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    #NewsBytesExplainer: SEBI की रडार पर थीं अडाणी समूह में निवेश करने वाली ऑफशोर कंपनियां, जानें मामला 
    हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में किया था ऑफशोर कंपनियों का जिक्र

    #NewsBytesExplainer: SEBI की रडार पर थीं अडाणी समूह में निवेश करने वाली ऑफशोर कंपनियां, जानें मामला 

    लेखन सकुल गर्ग
    May 30, 2023
    07:45 pm

    क्या है खबर?

    हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में मॉरीशस की 5 ऑफशोर कंपनियों के नाम का जिक्र किया था, जिनकी अडाणी समूह में 15 वर्षों से अधिक अवधि तक हिस्सेदारी थी।

    अब एक रिपोर्ट में सामने आया है कि इनमें से कम से कम 2 कंपनियां एक दशक तक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की रडार पर थीं।

    आइए जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है, जिसको लेकर अडाणी समूह दोबारा सवालों के घेरे में घिर सकता है।

    रिपोर्ट 

    हिंडनबर्ग रिपोर्ट में किन बातों का किया गया था जिक्र?

    इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में मॉरीशस की मावी इन्वेस्टमेंट्स (पहले APMS इन्वेस्टमेंट फंड), अल्बुला इन्वेस्टमेंट फंड, क्रेस्टा फंड, LTS इन्वेस्टमेंट फंड और लोटस ग्लोबल इनवेस्टमेंट फंड के बारे में बताया था।

    यह सभी कंपनियां एक कथित स्टॉक पार्किंग इकाई मॉन्टेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स (BVI) के नियंत्रण में थीं और इनकी सामूहिक तौर पर अडाणी समूह में हिस्सेदारी थी।

    इनमें से मावी इन्वेस्टमेंट्स और लोटस ग्लोबल इनवेस्टमेंट फंड के खिलाफ जांच की जा रही थी।

    जांच 

    मॉरीशस की एजेंसी ने दोनों कंपनियों को जारी किया था नोटिस

    मॉरीशस रेवेन्यू अथॉरिटी (MRA) ने सितंबर, 2012 में मावी इंवेस्टमेंट्स को नोटिस जारी किया था। MRA ने कंपनी को मॉरीशस और भारत के बीच हुए डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट के तहत सूचनाओं को भारतीय टैक्स एजेंसियों के साथ साझा करने के लिए कहा था।

    MRA ने जुलाई, 2014 में दूसरी कंपनी लोटस ग्लोबल इनवेस्टमेंट फंड को भी समान तरीके का नोटिस भेजकर जानकारी साझा करने के लिए कहा था।

    यह नोटिस कानूनी फर्म एप्पलबी के आंतरिक रिकॉर्ड का हिस्सा थे।

    जवाब

    MRA ने अपने नोटिस में क्या कहा था? 

    MRA ने लोटस ग्लोबल से 2006 से 2012 के वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा था।

    इस नोटिस में शेयरधारकों और लाभार्थी मालिकों का विवरण, कर्मचारियों की संख्या, अप्रैल, 2000 से मार्च, 2013 की अवधि के बैंक विवरण और बैंक खातों में क्रेडिट और डेबिट की जानकारी मांगी गई थी।

    बता दें कि यह वही समयावधि थी जा लोटस ग्लोबल की अडाणी समूह की कंपनियों में हिस्सेदारी थी।

    आरोप  

    कंपनियों ने नोटिसों का क्या जवाब दिया था?

    दोनों कंपनियों ने नोटिसों का जवाब नहीं दिया था। उन्होंने जानकारी प्राप्त करने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए मॉरीशस की सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

    उन्होंने कहा था कि कंपनियों को कई अरब अमेरीकी डॉलर की राशि प्राप्त हुई है और उन्होंने हजारों पोर्टफोलियो निवेश के जरिए 2 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का कारोबार किया है। उन्होंने कहा था कि उनके निवेशक बदलते रहते हैं, जिनकी जानकरी देना संभव नहीं है।

    निवेश 

    किस कंपनी की अडाणी समूह में कितनी हिस्सेदारी थी?

    मावी ने अडाणी एंटरप्राइज लिमिटेड (AEL) में 2006 से लेकर पिछले साल तक भारी निवेश किया हुआ था।

    इसके अलाव मावी की अडाणी ट्रांसमिशन में 1.86 प्रतिशत और अडाणी टोटल गैस में 2.72 प्रतिशत की हिस्सेदारी भी थी। कंपनी की 2021 तक अडाणी ग्रीन एनर्जी में 1.19 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।

    नोट्स ग्लोबल की AEL में हिस्सेदारी 2008 में 4.51 प्रतिशत के उच्च स्तर से कम होते हुए 2010 की दूसरी तिमाही में पूरी तरह खत्म हो गई थी।

    जांच 

    SEBI के रडार पर कैसे आईं थीं कंपनियां?

    रिपोर्ट्स के अनुसार, एप्पलबी ने अप्रैल, 2010 में लोटस, मावी और क्रेस्टा से संबंधित दस्तावेजों में संशोधन के लिए मॉन्टेरोसा इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स को बिल भेजा था। यह इसलिए किया गया था, जिससे SEBI के सामने घोषणा करते समय संपत्तियों का केवल एक पोर्टफोलियो दिखाया जा सके।

    SEBI ने मई, 2010 में नियमों का उल्लंघन करने के लिए निपटान शुल्क के तौर पर मावी से 10 लाख रुपये का भुगतान स्वीकार किया था।

    संबंध 

    इन कंपनियों का अडाणी मामले से क्या संबंध है?

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि SEBI ने अक्टूबर, 2020 में अडाणी समूह में निवेश करने वाली 13 ऑफशोर कंपनियों की जांच शुरु की थी, जिनमें मॉरीशस की कंपनियां भी शामिल थीं।

    समिति ने आगे कहा था कि SEBI के पास अभी तक ऐसे ठोस सबूत नहीं हैं, जिनके आधार पर वह अपने इस शक को मजबूत केस में तब्दील करके नियमों के उल्लंघन के आरोप में कार्रवाई शुरू कर सके।

    जांच 

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने अडाणी समूह को दी है क्लीन चिट

    सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की जांच के लिए 2 मार्च को 6 सदस्यों की एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट को दाखिल करते हुए कहा था कि उसे अडाणी समूह के खिलाफ जांच में किसी तरह की गड़बड़ी के सबूत नहीं मिले हैं।

    समिति ने कहा था कि उनकी जांच रिपोर्ट के तमाम निष्कर्ष अंतिम नहीं हैं क्योंकि इस मामले में SEBI की जांच जारी है और उसकी रिपोर्ट आनी बाकी है।

    मामला 

    क्या है हिंडनबर्ग रिसर्च का मामला?

    अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च ने 24 जनवरी को अडाणी समूह को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी।

    रिपोर्ट में समूह पर मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर शेयर की कीमत बढ़ा-चढ़ाकर बताने जैसे कई आरोप लगाए गए थे। उद्योगपति गौतम अडाणी पर अपने परिवार के जरिए फर्जी कंपनी चलाने का आरोप भी लगाया गया था।

    रिपोर्ट आने के बाद अडाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट हुई थी और अडाणी की व्यक्तिगत संपत्ति भी काफी नीचे गिर गई थी।

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