चीन के 'वन बेल्ट वन रोड' और पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा बनेगा तालिबान
क्या है खबर?
अफगानिस्तान का तालिबान प्रशासन चीन की महत्वाकांक्षी 'वन बेल्ट वन रोड' (OBOR) परियोजना से जुड़ने जा रहा है। अफगानिस्तान के कार्यवाहक वाणिज्य मंत्री हाजी नुरूद्दीन अजीजी ने इस बात की पुष्टि की है।
उन्होंने कहा कि तालिबान प्रशासन औपचारिक रूप से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विशाल OBOR बुनियादी ढांचा पहल में शामिल होना चाहता है। तालिबान ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) से जुड़ने की भी बात कही है।
टीम
तकनीकी टीम को चीन भेजेगा तालिबान
तालिबान ने कहा है कि वो इस संबंध में बातचीत के लिए अपनी एक तकनीकी टीम को चीन भेजेगा।
कार्यवाहक वाणिज्य मंत्री हाजी अजीजी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "हमने चीन से अनुरोध किया कि वह हमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और OBOR का हिस्सा बनने की अनुमति दे। हम तकनीकी मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। चीन को अफगानिस्तान में भी निवेश करना चाहिए। हमारे पास उनकी जरूरत की हर चीज है।"
खनिज
अफगानिस्तान के खनिज भंडार पर चीन की नजर
बता दें कि अफगानिस्तान में तांबा, सोना और लीथियम के बड़े भंडार हैं। चीन पहले से ही अफगानिस्तान में एक बड़ी तांबा खदान पर काम कर रहा है और इसके लिए तालिबान के साथ बातचीत जारी है।
चीन तक सीधी पहुंच प्रदान करने के लिए उत्तरी अफगानिस्तान में एक पतली पहाड़ी सड़क बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान के विशाल खनिज भंडार पर चीन की नजरें हैं।
बैठक
हाल ही में हुई है बेल्ट एंड रोड फोरम बैठक
चीन में इसी हफ्ते बेल्ट एंड रोड फोरम बैठक हुई है। इसमें 100 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। चीन ने इसके लिए तालिबान को भी आमंत्रित किया था।
तालिबान पहले भी OBOR पर कई क्षेत्रीय बैठकों में भाग ले चुका है, लेकिन इस स्तर की बड़ी बैठक में पहली बार तालिबान शामिल हुआ था। इससे पहले पाकिस्तान ने भी कहा था कि वो OBOR में अफगानिस्तान को शामिल करना चाहता है।
OBOR
न्यूजबाइट्स प्लस
OBOR परियोजना 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गई थी। इसके जरिए चीन ऐतिहासिक रेशम मार्ग को फिर से विकसित करना चाहता है। श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान समेत करीब 100 से ज्यादा देश इस परियोजना का हिस्सा हैं।
आलोचक इसे भूराजनीतिक प्रभाव बढ़ाने और देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर उनके संसाधनों का दोहन करने की चीन की नीति का जरिया मानते हैं।