अमेरिका: गर्भपात की दवा 'मिफेप्रिस्टोन' पर नहीं लगेगा बैन, कोर्ट ने सुनाया फैसला
क्या है खबर?
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली गर्भपात की गोली 'मिफेप्रिस्टोन' पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है।
शुक्रवार को कोर्ट ने निचली अदालतों के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिससे गर्भपात की दवा की उपलब्धता गंभीर रूप से प्रतिबंधित हो जाती।
ऐसे में दो रूढ़िवादी न्यायाधीशों ने निचली अदालतों के इस फैसले पर अपनी असहमति जताई है।
मामला
क्या है मामला?
दरअसल, अमेरिका में गर्भपात की दवा के इस्तेमाल से जुड़ी कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई थी, जब 10 महीने पहले टेक्सास में एक संघीय जज ने मिफेप्रिस्टोन दवा पर देशव्यापी बैन लगाने का आदेश दिया था।
आदेश में कहा गया था कि इस दवा का इस्तेमाल जन्म लेने से पहले ही बच्चे की हत्या करने के लिए किया जा रहा है।
इस फैसले खिलाफ राष्ट्रपति जो बाइडन के न्याय विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में एक आपातकालीन अपील दायर की थी।
अपील
अपील में क्या कहा था?
राष्ट्रपति बाइडन के न्याय विभाग ने अपनी अपील में कहा था कि मिफेप्रिस्टोन के उपयोग पर निचली अदालत ने प्रतिबंध लगा दिया है, जिसे 2000 में खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा अनुमोदित किया गया था। इस फैसले ने FDA ने चिकित्सा निर्णय को कमजोर कर दिया है और महिलाओं के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है।
ऐसे में सरकार और निर्माता डैंको लेबोरेट्रीज की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले पर रोक लगा दी है।
बयान
कोर्ट के फैसले पर बाइडन ने क्या कहा?
बाइडन ने अपने बयान में कहा, "सुप्रीम कोर्ट की निचली अदालतों के फैसले पर रोक परिणामस्वरूप अब देश में मिफेप्रिस्टोन सुरक्षित और प्रभावी उपयोग के लिए उपलब्ध और स्वीकृत है, जबकि हम अदालत में इस लड़ाई को जारी रखेंगे और मैं महिलाओं के स्वास्थ्य पर राजनीतिक रूप से संचालित हमलों से लड़ना जारी रखूंगा।"
बता दें, ये मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और 9 न्यायाधीशों की बेंच में से 2 न्यायाधीश निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हैं।
गर्भपात
अमेरिका में गर्भपात को लेकर विवाद क्यों?
1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।
इसमें कहा गया था कि गर्भधारण और गर्भपात का फैसला सरकार का नहीं महिला का होना चाहिए। इस मामले में रो बनाम वेड मामला कहा गया।
1973 में कोर्ट ने महिला के हक में फैसला दिया और गर्भपात को कानूनी करार देते हुए महिलाओं का इसका संवैधानिक हक दे दिया था। इसी फैसले को निचली अदालतों ने पलट दिया था।