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ट्रंप की H-1B वीजा फीस का खामियाजा TCS और इंफोसिस को क्यों भुगतना पड़ेगा?
H-1B फीस का खामियाजा TCS और इंफोसिस को भुगतना पड़ेगा

ट्रंप की H-1B वीजा फीस का खामियाजा TCS और इंफोसिस को क्यों भुगतना पड़ेगा?

Dec 17, 2025
02:38 pm

क्या है खबर?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के बाहर से हायर किए जाने वाले नए H-1B कर्मचारियों पर 1 लाख डॉलर (लगभग 90 लाख रुपये) की भारी फीस लगाने का ऐलान किया है। यह अब तक स्किल्ड विदेशी कर्मचारियों पर लगाई गई सबसे बड़ी रोक मानी जा रही है। इस फैसले से IT आउटसोर्सिंग और स्टाफिंग इंडस्ट्री पर सीधा असर पड़ने की आशंका है, जो लंबे समय से राजनीतिक बहस के केंद्र में रही हैं।

असर

भारतीय IT कंपनियों पर असर

इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन बड़ी स्टाफिंग कंपनियों पर पड़ सकता है, जो H-1B कर्मचारियों के लिए बिचौलिए की भूमिका निभाती हैं। इनमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस और कॉग्निजेंट जैसी कंपनियां शामिल हैं। बीते कुछ वर्षों में इन कंपनियों के ज्यादातर नए H-1B वीजा अमेरिका के बाहर से अप्रूव हुए थे। अगर यह फीस लागू होती है, तो इन कंपनियों को वीजा चार्ज के रूप में हजारों करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ सकते हैं।

पिछले आंकड़ें

क्या कहते हैं पिछले आंकड़ें?

ब्लूमबर्ग के विश्लेषण के मुताबिक, मई, 2020 से मई, 2024 के बीच इंफोसिस, TCS और कॉग्निजेंट के करीब 90 प्रतिशत नए H-1B वीजा अमेरिका के बाहर से आए कर्मचारियों के लिए मंजूर हुए थे। इस दौरान अकेले इंफोसिस के 10,400 से ज्यादा कर्मचारियों के वीजा अप्रूव हुए। अगर 1 लाख डॉलर की फीस लागू होती, तो इंफोसिस पर 90 अरब रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त बोझ पड़ता, जबकि TCS को करीब 6,500 वीजा के लिए भारी खर्च उठाना पड़ता।

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मांग

वीजा मांग घटने की आशंका

उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि इतनी ऊंची फीस से H-1B वीजा की मांग में तेज गिरावट आ सकती है। कई कंपनियां अब विदेश में ही टैलेंट को काम देने पर ज्यादा जोर दे सकती हैं। इससे अमेरिका में नए विदेशी कर्मचारियों की एंट्री कम हो सकती है। हालांकि, कुछ कंपनियों का कहना है कि उन्होंने पहले ही वीजा पर निर्भरता घटा दी है, इसलिए शॉर्ट टर्म में असर सीमित रह सकता है।

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 रणनीति 

आगे की रणनीति और कानूनी चुनौती

इस फैसले को लेकर कानूनी चुनौतियां भी सामने आई हैं और अलग-अलग बिजनेस ग्रुप्स ने इसे कोर्ट में चुनौती दी है। बावजूद इसके, कई कंपनियां पहले ही अपने हायरिंग प्लान बदलने लगी हैं। माना जा रहा है कि आने वाले समय में अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों में भी निवेश बढ़ा सकती हैं। कुल मिलाकर, यह फैसला ग्लोबल टैलेंट हायरिंग और IT इंडस्ट्री की दिशा को प्रभावित कर सकता है।

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