सुप्रीम कोर्ट ने लगाई कृषि कानूनों के अमल पर रोक, स्थिति समझने के लिए बनाई समिति
क्या है खबर?
नए कृषि कानूनों पर अहम फैसला सुनाते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक इनके अमल पर रोक लगा दी। कोर्ट ने जमीनी स्थिति समझने के लिए एक चार सदस्यीय समिति का गठन भी किया है और सभी पक्षों को इसके सामने अपनी दलीलें रखने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबड़े ने अपने आदेश में कहा कि समिति कोई आदेश या किसी को सजा नहीं देगी, बल्कि केवल कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी।
समिति
समिति में इन लोगों को दी गई जगह
सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों और सरकार का पक्ष जानने के लिए जो चार सदस्यीय समिति बनाई है, उसमें भारतीय किसान यूनियन (BKU) के अध्यक्ष भूपेंदर सिंह मान, अंतरराष्ट्रीय नीति प्रमुख डॉ प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और महाराष्ट्र के शिवकेरी संगठन के अनिल धनवट शामिल हैं।
जहां कई किसान संगठन समिति के सामने अपना पक्ष रखने को तैयार हो गए हैं, वहीं कुछ संगठनों ने समिति के सामने पेश न होने की बात कही है।
ट्रैक्टर रैली
"खालिस्तानी तत्वों" का हवाला दे सरकार ने खड़े किए 26 जनवरी को रैली पर सवाल
इससे पहले सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली पर चिंता जाहिर की और इसे 'सिख फॉर जस्टिस' जैसे खालिस्तानी संगठनों का समर्थन हासिल होने की बात कही।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि प्रदर्शनों में खालिस्तानियों ने घुसपैठ कर दी है और वे इसे फंड कर रहे हैं। कोर्ट ने उन्हें कल तक इस पर हलफमाना दाखिल करने को कहा है।
जानकारी
किसानों ने मांगी रामलीला मैदान में प्रदर्शन की अनुमति
इसके अलावा किसानों के वकीलों ने विरोध प्रदर्शन के लिए एक बेहतर जगह की मांग भी की और इसके लिए रामलीला मैदान और बोट क्लब के विकल्प भी सुझाए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतिम फैसला दिल्ली पुलिस पर छोड़ दिया।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कल सरकार को लगाई थी जमकर फटकार
बता दें कि कल सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई थी और मामले में उसके रवैये पर सख्त नाराजगी व्यक्त की थी।
CJI ने सरकार से किसानों के साथ गतिरोध का समाधान होने तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने को कहा था औऱ सरकार के ऐसा न करने पर खुद रोक लगाने की बात कही थी।
इसके अलावा उन्होंने गतिरोध के समाधान के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव भी रखा था।
पृष्ठभूमि
क्या है कृषि कानूनों का पूरा मुद्दा?
दरअसल, मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लेकर लाई है।
इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं।
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।
बातचीत
असफल रही है किसानों और सरकार के बीच आठ दौर की बातचीत
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए केंद्र सरकार और किसानों के बीच आठ दौर की बातचीत भी हो चुकी है, हालांकि इनमें कोई समाधान नहीं निकला है।
8 जनवरी को हुई पिछली बातचीत में सरकार ने साफ कर दिया कि वह कानूनों को वापस नहीं लेगी और किसान चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
किसान भी अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और उन्हें कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।