अशोक गहलोत हो सकते हैं कांग्रेस के अगले अध्यक्ष, पायलट बनेंगे राजस्थान के मुख्यमंत्री
कांग्रेस पार्टी के जल्द ही नया अध्यक्ष मिल सकता है और यह गांधी परिवार से नहीं होगा। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के अगले अध्यक्ष हो सकते हैं। कांग्रेस ने अंदरखाने इसकी पूरी तैयारी कर ली है और गहलोत को नई जिम्मेदारी के लिए तैयार रहने को कहा है। बता दें, लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पद से इस्तीफा देने की बात कही थी।
इन वजहों से गहलोत को मिल सकता है पद
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार गहलोत के पास राजनीति और संगठन का लंबा अनुभव है। राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने के अलावा उन्होंने कांग्रेस में संगठन के स्तर पर भी काम किया है। 2017 गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को जोरदार टक्कर दी थी। इसके पीछे गहलोत की रणनीति का अहम योगदान था। गहलोत पिछड़ी जाति से संबंध रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस उनके आसरे एक बड़े वोट बैंक को सीधा संदेश देने की कोशिश कर रही है।
गांधी परिवार से है नजदीकी
गहलोत को गांधी परिवार का नजदीकी माना जाता है। कहा जाता है कि राहुल और सोनिया से नजदीकी होने के कारण ही गहलोत को सचिन पायलट के मुकाबले प्राथमिकता देकर राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया था। वहीं दूसरे नेताओं से भी उनके अच्छे संबंध हैं।
राजस्थान की कलह पर भी लगेगा विराम
अगर गहलोत का कांग्रेस की कमान सौंपी जाती है तो राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर सचिन पायलट होंगे। फिलहाल राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और गहलोत के संबंध ठीक नहीं है। लोकसभा चुनावों के बाद गहलोत ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके बेटे वैभव गहलोत की जोधपुर से हार की जिम्मेदारी सचिन पायलट को लेनी चाहिए। वहीं पार्टी में कई बार पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ चुकी है।
1980 में जीता था पहला लोकसभा चुनाव
तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने वाले गहलोत का जन्म 3 मई, 1951 को जोधपुर में हुआ था। उनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत जोधपुर के मशहूर जादूगर थे। अर्थशास्त्र से मास्टर्स करने वाले गहलोत को सादगी पसंद राजनेता माना जाता है। गहलोत ने पहली बार 1980 में जोधपुर से लोकसभा चुनाव जीता था। इसके बाद गहलोत 1998 में पहली बार और 2008 में दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2003-2008 तक वे राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष रहे।
इस्तीफा देने की बात पर अड़े हैं राहुल
राहुल ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन तब इसे मंजूर नहीं किया गया था। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने उन्हें मनाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन वो रंग नहीं लाई। राहुल ने हाल ही में एक बार फिर स्पष्ट किया कि पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफे का उनका फैसला अटल है और वह इस पर पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा कि नया पार्टी अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में भी वो शामिल नहीं होंगे।
गांधी परिवार के किसी सदस्य को अध्यक्ष बनाने पर भी राजी नहीं राहुल
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि केवल गांधी परिवार को कोई सदस्य ही कांग्रेस को एक साथ बनाए रखने में कामयाब रह सकता है, लेकिन राहुल ने इस संभावना को भी खारिज करते हुए कहा था कि अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का कोई सदस्य होना चाहिए। प्रियंका गांधी का नाम सामने आने पर उन्होंने कहा था कि उनकी बहन को इस मामले में न खींचा जाए। उन्होंने कांग्रेस के लिए काम करते रहने की बात कही थी।
वंशवादी छवि है कांग्रेस की सबसे बड़ी बाधा
वंशवादी राजनीति कांग्रेस के खिलाफ आलोचकों की सबसे मजबूत दलीलों में से एक रही है। आलोचक कहते रहे हैं कि एक परिवार ही पूरी पार्टी को चलाता है और पार्टी में कोई जवाबदेही नहीं है। कांग्रेस में अन्य बड़े नेताओं के उभरने में भी ये बड़ी बाधा साबित हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ने जनता के बीच उसकी छवि को खूब उछाला और इसका असर चुनाव परिणाम पर भी देखने को मिला।
गांधी परिवार से रहे हैं कांग्रेस के अधिकांश अध्यक्ष
आजादी के बाद ज्यादातर समय गांधी परिवार का कोई सदस्य ही कांग्रेस अध्यक्ष रहा है। जवाहर लाल नेहरू के दौर में और राजीव गांधी की हत्या के बाद कुछ समय के लिए गांधी परिवार से बाहर के लोग कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1998 में सीताराम केसरी को पद से हटाते हुए सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं। उनके नाम सबसे अधिक समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड है। 2017 में राहुल ने सोनिया से अध्यक्ष पद का भार संभाला था।