हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024: भाजपा ने कैसे हासिल की रिकॉर्ड जीत? जानिए प्रमुख कारण
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 की मंगलवार (8 अक्टूबर) को हुई मतगणना में भाजपा सभी एग्जिट पोल को गलत साबित करते हुए प्रचंड जीत हासिल की। वह 48 सीटें अपने नाम करने में कामयाब रही। इसके उलट कांग्रेस 37 सीटों पर ही सिमट गई है। ये भाजपा की हरियाणा में आज तक की सबसे ज्यादा सीटें हैं। 2014 में पार्टी ने 47 सीटें जीती थीं। आइए जानते हैं कि आखिर भाजपा कैसे बड़ी जीत दर्ज करने में सफल रही है।
एग्जिट पोल में कांग्रेस की वापसी का था अनुमान
हरियाणा में 5 अक्टूबर को मतदान खत्म होने के बाद जारी हुए एग्जिट पोल में कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगाया गया था। एग्जिट पोल में कांग्रेस के 49-55 सीटें जीतने और भाजपा को 26-32 सीटें ही जीतने का अनुमान लगाया गया था।
सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को सही तरह से प्रचार
भाजपा ने हरियाणा में कांग्रेस की तुलना में काफी पहले चुनावी अभियान शुरू कर दिया था। इसमें 'मोदी की गारंटी' नाम से वैन चलाकर गांवों का दौरा किया और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार किया। इसी तरह ग्रामीणों को उनके परिवार पहचानपत्र से जुड़े मुद्दों को ठीक करने का मौका देकर योजनाओं का लाभ सीधे खाते में पहुंचाने की अपनी सफलता पर भी जोर दिया। यह सिलसिला चुनाव की आचार संहिता के लागू होने पर ही बंद हुआ था।
राज्य में अपराधों में कमी को भी भुनाया
भाजपा ने गांवों में किसानों से जुड़ी योजना और उसके लाभों की भी जानकारी दी। इसी तरह राज्य में अपराध कम होने का दावा कर कांग्रेस कार्यकाल में हुए अपराधों से उसकी तुलना की। पार्टी के इन प्रयासों ने लोगों में उसकी छवि मजबूत की।
गैर जाट वोटों के एकीकरण पर किया काम
भाजपा की गैर जाट वोटों का एकीकरण करने की नीति भी बेहद कारगर साबित हुई है। 2014 में उसने मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर पंजाबी खत्री समुदाय को आकर्षित किया। इसके बाद राज्य की आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आकर्षित करने के लिए इसी साल मार्च में नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया और चुनाव से पहले ही उनके मुख्यमंत्री बने रहने की पुष्टि कर दी। इससे OBC समुदाय लामबंद हो गया।
SC मतदाताओं के लिए चलाई 'लखपति ड्रोन दीदी' योजना
भाजपा ने विशेष रूप से गांवों में महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अनुसूचित जाति (SC) के मतदाताओं को लुभाने का भी प्रयास किया। इसके लिए 'लखपति ड्रोन दीदी' का संचानल किया, जो अक्सर दलित परिवारों से ही होती हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई 'लखपति ड्रोन दीदी' को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित भी किया। पार्टी के इस प्रयास ने दलित समुदाय में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की छवि को बड़ा कर दिया।
विपक्ष की फूट का भी मिला फायदा
लोकसभा चुनाव के विपरीत हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) सीटों के बंटवारे के मुद्दे को लेकर अलग-अलग हो गई। इसी तरह इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) और जननायक जनता पार्टी (JJP) ने आजाद समाज पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इसके अलावा, कई निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में उतर आए। इससे भाजपा विरोधी वोट विभाजित हो गया और यही कई सीटों पर कांग्रेस की हार का कारण भी बना।
भाजपा का चतुराई से मुख्यमंत्री चेहरा बदलना
भाजपा के चुनाव से कुछ महीने पहले खट्टर की जगह नायब सिंह को मुख्यमंत्री बनाने का कदम गेमचेंजर साबित हुआ है। इस बदलाव ने पार्टी की छवि को पुनर्जीवित करने के साथ भाजपा को हरियाणा के विविध मतदाताओं को पूरा करने के लिए खुद को फिर से स्थापित करने की अनुमति भी दी। नायब सिंह राज्य के पहले OBC मुख्यमंत्री बने हैं। इस कदम ने राज्य के लोगों में भाजपा के प्रति बढ़े असंतोष को कम करने काम किया।
कांग्रेस की गुटबाजी और मनमाना टिकट वितरण
इस चुनाव में कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी के साथ उसके नेताओं में आत्मसंतुष्टि की भावना हावी रही। इसके उलट भाजपा ने अपने अंदरूनी कलह को प्रभावी ढंग से संभाला। कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पार्टी के टिकट वितरण में दबदबा बनाए रखा और संभावित रूप से अधिक जीतने वाले उम्मीदवारों की तुलना में खुद के वफादारों को तरजीह दी। कांग्रेस की यही कमजोरी चुनाव में उस पर भारी पड़ती नजर आई है।