#NewsBytesExplainer: अच्छी समीक्षा के बाावजूद क्यों नहीं चल पातीं कुछ फिल्में? समझिए पूरा खेल
क्या है खबर?
बॉलीवुड में सालभर में हजारों फिल्में रिलीज होती हैं। इनमें से कुछ आते ही बॉक्स ऑफिस पर छा जाती है, वहीं कुछ को मुंह की खानी पड़ती है।
फिल्म अगर खराब हो तो फ्लॉप होना समझ आता है, लेकिन कई फिल्में ऐसी भी हैं, जिन्हें समीक्षकों से तारीफें मिलने के बावजूद कुछ ही दिनों में सिनेमाघरों से हटा दिया जाता है।
सवाल उठता कि आखिर अच्छी समीक्षाओं के बाद भी ये फिल्में क्यों नहीं चल पातीं?
तो चलिए समझते हैं।
प्रचार
मार्केटिंग की कमी के कारण लोगों के बीच चर्चा में नहीं आ पातीं फिल्में
किसी फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर सफलता और असफलता के लिए जरूरी मापदंडों में से एक मार्केटिंग भी है। हर निर्माता के पास कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो प्रचार की पूरी रणनीति बनाते हैं।
आज के जमाने में जहां निर्माता अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए करोड़ों रुपये बहाते हैं तो कुछ बस सोशल मीडिया तक ही सीमित रह जाते हैं।
फिल्मों के प्रचार-प्रसार से लोगों के बीच उसको लेकर चर्चा बढ़ती है, जो सभी का उत्साह बढ़ाती है।
जानकारी
प्रचार की कमी के कारण पिटी 'अफवाह'
प्रचार की कमी के कारण विफल हुईं फिल्मों का बढ़िया उदाहरण भूमि पेडनेकर और नवाजुद्दीन सिद्दीकी की 2023 में रिलीज हुई फिल्म 'अफवाह' है। इसे सोशल मीडिया के अलावा कहीं भी प्रचारित नहीं किया गया और इसके परिणामस्वरूप इसे सिनेमाघरों में कम दर्शक देखने पहुंचे।
विषय
फिल्म का विषय भी होता है अहम
अब सिनेमा की दुनिया का वह दौर देखने को मिल रहा है, जिसमें दर्शक कुछ विशेष कंटेंट देखना ही पसंद करते हैं। दर्शकों की कुछ हमेशा से प्रिय रही शैलियों में एक्शन, थ्रिल, कॉमेडी और हॉरर शुमार हैं।
अगर इनसे अलग निर्माता किसी मुद्दे पर फिल्म लाते हैं तो उन्हें पहले ही अंदेशा होना चाहिए उनकी फिल्में सिनेमाघरों में चलना ना चलना भाग्य की बात है।
ऐसे में विषय और शैली भी फिल्म की सफलता में बेहद अहम है।
स्क्रीन
कितनी स्क्रीन पर रिलीज हो रही फिल्म?
फिल्म की रिलीज से पहले उसकी स्क्रीन तय कर दी जाती हैं। मल्टीप्लेक्स मालिकों द्वारा फिल्म की चर्चा, उसके सितारे और विषय देखकर फिल्म की स्क्रीन दी जाती हैं।
दावा किया जाता है कि मुख्यधारा फिल्में, जिन्हें बड़े प्रोडक्शन हाउस का समर्थन मिलता है, अक्सर उन्हें ज्यादा स्क्रीन मिलती हैं।
इस तरह ये फिल्में हिट हो जाती हैं और बाकी केवल कुछ ही स्क्रीनों पर ही रिलीज होती हैं और कभी-कभार केवल रात के शो तक सीमित रह जाती हैं।
जानकारी
मनोज बाजपेयी ने जताई थी नाराजगी
मनोज बाजपेयी की 'जोरम' की सभी ने तारीफ की थी,लेकिन यह स्क्रीन के मामले में मात खा गई थी। कम स्क्रीन मिलने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर की थी। उन्हें कहा था कि सिनेमाघर वाले फिल्म ही नहीं दिखाएंगे तो देखने कौन आएगा?
इच्छा
कुछ ही फिल्मों को सिनेमाघरों में देखना पसंद करते हैं दर्शक
फिल्मों की स्क्रीन के अलावा इसकी सफलता या असफलता में योगदान देने वाला एक अन्य कारण यह है कि क्या लोग इसे थिएटर में देखना पसंद करते हैं या नहीं।
अगर नहीं, तो वे फिल्म के OTT पर स्ट्रीम होने का इंतजार करते हैं। ऐसे में कभी-कभार OTT फिल्मों के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने का बड़ा कारण बनता है।
दर्शकों की इच्छा को आंकना मुश्किल होता है, लेकिन फिर भी कलाकारों/कंटेंट के चयन से चीजें आसान हो जाती हैं।
क्लैश
फिल्मों की भिड़ंत भी हो सकता है कारण
आज कल निर्माता अपनी फिल्मों को किसी दूसरी फिल्म के साथ एक ही तारीख पर रिलीज करने से जरा भी नहीं कतराते हैं। हालांकि, ये उनकी फिल्म के पिटने का बहुत बड़ा कारण बन जाता है।
पिछले साल रिलीज हुई 'एनिमल' और 'सैम बहादुर' के बीच जबर्दस्त भिड़ंत देखने को मिली थी, जिसमें विक्की कौशल की फिल्म को मुंह की खानी पड़ी।
अच्छी समीक्षा और तारीफ मिलने के बाद भी 'सैम बहादुर' वो कमाल नहीं दिखा सकी, जिसकी उम्मीद थी।
कलाकार
फिल्म में है कौन सा कलाकार?
दर्शक ज्यादातर बड़े पर्दे पर पसंदीदा सितारे को देखना चाहते हैं। ऐसे में फिल्मों में सितारों का चयन भी मायने रखता है। अगर कालाकर दर्शकों का मनपसंद है तो फिल्मों की समीक्षा मायने नहीं रखती है।
इसका बढ़िया उदाहरण पिछले साल रिलीज हुई शाहरुख खान की 3 फिल्में हैं। अभिनेता को 4 साल बाद देखने के लिए दर्शकों में इतना उत्साह था कि इन फिल्मों की समीक्षा का इतंजार किए बिना ही लोगों ने एडवांस बुकिंग के सारे रिकॉर्ड तोड़े।
उदाहरण
अच्छी समीक्षा के बाद नहीं चली ये फिल्में
अच्छी समीक्षा और कई बार तो नामी कलाकारों से सजी होने के बाद भी फिल्में विफल हो जाती हैं।
इन फिल्मों के कुछ प्रमुख उदाहरणों में राजकुमार राव की 'भीड़', 'अफवाह' और हंसल मेहता की 'फराज' शामिल हैं।
इनके अलावा हाल ही में रिलीज हुई किरण राव की 'लापता लेडीज' को भी इन्हीं फिल्मों की श्रेणी में रखा जाएगा। फिल्म को चारों से तारीफें मिली, लेकिन विफल रही। ऐसा ही हाल विद्या बालन की 'दो और दो प्यार' का रहा।