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कथित 'वोट चोरी' मामला: न्यायाधीशों और नौकरशाहों ने राहुल गांधी के आरोपों की निंदा की
राहुल गांधी के आरोपों पर 272 लोगों ने खुला पत्र जारी किया

कथित 'वोट चोरी' मामला: न्यायाधीशों और नौकरशाहों ने राहुल गांधी के आरोपों की निंदा की

लेखन गजेंद्र
Nov 19, 2025
01:37 pm

क्या है खबर?

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा लगातार उठाए जा रहे 'वोट चोरी' के मुद्दे पर नाराजगी जताते पूर्व न्यायाधीश और नौकरशाह समेत 272 लोगों ने एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में 16 न्यायाधीशों, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाहों और 133 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं। नौकरशाहों में 14 पूर्व राजदूत भी हैं। सभी ने कांग्रेस सांसद राहुल और उनकी पार्टी पर चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने के प्रयासों का आरोप लगाते हुए निंदा की है।

पत्र

पत्र में क्या लिखा है?

राष्ट्रीय संवैधानिक प्राधिकारियों पर हमला शीर्षक से लिखे पत्र में कहा गया है कि समाज के वरिष्ठ नागरिक इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं कि भारतीय लोकतंत्र पर बल प्रयोग से नहीं, बल्कि आधारभूत संस्थाओं के विरुद्ध जहरीली बयानबाजी की बढ़ती लहर से हमला हो रहा है। बिना राहुल का नाम लिए पत्र में लिखा गया कि कुछ राजनेता, वास्तविक नीतिगत विकल्प प्रस्तुत करने के बजाय, अपनी नाटकीय राजनीतिक रणनीति के तहत भड़काऊ-निराधार आरोपों का सहारा लेते हैं।

नाराजगी

राहुल के औपचारिक शिकायत न देने पर नाराजगी

पत्र में कहा गया कि सेना, न्यायपालिका और संसद के बाद अब चुनाव आयोग अपनी ईमानदारी-प्रतिष्ठा पर षड्यंत्रकारी हमलों का सामना करे। पत्र में लिखा कि नेता प्रतिपक्ष ने बार-बार सबूत पेश करने की बात कही और खुलेआम धमकी दी, लेकिन उन्होंने कोई औपचारिक शिकायत नहीं दी। पत्र में पूरे विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा गया कि उनके व्यवहार का यह पैटर्न 'नपुंसक क्रोध' कहलाने वाले गहरे गुस्से को दर्शाता है, जो बार-बार चुनावी हार-हताशा से उपजा है।

सुझाव

चुनाव आयोग पीड़ित का दिखावा करने वाली राजनीति को नकारे- पत्र

पत्र में चुनाव आयोग से अपील की गई है कि वह पारदर्शिता और कठोरता के अपने मार्ग पर चलता रहे। पूरे आंकड़े प्रकाशित करे, जरूरत पड़ने पर कानूनी तरीकों से अपना बचाव करे, और पीड़ित होने का दिखावा करने वाली राजनीति को नकारे। पत्र में राजनीतिक नेताओं से अपील की गई है कि वे संवैधानिक प्रक्रिया का सम्मान करें, बेबुनियाद आरोपों नहीं, बल्कि नीतियों की स्पष्टता के ज़रिए प्रतिस्पर्धा करें, और लोकतांत्रिक फ़ैसलों को शालीनता से स्वीकार करें।