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    #SportsHeroesOfIndia: निशाना लगाकर आम तोड़ने से लेकर विश्व की नंबर एक तीरंदाज बनने का सफर

    #SportsHeroesOfIndia: निशाना लगाकर आम तोड़ने से लेकर विश्व की नंबर एक तीरंदाज बनने का सफर

    लेखन Neeraj Pandey
    Jan 29, 2019
    04:33 pm

    क्या है खबर?

    भारत में एक कहावत बड़ी मशहूर है- बहुत तीरंदाज मत बनो। हालांकि यह कहना बेहद आसान होता है लेकिन तीरंदाज बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है।

    रांची की रहने वाली दीपिका कुमारी ने तीरंदाजी में भारत के झंडे को कई बार ऊंचा किया है लेकिन उन्हें यहां तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है।

    जानिए आखिर कैसे एक ऑटो रिक्शा चालक की बेटी बन गई दुनिया की नंबर वन तीरंदाज।

    बचपन

    ऑटो रिक्शा चलाते थे पिता

    दीपिका का जन्म 13 जून, 1994 को रांची से 15 किलोमीटर दूर रातू नामक गांव में हुआ था। दीपिका के पिता शिवनारायन महतो ऑटो रिक्शा चलाते थे।

    उनका परिवार काफी गरीब था और इसके साथ ही उनका गांव भी काफी पिछड़ा हुआ था। हालांकि, इन सबका दीपिका के ऊपर प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि उन्हें तो अपना लक्ष्य ही दिख रहा था।

    शुरुआत में उन्होंने लकड़ी द्वारा बनाए गए तीर-धनुष के साथ प्रैक्टिस करना शुरु किया था।

    तीरंदाजी का सफर

    आम पर निशाना लगाने से शुरु हुआ तीरंदाजी का सफर

    बचपन में एक बार दीपिका अपनी मां के साथ कहीं जा रहीं थीं तो उन्होंने आम का पेड़ देखा और आम तोड़ने की बात कही।

    उनकी मां ने कहा कि पेड़ काफी ऊंचा है और उससे आम नहीं तोड़ सकोगी, लेकिन दीपिका पीछे हटने वाली नहीं थीं।

    उन्होंने पत्थर उठाया और सीधा आम पर दे मारा। दीपिका का निशाना इतना सटीक था कि आम तुरंत नीचे आ गया।

    दीपिका का निशाना देखकर उनकी मां भी चौंक गई थीं।

    पहला ब्रेक

    2005 में मिला पहला ब्रेक

    दीपिका के लिए तीरंदाजी करना काफी मुश्किल था क्योंकि इसके सामान काफी महंगें आते थे और उनका परिवार काफी गरीब था। लेकिन फिर भी किसी तरह उनके परिवार ने उन्हें तीरंदाजी करने के लिए सपोर्ट किया और फिर 2005 में उन्हें पहला ब्रेक मिला।

    उन्हें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी द्वारा खोले गए अर्जुन तीरंदाजी एकेडमी में जाने का मौका मिला।

    एकेडमी जाकर उन्होंने अपने स्किल्स को काफी ज़्यादा सुधारा।

    टाटा एकेडमी

    टाटा एकेडमी ने बनाया तीरंदाजी सुपरस्टार

    2006 में दीपिका को टाटा एकेडमी जाने का मौका मिला जहां उन्होंने विशुद्ध रूप से तीरंदाजी की ट्रेनिंग लेनी शुरु की।

    दीपिका को वहां उपयुक्त उपकरण मिले और इसके अलावा उन्हें 500 रूपए प्रति माह वेतन के रूप में भी मिलते थे।

    ट्रेनिंग के दौरान दीपिका इतनी व्यस्त थीं कि उन्हें 2009 में कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप टाइटल जीतने के बाद तीन साल के अंतराल पर घर जाने का मौका मिला था।

    जानकारी

    2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में जीते दो गोल्ड मेडल

    दीपिका ने 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीते थे। उन्होंने एक गोल्ड व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा तो वहीं दूसरा विमेंस रिकर्व टीम की प्रतियोगिता में जीता था। 2010 में ही चीन में हुए एशियन गेम्स में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।

    जानकारी

    वर्ल्ड कप में शानदार रहा है प्रदर्शन

    दीपिका ने 2011 में पहला तीरंदाजी वर्ल्ड कप खेला था। इस्तांबुल में हुए तीरंदाजी वर्ल्ड कप में दीपिका को सिल्वर मेडल मिला था। 2012 के वर्ल्ड कप में उन्होंने पहला गोल्ड मेडल जीता। दीपिका के नाम तीन वर्ल्ड कप गोल्ड और तीन सिल्वर मेडल हैं।

    विश्व नंबर वन

    2012 में बनी विश्व की नंबर वन तीरंदाज

    2012 तुर्की में हुए वर्ल्ड कप में दीपिका ने अपना पहला रिकर्व तीरंदाजी गोल्ड मेडल जीता और फिर विश्व की नंबर वन तीरंदाज भी बनीं।

    हालांकि, उसी साल लंदन ओलंपिक्स में दीपिका का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और उन्हें ओपनिंग राउंड में ही हार झेलकर बाहर होना पड़ा था।

    फिलहाल तीरंदाजी में भारत के लिए तीन वर्ल्ड कप गोल्ड मेडल और दो कॉमनवेल्थ गेम्स गोल्ड मेडल जीत चुकीं दीपिका वर्ल्ड रैंकिंग में पांचवें स्थान पर काबिज हैं।

    जानकारी

    पद्मश्री से नवाजी जा चुकी हैं दीपिका

    2012 में विश्व की नंबर वन तीरंदाज बनने के बाद दीपिका को 'अर्जुन अवार्ड' से सम्मानित किया गया था। 2016 में तीरंदाजी के क्षेत्र में उनके योगदानों को देखते हुए 24 वर्षीया दीपिका को 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था।

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