#NewsBytesExplainer: जयपुर में जाट महाकुंभ, जानें राजस्थान की राजनीति में क्या है जाट समुदाय की अहमियत?
क्या है खबर?
जयपुर में रविवार को जाट महाकुंभ का आयोजन हुआ। इस महाकुंभ में बड़ी संख्या में जाट समाज के लोग एकत्रित हुए और कई राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल हुए।
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले हुई जाट समाज की इस बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
आइए जानते हैं कि राजस्थान की राजनीति में जाटों की क्या अहमियत और ये कैसे चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं।
समीकरण
राजस्थान में काफी प्रभावशाली है जाट समुदाय
जाट राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावशाली जाति समूह हैं और चुनाव परिणामों पर निर्णायक प्रभाव डाल सकते हैं।
इस समुदाय ने आजादी के बाद से पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट दिया है, लेकिन वर्ष 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जाट समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के तहत आरक्षण प्रदान किया था तो जाट समाज ने भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर की थी।
आंकड़े
जातिगत जनगणना की मांग कर रहा है जाट समाज
आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में करीब 15 प्रतिशत जाट आबादी है।
गौरतलब है कि हर चुनाव में कम से कम 10 से 15 प्रतिशत विधायक जाट समुदाय से चुनकर आते हैं। जाट OBC वर्ग में शामिल हैं और शेखावटी इलाका जाटों का गढ़ माना जाता है। जाट मतदाता 50 से 60 विधानसभा सीटों पर सीधा असर डालते हैं।
जाट समुदाय राजस्थान में जातिगत जनगणना और OBC आरक्षण को 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग कर रहा है।
राजनीति
भाजपा को 2018 में नहीं मिला था जाटों का समर्थन
जाट समाज ने अगले दो दशकों तक बड़े स्तर पर भाजपा का समर्थन किया था, लेकिन 2018 विधानसभा चुनाव से पहले जाट नेताओं ने शिकायत की थी कि समुदाय को उसका हक नहीं मिला। उन्होंने जाट मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग भी उठाई थी।
तब राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने खुद को 'जाट की बहू' के रूप में पेश किया था, लेकिन इससे भाजपा को चुनाव में फायदा नहीं मिला और कांग्रेस की जीत हुई थी।
प्रश्न
जाट बहुल इलाकों का दौरा कर रहे हैं पायलट
राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट राजस्थान के जाट बहुल इलाकों का लगातार दौरा कर कांग्रेस के लिए समर्थन मांग रहे हैं।
सचिन खुद गुर्जर समुदाय से आते हैं, जो खुद एक प्रभावशाली समुदाय है। जाटों का समर्थन मिलने पर पायलट को कांग्रेस संगठन के अंदर मजबूती मिल सकती है।
गौरतलब है कि उनके और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच पिछले काफी समय से खींचतान चल रहा है, जो कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या है।
पकड़
भाजपा की पकड़ हो रही है कमजोर
गौरतलब है कि राजस्थान की तत्कालीन राज्य सरकार या केंद्र सरकार में पहुंचने वाले भाजपा के अधिकतर नेता जाट समुदाय से आते रहे हैं, लेकिन जाट बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ लगातार कम होती जा रही है।
हालांकि, भाजपा ने राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और उपराष्ट्रपति के पद पर जाट समुदाय से आने वाले नेताओं को मौका देकर जाट समुदाय को एक बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है।
समीकरण
राजस्थान के बड़े जाट नेता हैं हनुमान बेनीवाल
2018 विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा से अलग हुए जाट नेता हनुमान बेनीवाल ने अपनी एक अलग पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी का गठन किया था। हालांकि, बाद में उन्होंने भाजपा से गठबंधन कर लिया।
बेनीवाल वर्ष 2020 में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से बाहर हो गए थे। उन्होंने कहा था कि किसानों के हितों से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई गठबंधन नहीं है।
जीत
2018 में 37 जाट नेता बने थे विधायक
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक, दिसंबर 2018 में राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में जाट समुदाय के 37 नेताओं ने जीत दर्ज की थी।
जाट बहुल मारवाड़ और शेखावटी की कुल 31 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर जाट नेताओं की जीत हुई थी।
दूसरे नंबर पर राजपूत समुदाय रहा था, जिसके नेताओं ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी।
अब एक बार फिर पार्टियां जाटों को साधने की कोशिश कर रही है।