आदित्य-L1 को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। यहां से उसने करीब 125 दिनों की 15 लाख किलोमीटर लंबी यात्रा शुरू कर दी है। आज के लाइव ब्लॉग में सिर्फ इतना ही। हमारे साथ बने रहने के लिए आपका धन्यवाद।
मिशन पूरा होने के बाद अपने संबोधन में ISRO प्रमुख सोमनाथ ने चंद्रयान-3 को लेकर भी जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि प्रज्ञान रोवर अभी तक चांद की सतह पर लगभग 100 मीटर घूम चुका है।
आदित्य-L1 सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। अब यह L1 प्वाइंट के लिए यात्रा जारी रखेगा। इसी के साथ यह मिशन पूरा हो गया है। इस मौके पर ISRO प्रमुख सोमनाथ ने सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी।
मिशन कमांड सेंटर ने पुष्टि कर दी है कि आदित्य-L1 का चौथे चरण का प्रज्वलन शुरू हो गया है। यह 472 सेकंड तक जारी रहेगा। अभी तक इसके सारे तंत्र उम्मीद के अनुरूप काम कर रहे हैं।
आदित्य-L1 मिशन पहले लो अर्थ ऑर्बिट में भेजा जाएगा और फिर इसे अंडाकार ऑर्बिट में भेजा जाएगा। इसके बाद धीरे-धीरे इसकी ऑब्जर्वेटरी कक्षा को बढ़ाया जाएगा। इस प्रक्रिया के जरिए आदित्य-L1 को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकाला जाएगा।
चंद्रयान-2 मिशन की कामयाबी के बाद भारत ने आदित्य-L1 मिशन के जरिये सूरज की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। इस मिशन को 11:50 बजे लॉन्च किया था। फिलहाल PSLV के अलग होने का तीसरा चरण पूरा हो गया है और सभी सिस्टम ठीक तरीके से काम कर रहे हैं।
देश का पहला सौर मिशन आदित्य-L1 सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया है। इसे 11:50 मिनट पर श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। यह लगभग 4 महीने सफर कर अपनी मंजिल पर पहुंचेगा।
आदित्य-L1 मिशन की लॉन्चिंग में अब महज 5 मिनट बाकी हैं। अभी तक इसके सारे सिस्टम ठीक तरीके से काम कर रहे हैं और कुछ ही देर में यह रॉकेट उड़ान भर लेगा।
ISRO के सूर्य मिशन आदित्य-L1 की लॉन्चिंग को देखने के लिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) श्रीहरिकोटा में बड़ी संख्या में लोग मौजूद हैं। आप घर बैठे ISRO के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर भी लॉन्चिंग इवेंट देख सकते हैं।
आदित्य-L1 का ऑटोमैटिक लॉन्च सीक्वेंस शुरू हो चुका है। अब लॉन्च से जुड़ी सारी कमांड्स मशीन के हाथ में आ गई है और मानवीय हस्तक्षेप कम हो गया है।
सूरज का अवलोकन करने वाले देश के पहले मिशन आदित्य-L1 की लॉन्चिंग में अब कुछ ही मिनट बाकी बचे हैं। ISRO के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर इसका प्रसारण शुरू हो चुका है।
देश के पहले सौर आधारित अंतरिक्ष अभियान आदित्य-L1 के लॉन्च का अंतिम काउंटडाउन शुरू हो चुका है। आज सुबह 11:50 मिनट पर इसे श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा।
जापान ने 1981 में अपना पहला सौर अवलोकन सैटेलाइट हिनोटोरी (ASTRO-A) लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य हार्ड एक्स-रे का उपयोग करके सौर ज्वालाओं का अध्ययन करना था। इसके बाद जापान ने अमेरिकी और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ मिलकर भी ऐसे मिशन लॉन्च किए थे।
चीन ने अंतरिक्ष आधारित उन्नत सौर ऑब्जर्वेटरी (ASO-S) को पिछले साल 8 अक्टूबर को लॉन्च किया था। अंतरिक्ष के मौसम की भविष्यवाणियों में सुधार और सूर्य का अध्ययन करने के यह मिशन लॉन्च किया गया था। इससे सूर्य के वायुमंडल की विभिन्न लेयर्स के जरिए ऊर्जा का ट्रांसपोर्टेशन और सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की वजह से सोलर फ्लेयर्स पर होने वाले असर आदि को समझा जाएगा।
चंद्रयान-3 की प्रोग्रामिंग मैनेजर प्रेरणा चंद्रा ने आदित्य-L1 के बारे में बताया कि दूसरे देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने सूरज का विश्लेषण किया है। भारत के पास अभी तक कोई सौर ऑब्जर्वेटरी नहीं है। आदित्य-L1 की मदद से भारत सूरज का विश्लेषण कर पाएगा, जो आगामी अंतरिक्ष अभियानों और अंतरिक्ष के वातावरण के समझने में मददगार होगा।
ISRO ने बताया कि आदित्य-L1 यान धरती से सूरज की तरफ करीब 15 लाख किलोमीटर दूर जाएगा। यह धरती से सूरज की दूरी का लगभग 1 प्रतिशत है। यह सूरज के बाहरी वातावरण का अध्ययन करेगा। यह न सूरज पर लैंड करेगा और न ही सूरज के पास जाने की कोशिश करेगा।
भारत से पहले अमेरिका, चीन, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने सौर मिशन भेजे हैं। अब भारत इस कतार में शामिल होने जा रहा है और कई अन्य देश भी ऐसे मिशनों को लॉन्च करने की तैयारी में है। सबसे ज्यादा सौर मिशन अमेरिका ने भेजे हैं।
चंद्रयान-2 की सफलता से उत्साहित ISRO आज एक और महत्वपूर्ण मिशन लॉन्च करने जा रहा है। देश के पहले सौर आधारित अंतरिक्ष मिशन आदित्य-L1 को आज यानी 2 सितंबर को 11:50 बजे लॉन्च किया जाएगा।
आदित्य-L1 यान का आकार एक फ्रीज के बराबर है और इसका वजन लगभग 1,500 किलोग्राम है। इसे एडवांस्ड कार्बन फाइबर कंपोजिट से बनाया गया है और यह मजबूत होने के साथ-साथ लचीला भी है।
1,000 करोड़ रुपये के बजट वाले आदित्य-L1 मिशन को L1 बिंदु तक पहुंचने में लगभग 4 महीने का समय लगेगा और यह कम से कम 5 साल तक काम करेगा। इस अवधि में सूर्य की सतह पर होने वाले विस्फोटों और सोलर विंड के बारे में भी कई नई जानकारियां मिलने की उम्मीद है।