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भारतीय नौसेना को मिले स्वदेशी युद्धपोत INS उदयगिरि और हिमगिरि, जानिए इनकी खासियत
INS उदयगिरि और हिमगिरि के आने से भारतीय नौसेना को मिलेगी मजबूती

भारतीय नौसेना को मिले स्वदेशी युद्धपोत INS उदयगिरि और हिमगिरि, जानिए इनकी खासियत

Aug 26, 2025
03:07 pm

क्या है खबर?

भारतीय नौसेना मंगलवार (26 अगस्त) दोपहर आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एक साथ दो स्वदेश निर्मित स्टील्थ फ्रिगेट (युद्धपोत) INS उदयगिरि और INS हिमगिरि को अपने बेड़े में शामिल कर लिया है। ये दोनों युद्धपोत परियोजना 17 अल्फा (P-17A) का हिस्सा हैं और इनके आने से भारत की समुद्री रक्षा को बड़ी मजबूती मिलेगी। आइए जानते हैं कि इन दोनों स्टील्थ युद्धपोतों की खासियत क्या है और ये किस तरह से नौसेना को मजबूती देंगे।

परियोजना

परियोजना 17 अल्फा (P-17A) का हिस्सा है INS उदयगिरि

INS उदयगिरि परियोजना 17 अल्फा (P-17A) का दूसरा युद्धपोत है, जिसका बजट 45,000 करोड़ रुपये है। P-17A भारत की पहली स्वदेशी स्टील्थ युद्धपोत योजना है। इस परियोजना में युद्धपोतों को एकीकृत मॉड्यूलर निर्माण का उपयोग करके विकसित किया गया है, जिसके तहत पहले से तैयार कई ब्लॉकों को आपास में जोड़ा जाता है। इस तरह से युद्धपोत को तैयार करने में अपेक्षा से कम समय लगता है और गुणवत्ता नियंत्रण में भी सुधार आता है।

जानकारी

किसने किया है कि INS उदयगिरी और हिमगिरि का निर्माण?

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, INS उदयगिरि का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) की मदद से मुंबई स्थित मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) ने किया है, जबकि नीलगिरि श्रेणी का पहले युद्धपोत हिमगिरी का निर्माण कोलकाता की गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने किया है।

खासियत

क्या है दोनों युद्धपोतों की खासियत?

6,700 टन से ज्यादा विस्थापन वाले दोनों स्टील्थ युद्धपोत शिवालिक श्रेणी के युद्धपोतों से लगभग 5 प्रतिशत बड़े हैं। हालांकि, इनका पतवार आकार अधिक पतला है और इनका रडार क्रॉस-सेक्शन कम है। INS उदयगिरि और हिमगिरि संयुक्त डीजल और गैस (CODAG) संचालित प्रणाली पर चलते हैं, जिनमें 2 डीजल इंजन और 2 गैस टर्बाइन शामिल हैं। एकीकृत प्लेटफार्म प्रबंधन प्रणाली (IPMS) के जरिए ये 28 नॉट से अधिक की गति और लगभग 5,500 समुद्री मील की क्षमता प्रदान करते हैं।

क्षमता

खुले महासागर में काम करने में सक्षम हैं दोनों युद्धपोत

रक्षा मंत्रालय ने जुलाई में P-17A के युद्धपोतों के बारे में कहा था कि ये 'ब्लू वाटर' वातावरण यानी खुले महासागर में काम करने में सक्षम हैं। ये भारत के समुद्री हितों के क्षेत्र में पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों तरह के खतरों से निपट सकते हैं। दोनों युद्धपोतों में एक बंद मूरिंग डेक, एक लो इन्फ्रारेड सिग्नेचर और एक डेक रेल सिस्टम जैसी खूबियां हैं, जो चालक दल और उपकरणों की सुरक्षित आवाजाही को संभव बनाती हैं।

तकनीक

दोनों युद्धपोतों में हुआ है रडार-अवशोषक कोटिंग्स का इस्तेमाल

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, इन युद्धपोतों के सुपरस्ट्रक्चर में रडार-अवशोषक कोटिंग्स के साथ मिश्रित सामग्रियों का इस्तेमाल हुआ है। इससे रडार क्रॉस-सेक्शन कम होता है। जुड़ी हुई डेक और फ्लश-माउंटेड हथियार सिग्नल को कम करते हैं, जबकि एग्जॉस्ट में प्रकाश उत्सर्जन को कम करने के लिए इन्फ्रारेड सप्रेशन सिस्टम लगे हैं। सामूहिक रूप से ये उपाय जहाजों के रडार, इन्फ्रारेड और ध्वनिक प्रोफाइल को काफी कम करने में मदद करते हैं।

हथियार

इन हथियारों से लैस हैं दोनों युद्धपोत

दोनों युद्धपोत कई हथियारों से लैस हैं, जिनमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल, भारत-इजराइल बराक-8 नौसैनिक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (LRSAM), 76mm नौसैनिक बंदूकें और समुद्री युद्ध के लिए टारपीडो शामिल हैं। इनकी 5,500 समुद्री मील की विस्तारित रेंज और हेलीकॉप्टर-जनित पनडुब्बी रोधी युद्ध (ASW) क्षमताएं दूर के जलक्षेत्रों में गश्त करने और भारत के विमानवाहक पोतों के साथ शक्ति प्रक्षेपण में सक्षम बनाती हैं।

अन्य

क्या है युद्धपोतों की अन्य खूबियां?

रक्षा सूत्रों के अनुसार, इन युद्धपोतों में हल माउंटेड सोनार एडवांस्ड नेक्स्ट जेनरेशन (HUMSA-NG) सोनार शामिल है, जो पनडुब्बी रोधी हथियारों को पूर्व चेतावनी डाटा देकर पनडुब्बियों और पानी के नीचे के खतरों का पता लगा सकता है। इनमें लगे सेंसर को CMS-17A (लड़ाकू प्रबंधन प्रणाली) के माध्यम से एकीकृत किया है जो केंद्रीय कमांड हब का कार्य करता है। दोनों युद्धपोत कवच चफ रॉकेट लॉन्चर से लैस हैं, जो एक मिसाइल रोधी नौसैनिक छद्म प्रणाली है।

तकनीक

दुश्मन के रडार और संचार संकेतों को जाम कर सकते हैं युद्धपोत

युद्पोतों के अजंता और शक्ति सूट इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में मददगार साबित होंगे। ये दुश्मन के रडार और संचार संकेतों को जाम कर सकते हैं। इनमें मारीच टॉरपीडो छद्म प्रणाली भी है, जो दुश्मन के टॉरपीडो को भ्रमित करने के लिए ध्वनिक छद्म उत्सर्जित करती है। प्रत्येक युद्धपोत लंबी दूरी के पनडुब्बी रोधी और निगरानी मिशनों के लिए लगभग 225 कर्मियों और जहाज-आधारित हेलीकॉप्टरों को ले जोने में भी सक्षम हैं। इनसे नौसेना को समुद्र में बड़ी मजबूती मिलेगी।

मजबूती

नीलगिरि श्रेणी के युद्धपोत भारत की सुरक्षा कैसे मजबूत करते हैं?

भारतीय नौसेना दिल्ली श्रेणी के विध्वंसक और शिवालिक श्रेणी के युद्धपोतों के साथ P-17A युद्धपोतों को तैनात करेगी। इसके साथ ही सशस्त्र बल हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपनी परिचालन पहुंच का विस्तार करेंगे। नौसेना के सूत्रों के अनुसार, कम से कम चार और स्वदेशी P-17A युद्धपोत (तारागिरी, महेंद्रगिरी, दुनागिरी और विंध्यगिरी) अगले वर्ष तक नौसेना में शामिल हो जाएंगे। अधिकारियों ने NDTV से कहा कि ये युद्धपोत समुद्री व्यापार मार्गों की रक्षा करने में भी बड़े मददगार होंगे।