बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति भवन की ओर से बयान जारी कर ये जानकारी दी गई। बुधवार को ठाकुर की 100वीं जयंती है और इससे पहले उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान देने का ऐलान किया गया है। ठाकुर को पिछड़ी जातियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। आज भी बिहार की राजनीति में उनका बड़ा स्थान है और लगभग हर पार्टी उनका सम्मान करती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जताई फैसले पर प्रसन्नता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि उन्हें इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी और यह भारत रत्न उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है।
JDU और ठाकुर के बेटे ने भी जताई फैसले पर खुशी, सरकार का आभार जताया
बता दें कि बिहार की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) लंबे समय से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग कर रही थी। अब उन्हें ये सम्मान मिलने पर पार्टी ने मोदी सरकार का शुक्रिया अदा किया है। इसके अलावा ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि उन्हें 36 साल की तपस्या का फल मिला है और वे 15 करोड़ बिहारियों की तरफ से सरकार का धन्यवाद करते हैं।
बेहद साधारण परिवार से सत्ता के शिखर तक पहुंचे कर्पूरी ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर का 24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव (अब कर्पूरी ग्राम) में एक बेहतर साधारण नाई परिवार में जन्म हुआ था। वे छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) के सदस्य थे। वे समाजवादी विचारधारा के थे और राम मनोहर लोहिया के विचारों से बेहद प्रभावित रहे। लोहिया के साथ-साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण को उनका राजनीतिक गुरू माना जाता है। ये दोनों समाजवाद के बड़े स्तंभ हैं।
2 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे ठाकुर, पिछड़ों को दिया आरक्षण
कर्पूरी ठाकुर 1970 के दशक में 2 बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने कई ऐसे काम किए, जिन्होंने उन्हें पिछड़ी जातियों का मसीहा बना दिया और उन्हें 'जननायक' की उपाधि दी गई। इनमें सबसे अहम पिछड़ी जातियों को 26 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला रहा। इसी फैसले ने मंडल आयोग की नींव रखी और देश की राजनीति को बदल कर रख दिया। इसके अलावा उन्होंने जमींदारों से लेकर भूमिहीन दलितों को जमीन भी दी।
लालू और नीतीश के राजनीतिक गुरू थे ठाकुर
कर्पूरी ठाकुर को बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके लालू प्रसाद यादव और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरू भी माना जाता है। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी ठाकुर के संरक्षण में राजनीति के गुण सीखे। ठाकुर एक राजनेता के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे। वे एक शिक्षक भी थे और अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई सुधार किए।