शेख हसीना के पास ICT से मिली फांसी की सजा से बचने के क्या हैं विकल्प?
क्या है खबर?
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई है। उन पर 2024 में देशव्यापी छात्र आंदोलन के दौरान हुई हिंसा और करीब 1,400 लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार होने का आरोप है। ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्या हसीना इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती हैं और उनके पास आगे कौन-कौन से कानूनी विकल्प हैं।
सजा
ICT ने क्या सुनाया है फैसला?
न्यायमूर्ति मोहम्मद गोलाम मुर्तुजा मोजुमदार की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय न्यायाधिकरण ने 453 पृष्ठों के फैसले को पढ़ने के बाद हसीना और पूर्व गृह मंत्री असद-उज-जमां खान कमाल को मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई है। इसी तरह तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक (IGP) चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को 5 साल जेल की सजा सुनाई है। बता दें कि ICT ने मामून को मामले में सरकारी गवाह बनने के कारण राहत दी है।
आरोप
हसीना पर लगे हैं कुल 5 आरोप
हसीना पर कुल 5 आरोप तय हैं। पहले में प्रतिवादियों पर हत्या, हत्या के प्रयास, यातना और अन्य अमानवीय कृत्य शामिल हैं। दूसरे में प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए घातक हथियारों, हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों के इस्तेमाल का आदेश देना है। तीसरे में 16 जुलाई को बेगम रोकेया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की हत्या, चौथे में 5 अगस्त को चंखरपुल में 6 निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या की साजिश और पांचवें में 5 प्रदर्शनकारियों की हत्याकर जिंदा जलाने का आरोप है।
विकल्प
हसीना के पास है फैसले के खिलाफ अपील करने का अधिकार
ICT अधिनियम 1973 की धारा 21 के तहत, हसीना के पास फैसले के खिलाफ अपील करने का अधिकार है। वह ICT के फैसले के 60 दिनों के भीतर बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय डिवीजन में अपील कर सकती हैं। अगर, इस समयावधि में अपील नहीं की जाती है तो ICT द्वारा सुनाई गई सजा को अंतिम और पूरी तरह से कानूनी माना जाता है। उसके बाद इससे बचने का कोई विकल्प नहीं रहता है।
असर
हसीना के भारत में होने का अपील पर पड़ेगा असर?
हसीना के भारत में रहने पर उनकी मुश्किल बढ़ सकती है। भारत में निर्वासन में होना उनकी अपील में परेशानी पैदा कर सकता है, लेकिन तकनीकी रूप से उनके वकील अपील तैयार कर सकते हैं। हालांकि, हसीना के सामने समस्या यह है कि ICT के नियमानुसार, सुप्रीम कोर्ट में अपील करने से पहले अभियुक्त या तो कोर्ट में आत्मसमर्पण करना होता है या फिर उन्हें अपनी गिरफ्तारी देनी होती है। ऐसे में हसीना ये दोनों काम नहीं कर सकती है।
नियम
क्या है अपील दाखिल करने को लेकर नियम?
ICT के नियमानुसार, जब तक हसीना स्वयं बांग्लादेश में उपस्थित नहीं होतीं, तब तक अपील कानूनी रूप से दाखिल नहीं मानी जाएगी। ट्रायल के दौरान अभियुक्त का मौजूद होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन अपील की शुरुआत के समय उनका आत्मसमर्पण करना या गिरफ्तार होना अनिवार्य है। ऐसे में हसीना के सामने सबसे बड़ी बाधा यह है कि वह वापस जाकर आत्मसमर्पण करें या भारत से प्रत्यर्पण का जोखिम उठाएं।
परिणाम
सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने के क्या हो सकते हैं परिणाम?
अगर, हसीना ICT के नियमानुसार, सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय डिवीजन में याचिका दाखिल कर देती है तो कोर्ट ICT की सजा को रद्द कर सकता है या फिर नई सुनवाई का आदेश जारी कर सकता है। इसी तरह सजा को उम्रकैद या कम अवधि की सजा में बदल सकता है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब उनका आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी का चरण पूरा हो जाएगा। ऐसे में भारत से लौटे बिना हसीना को अपील का फायदा नहीं मिलेगा।
मदद
क्या हसीना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल सकती है मदद?
ICT का फैसला सीधे तौर पर किसी अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपील नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक घरेलू न्यायाधिकरण है। हालांकि, हसीना मामले को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे वैश्विक मंच पर ले जाकर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना सकती है। वह इन जगहों पर वह निष्पक्ष सुनवाई, मानवाधिकार के उल्लंघन और राजनीतिक प्रताड़ना का मुद्दा उठा सकती हैं। हालांकि, इसके बाद भी उनकी सजा रुक नहीं सकती है।
सवाल
क्या उन्हें गिरफ्तार या प्रत्यर्पित किया जा सकता है?
चूंकि हसीना भारत में हैं, इसलिए बांग्लादेश उनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है। भारत प्रत्यर्पण के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन राजनीतिक परिस्थिति इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। प्रत्यर्पण न होने पर वह अपील का अधिकार खो देगी। ऐसे में माना जा रहा है कि हसीना मामले में बचने के लिए आवश्यक रूप से अपील करेगी, लेकिन इसके लिए उन्हें आत्मसर्पण करने या गिरफ्तार होने का रास्ता चुनना होगा।