ विवाद?
इस संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान से बीच साल 1978 से विवाद शुरू हुआ, जब भारत ने पश्चिमी नदियों पर बांध परियोजनाओं का निर्माण शुरू किया।
पाकिस्तान ने आपत्ति जताई कि इन परियोजनाओं के निर्माण से नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा। हालांकि, तब यह मुद्दा आपसी बातचीत से सुलझ गया था।
साल 2007 में जम्मू-कश्मीर में बगलिहार बांध को लेकर दोनों देश फिर आमने-सामने आए थे और विश्व बैंक ने इसमें मध्यस्थता की थी।
विवाद
क्या है मौजूदा विवाद?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने 2015 में भारत की किशनगंगा और रातले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (HEP) पर कुछ तकनीकी आपत्तियां जताई थीं और इनके निस्तारण के लिए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की मध्यस्थता की मांग की थी।
पाकिस्तान की एकतरफा कार्रवाई इस संधि का उल्लंघन है।
भारत सरकार के प्रयासों बाद भी पाकिस्तान ने पांच सालों से स्थायी सिंधु आयोग की बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया, इसलिए अब नोटिस जारी किया गया है।
नोटिस
भारत ने नोटिस में क्या कहा?
भारत ने कहा कि IWT को बनाए रखने का वह पूरी तरह से समर्थक है, लेकिन पाकिस्तान की ओर से की गई कार्रवाईयों ने इस संधि के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
उसने कहा, "पाकिस्तान द्वारा 2015 में HEP पर आपत्तियों के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की मांग और फिर 2016 में इस अनुरोध को वापस लेने के बाद मध्यस्थता के लिए कार्ट का रुख करना एकतरफा कार्रवाई है, जो अनुच्छेद (9) का उल्लंघन है।"
पाकिस्तान की आशंका
संधि को लेकर पाकिस्तान की क्या है आशंका?
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों से भारत पर आरोप लगाता आया है कि अगर युद्ध होता है तो भारत उसका पानी रोक सकता है। इसी के चलते दोनों देशों के बीच एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया था।
हालांकि, दोनों देशों के बीच तीन युद्ध होने के बाद भी IWT कायम है और दोनों देशों के अधिकारी लगातार नदियों का निरीक्षण करते रहते हैं। इसके अलावा वार्षिक बैठकों में सभी आंकड़ों को सामने रखते हैं।
सिंधु जल संधि
संधि टूटने से किसका होगा फायदा?
इस संधि के अनुसार, भारत को सिंधु घाटी से निकलनी वाली नदियों के 20 प्रतिशत पानी के इस्तेमाल की अनुमति है। इससे भारत को एकतरफा नुकसान उठाना पड़ता है।
पाकिस्तान ने इसी साल भारत के झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने की आशंका के चलते अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की मध्यस्थता की मांग की थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह संधि रद्द होती है या इसमें संशोधन होता है तो इससे भारत को फायदा होगा।
विशेषज्ञों की राय
कोई एक देश नहीं तोड़ सकता संधि?
जानकारों की मानें तो कोई एक देश इस संधि से पीछे हटना चाहता है तो वह ऐसा नहीं कर सकता है और दोनों देशों की इससे अलग होनी की कोई गुंजाइश नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे कई अंतरराष्ट्रीय कानून हैं, जो इस समझौते की रक्षा करेंगे।
उन्होंने कहा कि इस संधि में कुछ खामियां हो सकती हैं, जिसे भारत-पाकिस्तान आपस में बातचीत करके दूर कर सकते हैं।