हवा और अंतरिक्ष यात्री के मूत्र से अंतरिक्ष में बनेगा भोजन, जानिए क्या है योजना
क्या है खबर?
अंतरिक्ष अभियानों के दौरान भोजन की समस्या से निपटने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने 'होबी-वान' नामक नई परियोजना शुरू की है। इसका उद्देश्य चंद्रमा और मंगल ग्रह पर लंबे समय तक चलने वाले मिशनों के लिए टिकाऊ खाद्य उत्पादन प्रणाली विकसित करना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे अंतरिक्ष यात्रियों को सीमित संसाधनों के साथ जीवनयापन में मदद मिलेगी और भविष्य के मानव मिशनों के लिए आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
भोजन
हवा और मूत्र से बनेगा अंतरिक्ष भोजन
ESA की यह योजना बेहद अनोखी है, जिसमें हवा और अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र से भोजन बनाने की तकनीक विकसित की जा रही है। इस परियोजना में फिनलैंड की कंपनी सोलर फूड्स शामिल है, जिसने 'सोलिन' नाम का एक पाउडर प्रोटीन तैयार किया है। यह गैस किण्वन प्रक्रिया से सूक्ष्मजीवों, हवा और बिजली के जरिए बनाया जाता है। अब इस तकनीक का अंतरिक्ष में परीक्षण किया जाएगा ताकि मिशनों में इसे इस्तेमाल किया जा सके।
चुनौतियां
वैज्ञानिकों के सामने बड़ी चुनौतियां
यह तकनीक पूरी तरह आसान नहीं है। अंतरिक्ष में गैसों और तरल पदार्थों का व्यवहार पृथ्वी से अलग होता है, जिससे उत्पादन प्रक्रिया जटिल हो जाती है। पृथ्वी पर जहां नाइट्रोजन के लिए अमोनिया का इस्तेमाल होता है, वहीं अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र से प्राप्त यूरिया को नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में उपयोग किया जाएगा। वैज्ञानिकों के सामने यह सुनिश्चित करने की चुनौती है कि तैयार किया गया भोजन सुरक्षित और पौष्टिक हो।
परियोजना
मानव मिशनों के लिए नई उम्मीद बनी परियोजना
सोलर फूड्स का कहना है कि यह तकनीक अंतरिक्ष में भोजन उत्पादन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। कंपनी का उद्देश्य यह साबित करना है कि सोलिन उत्पादन सूक्ष्मगुरुत्व में भी संभव है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो यह भविष्य के चंद्र और मंगल मिशनों के लिए भोजन आपूर्ति की समस्या का स्थायी समाधान बन सकता है। यह परियोजना मानव अंतरिक्ष अन्वेषण में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती है।