केंद्र सरकार ने वापस लिया पशुधन विधेयक का विवादित मसौदा, जानें किस बात पर थी आपत्ति
केंद्र सरकार ने आलोचना के बाद पशुधन और पशुधन उत्पाद (आयात और निर्यात) विधेयक, 2023 के मसौदे को वापस ले लिया है। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने 7 जून को विधेयक का मसौदा जारी कर लोगों से इस पर राय और सुझाव मांगे थे। हालांकि, पशु संगठनों और लोगों ने इस प्रस्तावित विधेयक के प्रावधानों की तीखी आलोचना करते हुए इसे वापस लिए जाने की मांग की।
लोगों के सुझावों के चलते वापस लिया विधेयक- केंद्र
सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा, "विधेयक के प्रस्तावित मसौदे को समझने और आगे की टिप्पणियां और सुझाव देने के लिए और अधिक समय की आवश्यकता है। इसके अलावा पशु कल्याण और संबंधित पहलुओं के साथ संवेदनशीलता और भावनाओं को शामिल करते हुए प्रस्तावित मसौदे पर चिंता व्यक्त करते हुए परामर्श लिए गए हैं।" सरकार ने कहा कि लोगों के विचारों को ध्यान में रखते हुए अनुमोदन के साथ प्रस्तावित विधेयक के मसौदे को वापस ले लिया गया है।
विधेयक में क्या प्रस्ताव शामिल किए गए थे?
प्रस्तावित विधेयक में पशुधन और पशुधन उत्पादों को कॉमोडिटी (वस्तु) के रूप में परिभाषित किया गया था और पहली बार जीवित जानवरों के निर्यात की अनुमति दी गई थी। इसके मुताबिक, पशुधन और पशुधन उत्पादों का आसानी से जमीन, समुद्र या हवाई रास्ते आयात या निर्यात किया जा सकता है। इसमें गोवंश के वर्ग में आने वाले गाय, बैल और भैंस समेत घोड़ों, खच्चर और गधा समेत अन्य जानवरों को शामिल किया गया था।
केंद्र सरकार का विधेयक के पक्ष में क्या तर्क था?
केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने कहा था कि सरकार पशुपालन के क्षेत्र में सर्वत्र विकास और पशुधन से उत्पन्न होने वाले उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कानून में बदलाव करना चाहती है। उन्होंने कहा था, "अग्रेजों के समय से चले आ आ रहे कानून में बदलाव करने के लिए यह विधेयक लाया गया था। इस विधेयक से पशुपालकों की आर्थिक हालात में सुधार होता। हालांकि, सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार होने के कारण लोगों के बीच गलत संदेश गया।"
क्यों हो रहा था विधेयक का विरोध?
पशु संगठनों का आरोप था कि प्रस्तावित विधेयक में भारत से जिंदा पशुओं को एक वस्तु मानकर उनके निर्यात की अनुमति दी जा रही है, जो जानवरों के साथ अन्याय जैसा है। इसके अलावा जैन समाज भी इस विधेयक का विरोध कर रहा था। उसने कहा था कि प्रस्तावित विधेयक में मवेशियों को वस्तु के रूप में परिभाषित करना और पशुधन के निर्यात को कानूनी रूप से सही ठहराने का प्रयास जन भावना के खिलाफ है।