भारत की अध्यक्षता वाले UNSC ने आतंकवाद पर बयान से हटाया तालिबान का जिक्र
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी हमले से संबंधित अपने बयान में तालिबान का जिक्र नहीं किया है। ये उसके पुराने रुख के विपरीत है जब आतंकवाद पर अपने एक बयान में उसने तालिबान का जिक्र किया था। दोनों बयान लगभग समान है, बस ताजा बयान से तालिबान का जिक्र हटा दिया गया है। भारत ने UNSC के अध्यक्ष के तौर पर इस बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।
क्या था पुराना बयान?
तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद 16 अगस्त को UNSC की ओर से बयान जारी करते हुए भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरूमूर्ति ने कहा था, "सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद से लड़ने के महत्व को स्वीकार किया और माना कि अफगानिस्तान का किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाए... तालिबान या किसी अन्य अफगान समूह को अन्य देश में सक्रिय आतंकी का समर्थन नहीं करना चाहिए।"
अब UNSC ने क्या कहा?
अब काबुल एयरपोर्ट पर बम धमाकों के बाद जारी किए गए अपने बयान में UNSC अध्यक्ष तिरूमूर्ति ने कहा है, "सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अफगानिस्तान में आतंकवाद से लड़ने के महत्व को दोहराया है, ताकि यह सुनश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान का किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमले के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाए... किसी भी अफगान समूह को किसी भी देश में सक्रिय आतंकियों का समर्थन नहीं करना चाहिए।"
तालिबान को स्वीकार करने की तरफ बढ़ रही दुनिया
विशेषज्ञ दोनों बयानों में इस अंतर तालिबान को लेकर बढ़ती स्वीकार्यता का प्रतीक मान रहे हैं। भारत इसमें सबसे अहम है क्योंकि वह उन चुनिंदा बड़े देशों में शामिल है जिसने अभी तक आधिकारिक तौर पर तालिबान से बातचीत नहीं की है। भारत ने तालिबान को कभी मान्यता नहीं दी है और अभी भी वह ऐसा करने की जल्दबाजी में नहीं है। अभी तक उसके तालिबान से बातचीत पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है।
तालिबान के कब्जे के बाद भारत के लिए बदल गए हैं समीकरण
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही भारत के लिए सारे समीकरण बदल गए हैं जो अभी तक अफगानिस्तान में लोकतंत्र और विकास को बढ़ावा देने में आगे रहा है। भारत को आशंका है कि तालिबान के आने के बाद पाकिस्तान अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कर सकता है। भारत अभी स्थिति पर नजर बनाए हुए है, हालांकि उसकी पहली प्राथमिकता वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकालना है।
अफगानिस्तान में क्या चल रहा है?
अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है और अपनी सरकार बनाने की जुगत में लगा हुआ है। उसका प्रयास है कि वह एक ऐसी सरकार बना सके जो अफगानिस्तान के अधिकांश लोगों को स्वीकार हो और इस संबंध में उसके नुमांइदे विभिन्न वर्गों से बातचीत कर रहे हैं। तालिबान ने साफ कर दिया है कि देश में लोकतंत्र नहीं होगा और वो एक परिषद के जरिए देश का शासन चलाएगा।