नेपाल: राष्ट्रपति ने भंग की संसद, छह महीने के अंदर चुनाव कराने का आदेश
महीनों की राजनीतिक अस्थिरता के बाद अब नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद को भंग कर दिया है और अगले छह महीने के अंदर ताजा चुनाव कराने के आदेश दिए हैं। कार्यकारी प्रधानमंत्री केपी ओली की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शुक्रवार रात को संसद को भंग करने का आदेश जारी किया। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, देश में 12 से 18 नवंबर के बीच चुनाव हो सकते हैं।
राष्ट्रपति ने हाल ही में खारिज किया था सरकार बनाने का ओली का दावा
राष्ट्रपति ने संसद भंग करने का यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब हाल ही में उन्हें सरकार बनाने के ओली के दावे को कानूनी सलाह के बाद खारिज करना पड़ा था। ओली ने बहुमत से चार अधिक 153 सांसदों के समर्थक की सूची राष्ट्रपति को सौंपी थी और इसमें उनके कई विरोधियों का नाम भी शामिल था। इसके बाद विपक्षी पार्टियों ने धमकी दी थी कि ओली को प्रधानमंत्री बनाने पर वह राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगी।
दिसंबर से नेपाल में बना हुई थी राजनीतिक अस्थिरता
बता दें कि 39 महीने पहले नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले ओली को पिछले साल दिसंबर में पार्टी में आंतरिक कलह के बाद बहुमत खोना पड़ा था। पार्टी में इस टकराव का मुख्य कारण ओली और वरिष्ठ नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच तनाव रहा। ओली पर राजतंत्रवादियों का खुला समर्थन करने और राजशाही के समर्थन में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही रैलियों का मौन समर्थन करने का आरोप भी लगा।
ओली ने दिसंबर में की थी संसद भंग करने की सिफारिश
इस झगड़े के बीच ओली ने दिसंबर में देश की संसद को भंग करने की अप्रत्याशित सिफारिश कर सबको हैरान कर दिया था। उनके इस फैसले को कम्युनिस्ट पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने असंवैधानिक बताया था और ओली को पार्टी से निकालने की धमकी दी थी। इसके बाद इस साल जनवरी में पार्टी ने ओली को पार्टी से बाहर निकाल दिया और उनकी प्राथमिक सदस्या तक रद्द कर दी। इसी के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई थी।
दोनों धड़े खुद को बता रहे प्रमाणिक
अभी कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों धड़े खुद को प्रामाणिक पार्टी बता रहे हैं और चुनाव आयोग मामले पर विचार कर रही है। सभी दस्तावेजों और कानूनों का अध्ययन कर चुनाव आयोग ये फैसला लेगा कि कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव चिन्ह 'सूरज' किसे दिया जाएगा। देश में नवंबर में आम चुनाव होने हैं और चुनाव आयोग जिस धड़े के समर्थन में फैसला सुनाएगा, वह सूरज चुनाव चिन्ह का उपयोग कर सकेगा।
चीन ने की थी बंटवारे को रोकने की खूब कोशिश
बता दें कि चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के बंटवारे को रोकने के लिए भरपूर कोशिश की थी और इसके लिए उसका एक दल नेपाल भी आया था। हालांकि वह दोनों धड़ों के बीच बनी खाई को पाटने में नाकामयाब रहा और पार्टी बंट गई।