उत्तराखंड: आपदा के खतरे पर 385 गांव, पुनर्वास के लिए 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत
उत्तराखंड के चमोली जिले में आई बाढ़ के बाद राज्य में आपदा के खतरे पर बसे गांवों के पुनर्वास की मांग ने फिर से जोर पकड़ लिया है। राज्य सरकार द्वारा साल 2011 में आपदा के खतरे पर बसे गांवों के लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने के लिए पुनर्वास नीति लाई गई थी, लेकिन इस पर पूरी गति से काम नहीं हो सका है। यही कारण है कि आज भी राज्य के सैकड़ों गांव खतरे पर ही बसे हुए हैं।
बाढ़ से अब तक हो चुकी है 38 की मौत
गत रविवार को जोशीमठ के तपोवन में नंदा देवी ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूट गया जिससे अलकनंदा और धौली गंगा नदियों में बाढ़ आई थी। इससे तपोवन में अलकनंदा नदी पर बना ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट का एक बांध टूट गया था। बाढ़ से तपोवन-विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना को भी नुकसान पहुंचा था। बचाव टीमों ने अब तक 38 शव बरामद कर लिए हैं। इसके अलावा अभी भी 166 लोग लापता बताए जा रहे हैं। उनकी तलाश जारी है।
मुख्यमंत्री रावत ने पांच गांवों के पुनर्वास के लिए दी 2.38 करोड़ की मंजूरी
राज्य में बाढ़ की ताजा घटना के बाद संभावित खतरे को देखते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गुरुवार राज्य के 12 पहाड़ी जिलों में आपादा के खतरे पर बढ़े 385 गांवों में से पांच के लिए पुनर्वास के लिए 2.38 करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी। सरकार की यह पहल 'ऊंट के मुंह में जीरे के सामन' नजर आ रही है। बाढ़ के बाद प्रभावित गांवों के लोग तेजी से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।
आवंटित राशि से होगा ग्रामीणों के लिए नए घरों का निर्माण
मुख्यमंत्री द्वारा पांच गांवों के पुनर्वास के लिए मंजूर किए गए 2.38 करोड़ रुपये से इन गांवों के ग्रामीणों के लिए सुरक्षित जगहों पर घरों का निर्माण किया जाएगा। इसी प्रकार एक गौशाला भी तैयार की जाएगी और ग्रामीणों को गुजारा भत्ता दिया जाएगा। इधर, अन्य गांवों के पुनर्वास को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह से मुलाकात कर कार्य में प्रगति लाने की मांग की है। इसके बाद पुनर्वास प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है।
सभी गांवों के पुनर्वास के लिए है 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत
आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 12 पहाड़ी जिलों के कुल 385 गांव आपदा के खतरे पर बसे हुए हैं। सुरक्षित जीवन के लिहाज से ये गांव असुरक्षित माने गए हैं। इनमें से 225 का भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण भी हो चुका है और शेष में यह कार्यवाही चल रही है। सरकार द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार इन सभी गांवों के पुनर्वास के लिए 10,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। ऐसे में पुनर्वास की रफ्तार धीमी पड़ी है।
आपदा के खतरे पर हैं पिथौरागढ़ जिले के सबसे अधिक 129 गांव
राज्य में आपदा के खतरे पर बसे सबसे अधिक 129 गांव पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। इसी तरह उत्तरकाशी में 62, चमोली में 61, बागेश्वर में 42, टिहरी में 33, पौड़ी में 26, रुद्रप्रयाग में 14, चंपावत में 10, अल्मोड़ा में नौ, नैनीताल में छह, देहरादून में दो और उधम सिंह नगर में एक गांव स्थित है। गुरुवार को टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी और बागेश्वर जिले के पांच गांवों के पुनर्वास के लिए बजट को मंजूरी दी गई है।
इस तरह से है गांवों को खतरा
दरअसल, ये सभी गांव पहाड़ों पर नदियों के आस-पास बसे हुए हैं। ऐसे में तेज बारिश के बाद नदियों में बाढ़ आने और किसी ग्लेशियर के टूटने से इन गांवों के तबाह होने का खतरा है। राज्य में पूर्व में भी कई बार बादल फटने और अन्य कारणों से बाढ़ आ चुकी है। जिसमें इन गांवों में कई लोगों को मौत हो चुकी है। इसी को देखते हुए सरकार ने खतरे वाले गांवों के पुनर्वास की योजना बनाई थी।