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    ISRO का 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का लक्ष्य, जानें क्या है योजना
    स्पेस में 2035 तक भारत का स्पेस स्टेशन बनाने का लक्ष्य

    ISRO का 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का लक्ष्य, जानें क्या है योजना

    लेखन रोहित राजपूत
    Oct 31, 2022
    04:13 pm

    क्या है खबर?

    भारत ने 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए नया और फिर से इस्तेमाल किया जाने वाला रॉकेट नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) भी बनाया जाएगा।

    NGLV को बल्क मैन्युफैक्चरिंग के लिए डिजाइन किया जाएगा, जिससे अंतरिक्ष में आने-जाने में लागत कम आएगी।

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रॉकेट के विकास के लिए निजी क्षेत्र को साथ में काम करने का प्रस्ताव भी दिया है।

    जानकारी

    क्या होता है अंतरिक्ष स्टेशन?

    अंतरिक्ष में मौजूद इस बड़े स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष यात्रियों का घर कहा जा सकता है। ये पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है। यहां अंतरिक्ष यात्री जाकर रुकते हैं और यहां वे सभी रिसर्च की जाती हैं, जिन्हें धरती पर नहीं किया जा सकता।

    बयान

    योजना में निजी उद्योगों को शामिल करने का क्या है मकसद?

    PTI के मुताबिक ISRO के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, "अंतरिक्ष एजेंसी रॉकेट के डिजाइन पर काम कर रही है और वह चाहेगी कि इसके विकास में निजी उद्योग की भी साझेदारी हो।"

    उन्होंने आगे कहा, "निजी उद्योगों का इसके विकास की प्रक्रिया में शामिल करने का प्रस्ताव इसलिए दिया गया है ताकि आने वाली लागत का भार सरकार पर अकेले न पड़े। हम चाहते हैं कि उद्योग हम सभी के लिए इस रॉकेट को बनाने के लिए निवेश करें।"

    योजना

    NGLV रॉकेट को लेकर ISRO की क्या है योजना?

    ISRO का पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) 1980 के दशक में विकसित तकनीक पर आधारित है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में रॉकेट लॉन्च करने के लिए नहीं किया जा सकता।

    इसलिए ISRO ने एक साल के अंदर NGLV का डिजाइन तैयार करने का लक्ष्य रखा है। जिसका पहला प्रक्षेपण 2030 में करने की योजना है।

    इस रॉकेट की जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में 10 टन पेलोड और पृथ्वी की निचली कक्षा में 20 टन पेलोड ले जाने की क्षमता होगी।

    लागत

    ये होगी रॉकेट की खासियत

    NGLV तीन चरणों वाला रॉकेट हो सकता है, जो हरित ईंधन संयोजन जैसे मीथेन और तरल ऑक्सीजन या केरोसिन और तरल ऑक्सीजन द्वारा संचालित होगा।

    इस महीने की शुरुआत में एक सम्मेलन में सोमनाथ ने बताया था कि NGLV से फिर से इस्तेमाल होने वाले स्वरूप में 1,900 डॉलर (लगभग 1.6 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम पेलोड और उत्सर्जनीय स्वरूप में 3,000 डॉलर (लगभग 2.5 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम की लॉन्च की लागत आ सकती है।

    न्यूजबाइट्स प्लस

    अंतरिक्ष में बढ़ेगी भारत की ताकत

    ISpA-E&Y एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि 2020 में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 960 करोड़ डॉलर (लगभग 79,000 करोड़ रुपये) थी, जो 2025 तक 1,280 करोड़ डॉलर (लगभग 1,05,000 करोड़ रुपये) तक बढ़ जाएगी।

    रिपोर्ट में सैटेलाइट सर्विस के क्षेत्र में लगभग 38,000 करोड़ रुपये, जमीनी कामों के क्षेत्र में 33,000 करोड़ रुपये, सैटेलाइट निर्माण में 26,000 करोड़ रुपये और प्रक्षेपण में 8,000 करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था 2025 तक होने का अनुमान है।

    जानकारी

    दुनिया में कितने अंतरिक्ष स्टेशन हैं?

    अभी केवल दो अंतरिक्ष स्टेशन ही पूरी तरह से कार्यरत हैं। एक है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और दूसरा चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन (TSS)। हाल ही में रूस ने भी ISS से हटके अपना अलग स्टेशन बनाने का ऐलान किया था।

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