#NewsBytesExplainer: कर्नाटक में असफल रहे भाजपा के 2 बड़े दांव, आंकड़ों के जरिए समझिए
क्या है खबर?
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला है और वह 224 सीटों में से 135 सीटें जीतकर सरकार बनाने की तैयारी में है।
भाजपा को पिछली बार 104 के मुकाबले इस बार 66 सीट से ही संतोष करना पड़ा है। सत्ता विरोधी लहर और कांग्रेस की रणनीति के अलावा सोशल इंजीनियरिंग और गुजरात मॉडल के फेल होने को भी भाजपा की हार की वजह माना जा रहा है।
आइए आंकड़ों के जरिए इस बात को समझते हैं।
रणनीति
क्या थी भाजपा की रणनीति?
चुनाव से पहले भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग के चलते दो बड़े फैसले लिए थे।
पहला, बड़े लिंगायत नेताओं पर निर्भरता को कम करना। इसके लिए पार्टी ने कई लिंगायत नेताओं को टिकट नहीं दिया।
दूसरा, कम लोकप्रिय विधायकों को दोबारा टिकट न देना। यही रणनीति भाजपा ने गुजरात और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए अपनाई थी। हालांकि, ये दोनों फैसले पार्टी के काम नहीं आए।
लिंगायत
लिंगायत नेताओं पर निर्भरता कम करने के लिए भाजपा ने क्या किया?
कर्नाटक में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता और लिंगायत समुदाय से आने वाले बीएस येदियुरप्पा को भाजपा ने मुख्यमंत्री पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था।
इसके बाद भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत नेताओं को टिकट नहीं दिया।
कांग्रेस ने इन दोनों कदमों को लिंगायत समुदाय की उपेक्षा से जोड़कर वोटरों के बीच प्रचारित किया। हालांकि, शेट्टार चुनाव हार गए, लेकिन भाजपा को इससे नुकसान तो हुआ ही।
दूरी
लिंगायत बहुल सीटों पर भाजपा को कितना नुकसान हुआ?
38 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के लिंगायत उम्मीदवार एक-दूसरे के आमने-सामने थे। इनमें से भाजपा के मात्र 8 लिंगायत प्रत्याशियों ने चुनाव जीता। 2018 के चुनावों में ये आंकड़ा 21 था, यानी भाजपा को यहां 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
इन 38 प्रत्याशियों में से कांग्रेस के 29 प्रत्याशी विजयी हुए। 2018 विधानसभा चुनाव में ये आंकड़ा 14 था। इस तरह कांग्रेस को यहां 15 सीटों का फायदा हुआ।
वोक्कालिग्गा
वोक्कालिग्गा समुदाय में क्या रही भाजपा की स्थिति?
भाजपा ने दक्षिणी कर्नाटक के वोक्कालिग्गा समुदाय में बढ़त हासिल की और 2018 के मुकाबले पार्टी ने यहां एक सीट ज्यादा जीती।
भाजपा को मिले लिंगायत समुदाय के वोट शेयर में जहां 2.97 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं वोक्कालिग्गा समुदाय के वोट शेयर में 9.51 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
ये आंकड़ा उन सीटों का है, जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने एक ही समुदाय के प्रत्याशियों को टिकट दिया था।
बागी
टिकट काटने की रणनीति का क्या हुआ असर?
भाजपा ने 20 मौजूदा विधायकों का टिकट काटा। इनमें से 10 सीटों पर पार्टी हार गई।
इसके अलावा 103 सीटें ऐसी थीं, जहां पर भाजपा ने पिछले उम्मीदवार को टिकट दिया। 2018 के मुकाबले भाजपा को यहां 37 सीटों का नुकसान हुआ।
इसका मतलब भाजपा को दोनों तरफ से नुकसान हुआ। जिन विधायकों के टिकट काटे गए, उन्होंने बागी होकर भाजपा को नुकसान पहुंचाया और जिन विधायकों को टिकट मिला, वे सत्ता विरोधी लहर के कारण हार गए।
जानकारी
9 सीट पर जीत का अंतर बागियों को मिले वोटों से कम
भाजपा को बागी विधायकों ने खासा नुकसान पहुंचाया। 9 विधानसभा सीटें ऐसी थी, जहां हार-जीत का अंतर भाजपा के बागी उम्मीदवार को मिले वोटों से कम था। यानी अगर भाजपा इन बागी विधायकों को साध लेती तो यहां जीत मिलना निश्चित थी।
sc
क्या भाजपा को मिला SC/ST समुदाय का साथ?
राज्य में अनुसूचित जाति (SC) के लिए 36 और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 17 सीट आरक्षित हैं। कुल 51 SC/ST सीटों पर कांग्रेस को 15 सीटों का फायदा हुआ, वहीं भाजपा को 10 और JDS को 4 सीटों का नुकसान हुआ।
SC/ST आरक्षित सीटों पर कांग्रेस के वोट शेयर में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भाजपा के वोट शेयर में 0.81 और JD(S) के वोट शेयर में 1.74 फीसदी की कमी आई।
परिणाम
क्या रहा कर्नाटक चुनाव का परिणाम?
कर्नाटक चुनाव के नतीजे शनिवार को घोषित हुए, जिसमें कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल की। यह पिछले 34 वर्षों में किसी भी पार्टी द्वारा दर्ज की गई सबसे बड़ी जीत है।
भाजपा ने 66 सीटें जीती हैं, जबकि JDS 19 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई। अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों के खाते में 4 सीटें गईं।
कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर 10 मई को मतदान हुआ था।